हिंदुस्तान का दिल – जहाँ संस्कृति, इतिहास और विकास मिलते हैंविशेष लेख- मध्य प्रदेश स्थापना दिवस) पत्रकर सय्यद असीम अली
राष्ट्र निर्माण के दौर में उभरा "भारत का हृदय"राज्यों के पुनर्गठन से ‘दिल’ बनने तक की कहानी


जब ट्रेन भोपाल से निकलती है और सतपुड़ा की हरी-भरी पहाड़ियों को चीरते हुए बिलासपुर की दिशा में बढ़ती है, तो बाहर की हर झलक मानो भारत के दिल की धड़कन बन जाती है। खिड़की से झाँकते हुए कभी खेतों में झूमती सरसों की सुनहरी चादर दिखाई देती है, तो कभी घने साल और सागौन के जंगल अपनी हरियाली से मन को मोह लेते हैं। यह वह धरती है जहाँ प्रकृति, संस्कृति और इतिहास का संगम एक मधुर राग की तरह गूँजता है।यहाँ खजुराहो की नक्काशीदार मूर्तियाँ केवल कला की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि मानव जीवन के सौंदर्यबोध की कथा कहती हैं। साँची का शांत स्तूप बौद्ध करुणा और ध्यान की अमिट छाप छोड़ता है, जबकि भीमबेटका की प्राचीन शिलाचित्र गुफाएँ मानव सभ्यता की आरंभिक यात्रा की गवाही देती हैं। कान्हा और बांधवगढ़ के जंगलों में बाघ की गर्जना हमें प्रकृति की अदम्य शक्ति का स्मरण कराती है, तो नर्मदा के किनारे बहती ठंडी हवा इस प्रदेश के जीवनदायिनी स्वर को प्रकट करती हैमध्य प्रदेश की पहचान केवल उसके भौगोलिक केंद्र होने से नहीं, बल्कि उसकी सांस्कृतिक विविधता, लोक परंपराओं और मानवीय संवेदनाओं से बनी है। यहाँ की मिट्टी में लोकगीतों की धुन, लोकनृत्यों की ताल और लोककथाओं की गर्मजोशी घुली हुई है। यहाँ के आदिवासी समुदायों ने अपने जीवन में प्रकृति को पूजा का दर्जा दिया है और पर्यावरण के साथ गहरे तालमेल की मिसाल पेश की है।आज़ादी के बाद इस प्रदेश ने कई बार खुद को नए रूप में गढ़ा है। 1956 में राज्य पुनर्गठन के बाद जब मध्य भारत, भोपाल और विंध्य प्रदेश एक होकर “मध्य प्रदेश” बने, तब इस भूभाग की पहचान केवल एक प्रशासनिक इकाई नहीं रही — यह एक जीवंत सांस्कृतिक प्रदेश बन गया। यहाँ की राजधानी भोपाल ने आधुनिकता और परंपरा दोनों को अपनाया, जहाँ झीलों का सौंदर्य और स्थापत्य की सादगी ने एक नया शहरी चरित्र गढ़ा।“भारत का हृदय” कहलाने की यह पहचान किसी प्रचार का परिणाम नहीं, बल्कि उस गहराई का प्रतीक है जो इस प्रदेश की आत्मा में बसती है — जीवन की सहजता, संस्कृति की विविधता, और प्रकृति की धड़कन।
यह प्रदेश भारत के नक्शे में भले बीचोंबीच स्थित हो, लेकिन इसकी भूमिका पूरे देश के लिए जीवनरस जैसी है — जैसे दिल शरीर के हर हिस्से में रक्त प्रवाहित करता है, वैसे ही मध्य प्रदेश अपनी संस्कृति, ऊर्जा और जीवंतता से पूरे भारत को जोड़ता है।
क्यों कहा जाता है मध्य प्रदेश को ‘भारत का हृदय’?
