मध्य प्रदेश

तमिलनाडू, प.बंगाल, हरियाणा, आंध्रप्रदेश, उ.प्र., उड़ीसा व केन्द्र द्वारा आउटसोर्स कर्मियों को दी जा सुविधाऐं म.प्र. में भी लागू हों : भार्गव

म.प्र. के सभी विभागों एवं उपक्रमों का वर्कलोड प्रदेश के दस लाख आउटसोर्स कर्मियों पर है, पर यह श्रमिक केन्द्र सरकार व अन्य राज्यों की तुलना में लगभग आधा न्यूनतम वेतन व सुविधाएँ पाकर फिसड्डी हैं, इसलिए म.प्र. सरकार केन्द्र व कई राज्यों में आउटसोर्स श्रमिकों को दी जा रही न्यूनतम वेतन व अन्य सुविधाएं म.प्र. में भी तत्काल लागू करें एवं मौजूदा आउटसोर्स कर्मियों के पदों की संख्या भी बढ़ाई जाए, क्योंकि कर्मचारियों की कमी के कारण अधिकांश आउटसोर्स कर्मी अवकाश पाने से वंचित हो रहे हैं। यह मांग ऑल डिपार्टमेंट आउटसोर्स सयुंक्त संघर्ष मोर्चा के प्रांतीय संयोजक मनोज भार्गव एवं महामंत्री दिनेश सिसोदिया ने म.प्र. के मुख्यमंत्री व श्रममंत्री को पत्र प्रेषित कर की है। भार्गव ने कहा कि जिस प्रकार तमिलनाडु सरकार ने सरकारी विभागों की भर्ती में आउटसोर्सिंग को चरणबद्ध खत्म कर मुख्य कार्यों में सीधी भर्ती का निर्णय लिया है, यही निर्णय म.प्र. सरकार भी लेकर म.प्र. विधानसभा चुनाव 2023 भाजपा संकल्प पत्र पृष्ठ-81 पर अमल कर प्रदेश के आउटसोर्स कर्मियों को संविदा का लाभ व दर्जा देने के आदेश तत्कायल जारी करे, क्योंकि आपातकालीन एवं जोखिमपूर्ण चिकित्सा व ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में आउटसोर्स पर दीर्घकालिक निर्भरता ठीक नहीं है। भार्गव का कहना है कि कुकुरमुत्तों की तरह छाये सैकड़ों मानव बल ठेकेदारों, बिचोलियों को हटाकर आउटसोर्स की भर्ती व प्रबंधन हेतु प्लेसमेंट एजेन्सी के रूप में जिस प्रकार हरियाणा ने हरियाणा कौशल रोजगार निगम बनाया है, उ.प्र. व आंध्रप्रदेश ने आउटसोर्स सेवा निगम बनाया है, उसी तर्ज पर म.प्र. सरकार सैकड़ों मानव बल ठेकेदारों की जगह म.प्र. आउटसोर्स सेवा निगम का गठन करें, इससे म.प्र. के सभी विभागों व उपक्रमों में बार-बार टेण्डरिंग प्रक्रिया से मुक्ति मिलेगी एवं 5% ठेका कमीशन सहित धन व समय की बचत होगी व इन लाखों आउटसोर्स श्रमिकों का शोषण रूकेगा तथा चयन प्रक्रिया में व आउटसोर्स ढांचे में सुधार होगा । उड़ीसा व हरियाणा सरकार में वहाँ अनुभव आधारित पारिश्रमिक दिया जाता है, उड़ीसा में कार्यरत् आउटसोर्स कर्मी को प्रत्येक पॉंच वर्ष के अनुभव के लिए प्रतिमाह एक हजार रू. अतिरिक्त पारिश्रमिक दिया जाता है, इसे म.प्र. सरकार भी लागू करे। भार्गव ने इस बात पर पीड़ा व्यक्त की कि म.प्र. में 50 से लेकर 55 वर्ष की आयु में आउटसोर्स कर्मी को बूढ़ा बताकर सेवा से बाहर निकाला जा रहा है, जबकि पश्चिम बंगाल में आउटसोर्स-संविदा की सेवा निवृत्ति आयु 60 वर्ष व हरियाणा में 58 वर्ष है। इन राज्यों की तरह म.प्र. में आउटसोर्स सेवा निवृत्ति आयु 60 वर्ष की जाए। वहीं दूसरी ओर हरियाणा में आउटसोर्स-संविदा की सेवा के दौरान मृत्यु होने पर उनके परिजनों को अनुकम्पा नियुक्ति देने का प्रावधान है, यह मानवीय व्य्वस्थाे म.प्र. में भी लागू की जावे। इसी तरह प.बंगाल एवं हरियाणा के आउटसोर्स-संविदा कर्मियों को आकस्मिक व चिकित्सा अवकाश दिए जाने का प्रावधान है, यह म.प्र. में भी दिए जावे। यहां तक कि प.बंगाल में आउटसोर्स-संविदा महिला कर्मियों को प्रतिवर्ष 30 दिवस का अवकाश एवं महिलाओं को 180 दिवस का सवेतन मातृत्व अवकाश व उड़ीसा में 120 दिन का मातृत्व अवकाश दिया जाता है, यही व्यवस्था म.प्र. में भी लागू की जाए, क्योंकि यह बुनियादी श्रम मानकों के अनुरूप है। भार्गव ने कहा कि कितने हैरत की बात है कि म.प्र. के असाधारण राजपत्र 24 दिसम्बर 2020 क्र.-494 का प्रकाशन कर म.प्र. सरकार ने आउटसोर्स व दै.वे.भो. श्रमिकों का बोनस 8.33% से बढ़ाकर 20% कर दिया, पर गजट नोटिफिकेशन जारी होने के बाद भी मजदूर संहिता 2019-2020 प्रभावशील नहीं होने का हवाला देकर अभी भी प्रदेश के 10 लाख आउटसोर्स एवं मिल श्रमिकों को प्रतिवर्ष बोनस 20% की जगह 8.33% ही दिया जा रहा है, जो कि प्रदेश के श्रमिकों के साथ घोर अन्याय है।

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