मध्य प्रदेश को “भारत का हृदय” कहा जाना केवल इसके भौगोलिक केंद्र में स्थित होने का परिणाम नहीं है, बल्कि यह उपाधि इसकी आत्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक गहराई का प्रतीक है। देश के मानचित्र के ठीक मध्य में बसे इस प्रदेश ने उत्तर-दक्षिण और पूरब-पश्चिम भारत को जोड़ने का सेतु बनने का गौरव पाया है। यहाँ की मिट्टी में विविधता के साथ एकता की भावना रची-बसी है।
यह भूमि वीरता, त्याग और संघर्ष की कहानियों से भरी है — झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का अंतिम रण, तांत्या भील का जनआंदोलन, और लोकनायक तात्या टोपे की वीरता इसकी पहचान हैं। साथ ही, यहाँ की संस्कृति, इतिहास और प्रकृति का संगम अद्भुत है — खजुराहो की कला, साँची की शांति, कान्हा के जंगल और नर्मदा की अविरल धारा इसे आध्यात्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का केंद्र बनाते हैं।
मालवा की गेर से लेकर गोंड जनजातियों के नृत्य तक, उज्जैन के महाकाल लोक से लेकर भोपाल की झीलों तक — मध्य प्रदेश में भारत की आत्मा की झलक मिलती है। यही कारण है कि यह प्रदेश केवल नक्शे का केंद्र नहीं, बल्कि राष्ट्र की धड़कन है — सचमुच, “भारत का हृदय”।
आज जिस मध्य प्रदेश को हम जानते हैं, वह कई ऐतिहासिक चरणों से गुज़रकर अस्तित्व में आया।
1947 – स्वतंत्रता के बाद : नया भारत, बँटा हुआ मध्य प्रदेश
1947 में जब भारत ने आज़ादी का सूरज देखा, तब वर्तमान मध्य प्रदेश की तस्वीर वैसी नहीं थी जैसी आज है। उस समय यह क्षेत्र चार अलग-अलग प्रशासनिक इकाइयों में विभाजित था — मध्य भारत, विंध्य प्रदेश, भोपाल राज्य और मध्य प्रांत-बरार। इन सभी क्षेत्रों की अपनी-अपनी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान थी।
मध्य भारत मुख्य रूप से ग्वालियर, इंदौर, उज्जैन और अन्य रियासतों का संघ था, जहाँ मराठा और बुंदेली प्रभाव गहराई से मौजूद थे। विंध्य प्रदेश रीवा, सतना और छतरपुर जैसे बुंदेलखंडी इलाकों को समेटे हुए था। भोपाल राज्य, जो नवाबों के शासन में एक स्वतंत्र इकाई रहा था, नवाबी तहज़ीब और इस्लामी स्थापत्य का केंद्र था। वहीं मध्य प्रांत-बरार में नागपुर, जबलपुर और छिंदवाड़ा जैसे क्षेत्र शामिल थे, जिनका प्रशासनिक ढाँचा ब्रिटिश काल में विकसित हुआ था।
इन चारों क्षेत्रों की अलग-अलग शासन प्रणालियाँ, भाषाएँ और सांस्कृतिक परंपराएँ थीं। आज़ादी के बाद सबसे बड़ी चुनौती थी — इन विविध हिस्सों को एक साझा पहचान और एक संगठित राज्य के रूप में जोड़ना। यही यात्रा आगे चलकर 1956 के राज्य पुनर्गठन का आधार बनी, जिसने “भारत के हृदय” यानी मध्य प्रदेश को जन्म दिया।
1956 – राज्य पुनर्गठन : ‘भारत के हृदय’ का नया जन्म
1956 का वर्ष मध्य प्रदेश के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ लेकर आया। स्वतंत्रता के बाद भारत में भाषाई और प्रशासनिक आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की आवश्यकता महसूस की गई। इसी उद्देश्य से गठित राज्य पुनर्गठन आयोग ने देशभर की सीमाओं को नई परिभाषा देने की सिफारिशें कीं।
इन सिफारिशों के अनुसार मध्य भारत, विंध्य प्रदेश और भोपाल राज्य को मिलाकर एक नया राज्य बनाया गया, जिसे नाम दिया गया “मध्य प्रदेश”। इस पुनर्गठन से पहले ये सभी क्षेत्र अपनी अलग-अलग प्रशासनिक इकाइयाँ थीं, लेकिन सांस्कृतिक रूप से एक ही धारा से जुड़े हुए थे — हिंदी भाषा, साझा इतिहास और मध्य भारतीय परंपराओं से।
हालाँकि, इस प्रक्रिया में नागपुर और बरार के कुछ हिस्सों को अलग कर महाराष्ट्र में सम्मिलित कर दिया गया। नए राज्य की राजधानी पहले जबलपुर निर्धारित की गई, जो ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टि से केंद्र में स्थित थी। लेकिन शीघ्र ही प्रशासनिक सुविधा, भू-स्थिति और राजनीतिक संतुलन को देखते हुए भोपाल को स्थायी राजधानी का दर्जा दिया गया।
1956 का यह पुनर्गठन केवल सीमाओं का नहीं, बल्कि एक एकीकृत पहचान के जन्म का प्रतीक था — जिसने मध्य प्रदेश को “भारत का हृदय” बनने की दिशा में अग्रसर किया।
2000 – छत्तीसगढ़ का गठन : नए राज्य की नई पहचान
1 नवंबर 2000 का दिन मध्य भारत के इतिहास में एक और महत्वपूर्ण अध्याय लेकर आया। इसी दिन मध्य प्रदेश से अलग होकर ‘छत्तीसगढ़’ एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। यह विभाजन केवल प्रशासनिक पुनर्गठन नहीं था, बल्कि क्षेत्रीय आकांक्षाओं, सांस्कृतिक पहचान और आर्थिक विकास की मांग का परिणाम था।
छत्तीसगढ़ क्षेत्र, जो पहले मध्य प्रदेश का हिस्सा था, अपनी विशिष्ट भाषा, परंपरा और सामाजिक संरचना के कारण अलग पहचान रखता था। यहाँ की गोंड, बैगा, और हल्बा जैसी जनजातियाँ, लोककला, नृत्य और त्योहार इस भूभाग को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाते थे। लेकिन लंबे समय तक यह क्षेत्र विकास की मुख्यधारा से पीछे रहा। लोगों की यही भावना थी कि अलग राज्य बनने पर उनकी स्थानीय आवश्यकताओं और संसाधनों पर अधिक ध्यान दिया जा सकेगा।
राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 2000 के तहत यह ऐतिहासिक फैसला लागू हुआ। भोपाल मध्य प्रदेश की राजधानी बनी रही, जबकि रायपुर को छत्तीसगढ़ की राजधानी का गौरव मिला। इस विभाजन ने दोनों राज्यों को अपनी-अपनी राह पर आगे बढ़ने का अवसर दिया — एक ओर मध्य प्रदेश ने प्रशासनिक स्थिरता और विकास को गति दी, वहीं छत्तीसगढ़ ने अपने प्राकृतिक संसाधनों और लोकसंस्कृति के बल पर नई पहचान गढ़नी शुरू की।
2025 – नया आत्मविश्वासी मध्य प्रदेश : विकास और विरासत का संगम
2025 का मध्य प्रदेश एक नए आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रहा है। यह प्रदेश अब केवल भारत का भौगोलिक केंद्र नहीं, बल्कि संस्कृति, इतिहास और पर्यावरणीय संतुलन का सशक्त प्रतीक बन चुका है। स्मार्ट शहरों, विकसित अवसंरचना और पर्यटन विस्तार के साथ-साथ यह अपनी लोक परंपराओं और प्राकृतिक धरोहर को भी संजोए हुए है। ‘अजब है, ग़जब है एमपी’ अब सिर्फ नारा नहीं, बल्कि उसकी जीवंत पहचान है — एक ऐसा प्रदेश जो विकास और विरासत दोनों को दिल से जीता है।
नायक और नायिकाएँ : जिन्होंने पहचान गढ़ी
मध्य प्रदेश की मिट्टी में शौर्य और त्याग की असंख्य कहानियाँ समाई हैं।
रानी लक्ष्मीबाई: ग्वालियर की धरती पर 1857 की क्रांति की अमर वीरांगना, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती दी।
तात्या टोपे: स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे सेनानी, जिन्होंने रणनीति और साहस से इतिहास में अमर स्थान पाया।
तांत्या भील: जिन्हें ‘भारत का रॉबिनहुड’ कहा गया — एक आदिवासी योद्धा, जिसने शोषण के खिलाफ हथियार उठाया।
हबीब तनवीर: रायपुर के रंगकर्मी, जिन्होंने लोकनाट्य और थिएटर को विश्व मंच तक पहुँचाया।
हरिवंश राय बच्चन: हिंदी कविता के स्तंभ, जिनकी रचनाओं ने साहित्य को नई ऊँचाई दी।
इन सबने मिलकर मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक और वैचारिक चेतना को दिशा दी।
प्रधानमंत्री ने भी माना – “एमपी अजब है, ग़जब है”
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह कथन — “एमपी अजब है, ग़जब है” — केवल एक प्रचार वाक्य नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश की आत्मा का सार है। यह नारा अपने भीतर उस भाव को समेटे हुए है, जो इस प्रदेश की मिट्टी, संस्कृति, लोगों और प्रकृति में गहराई से धड़कता है।
मध्य प्रदेश, भारत के केंद्र में स्थित वह भूमि है जहाँ इतिहास और वर्तमान साथ-साथ चलते हैं। एक ओर साँची के शांत स्तूप हैं, जो सम्राट अशोक के बौद्ध युग की गवाही देते हैं, तो दूसरी ओर इंदौर और भोपाल जैसे आधुनिक शहर हैं, जो स्मार्ट सिटी की नई परिभाषा गढ़ रहे हैं। यह प्रदेश परंपरा और प्रगति का अद्भुत संगम है — जहाँ प्राचीनता पीछे नहीं छूटती और आधुनिकता अपनी जड़ें खोती नहीं।
प्रधानमंत्री का यह कथन इस सच्चाई को रेखांकित करता है कि मध्य प्रदेश “अजब” है अपनी विविधता में — यहाँ आदिवासी संस्कृति, मराठी प्रभाव, बुंदेली बोली, और मालवी मिठास सब एक साथ मिलकर एक अनोखा सामाजिक ताना-बाना बुनते हैं। और “ग़जब” है अपनी क्षमता में — यहाँ का कृषि विकास, औद्योगिक प्रगति, पर्यटन विस्तार और पर्यावरण संरक्षण के प्रयास, सब मिलकर इसे आत्मनिर्भर भारत का मजबूत स्तंभ बनाते हैं।
उज्जैन का महाकाल लोक और ओंकारेश्वर का ज्योतिर्लिंग जहाँ आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक हैं, वहीं इंदौर की सफाई और सुशासन मॉडल आधुनिक भारत के लिए प्रेरणा हैं। भोपाल की झीलें और उसका हरित परिवेश पर्यावरण संरक्षण की मिसाल पेश करते हैं। कान्हा, बांधवगढ़ और पेंच जैसे राष्ट्रीय उद्यान न केवल जैव विविधता के केंद्र हैं, बल्कि पर्यटन और स्थानीय आजीविका के स्रोत भी हैं।
प्रधानमंत्री का यह वाक्य प्रदेशवासियों के आत्मविश्वास को और भी गहराई से छूता है। यह केवल शब्दों की गूंज नहीं, बल्कि उस सच्चाई का स्वीकार है कि मध्य प्रदेश सचमुच “भारत का दिल” है — एक ऐसा प्रदेश जो अपनी धड़कन से पूरे देश को ऊर्जा देता है।
मध्य प्रदेश की यही खासियत है — यहाँ जीवन में सादगी है पर आत्मा में गहराई, यहाँ संस्कृति में परंपरा है पर सोच में आधुनिकता, और यही उसे बनाती है “अजब” भी और “ग़जब” भी।
विकास की राह : आधुनिक मध्य प्रदेश की नई पहचान
आज का मध्य प्रदेश विकास की नई ऊँचाइयों को छू रहा है। राज्य ने बुनियादी ढाँचे, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन जैसे प्रमुख क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की है। सड़क, बिजली और डिजिटल कनेक्टिविटी में सुधार ने न केवल उद्योगों के लिए अनुकूल माहौल तैयार किया है, बल्कि गाँव-गाँव तक विकास की रोशनी पहुँचाई है।
स्मार्ट सिटीज़ मिशन के तहत भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर जैसे शहर आधुनिक शहरी प्रबंधन और स्वच्छता के मॉडल बनकर उभरे हैं। वहीं, नर्मदा घाटी विकास परियोजनाओं ने सिंचाई और जल संरक्षण में क्रांतिकारी बदलाव लाए हैं, जिससे कृषि क्षेत्र को नई ऊर्जा मिली है।
महिलाओं के सशक्तिकरण में लाड़ली बहना योजना और महिला स्वावलंबन मिशन जैसी योजनाएँ आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश कर रही हैं। स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार, शिक्षा में नवाचार और पर्यटन स्थलों के उन्नयन से प्रदेश का समग्र विकास स्पष्ट रूप से झलकता है।
नतीजतन, मध्य प्रदेश आज न सिर्फ “भारत का दिल” कहलाता है, बल्कि “विकास का प्रतीक” बनकर देश की प्रगति यात्रा में अपना अहम योगदान दे रहा है।
दिल से जुड़ा प्रदेश
मध्य प्रदेश का सफर केवल राजनीतिक सीमाओं या नक्शे की लकीरों से तय नहीं हुआ। यह सफर उन लोगों के साहस, श्रम और संस्कृति से बना, जिन्होंने इस भूमि को अपनी पहचान दी।आज जब हम ‘मध्य प्रदेश स्थापना दिवस ’ मनाते हैं, तो यह केवल एक प्रशासनिक तारीख नहीं, बल्कि उस आत्मा का उत्सव है जो इस प्रदेश की धड़कनों में बसी है।यह प्रदेश न केवल भौगोलिक रूप से भारत का केंद्र है, बल्कि इसकी संस्कृति, संगीत, लोककला और प्रकृति भारत की आत्मा को धारण करती है। इसलिए जब प्रधानमंत्री कहते हैं — “एमपी अजब है, ग़जब है” — तो यह केवल प्रशंसा नहीं, बल्कि इस दिल की धड़कन की पहचान है, जो पूरे देश की रगों में बहती है।
मध्य प्रदेश — जहाँ हर पर्व, हर परंपरा, हर धुन में बसा है भारत का दिल।


