खबरमध्य प्रदेश

तारीफ यही है कि वे ताहिर भाई हैं

ताहिर अली के 71वें जन्म-दिवस 3 अक्टूबर पर विशेष

जनसम्पर्क शैली ने बनाई पत्रकारों, राजनेताओं और प्रशासनिक अमले में पहचान
– सुरेश गुप्ता

सैयद ताहिर अली संक्षेप में टी.ए. आज 71 वर्ष पूरे कर 72वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। प्रसंग जन्म-दिवस का है तो मित्र और सहकर्मियों द्वारा बधाई और शुभकामनाएँ देने के साथ ही व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में भी बात की जाना चाहिये।
जनसम्पर्क विभाग में ताहिर भाई ने विभिन्न पदों पर रहकर संयुक्त संचालक के पद से सेवानिवृत्ति तक 34 वर्ष बिताये। उनके सेवाकाल, जनसम्पर्क अधिकारी के रूप में उनकी दक्षता, कार्य-कुशलता के बारे में बात करने से पहले व्यक्ति ताहिर भाई को जान लें।
3 अक्टूबर, 1954 को भोपाल में उच्च शिक्षित और संस्कारित परिवार में जन्में ताहिर भाई ने विनम्र, सौम्य और व्यवहार कुशल व्यक्ति के रूप में जो पहचान बनायी है, वह बहुत कम लोगों को नसीब होती है। वे गंगा-जमुनी तहजीब को जीते रहे हैं और जी रहे हैं। अपनी इस पहचान और गुण से उन्होंने शासकीय जनसम्पर्क जैसे जटिल और दुरूह कार्य को भी इतना आसान बना लिया कि देखते ही बनता है। शायद ही कभी ऐसा हुआ होगा कि वे अपने जनसम्पर्कीय दायित्व के निर्वहन में (संकटकाल में भी) सफल नहीं रहे हों। नये जनसम्पर्क अधिकारी उनसे व्यवहार कुशलता और मीडियाकर्मियों से स्नेही संबंध तो सीख ही सकते हैं।
कभी-कभी अकेले व्यवहार कुशलता और मृदभाषी होना आपको हँसी का पात्र भी बना देता है परंतु ताहिर भाई के साथ ऐसा नहीं हुआ तो वह इसलिये कि संबंधों के निर्वहन में भी उनका कोई सानी नहीं है। दो-तीन उदाहरणों से इसे समझा जा सकता है- वे सन 1987 में छिंदवाड़ा में जिला जनसम्पर्क अधिकारी थे, कलेक्टर थे आईएएस श्री अंटोनी डिसा। सभी पीआरओ के कलेक्टर से अच्छे संबंध बन जाते हैं खासतौर से उनके जो जरा से भी काबिल हों। ताहिर भाई के श्री डिसा से संबंध उनके मुख्य सचिव बल्कि रेरा चेयरमेन बनने तक बरकरार रहे और आज भी हैं। कई और वरिष्ठ आईएएस से उनके साथ काम करने की वजह से ताहिर भाई के आत्मीय संबंध हैं। भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त श्री ओ.पी. रावत से भी संबंध और सम्पर्क बरकरार हैं। दूसरा जो मुझे याद आता है लंबे समय से प्रदेश मंत्रि-मण्डल के कई वरिष्ठ मंत्रियों के साथ उन्होंने काम किया जो उनसे जुड़े रहे।
वर्तमान उप मुख्यमंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ल तक (जिनके साथ वे सेवानिवृत्ति के बाद भी उनके मीडिया सलाहकार के रूप में कार्य कर रहे हैं), ये श्रंखला जो 21 वर्ष है और बहुत लम्बी और संबंधों के निर्वहन की मिसाल भी है। ताहिर भाई एक बार जिसके हो गये तो हो गये फिर वे पूरे तन-मन-कर्म से उसके साथ हैं।
आज कई तरह के इन्फ्लुएंसर विचरण कर रहे हैं पर मेरे मत में ताहिर भाई के आगे सब फीके हैं। उनके सामाजिक, राजनैतिक, शासकीय सम्पर्कों का इन्फ्लुएंस उनके साथ रहकर, उनके साथ काम करते हुए या उन्हें काम सौंपकर ही जाना जा सकता है। कहा तो यह भी जाता है कि उन्हें काम सौंपकर निश्चिंत हुआ जा सकता है। एक हद तक यह सही भी है। ताहिर भाई शासकीय सेवा से पहले क्या ओढ़ते-बिछाते थे, पता नहीं। शायद आम इंसानों की तरह चादर-रजाई ओढ़ते होंगे और सोने के लिये दरी-गद्दा बिछाते होंगे पर शासकीय सेवा में वे अपने काम को ही ओढ़ते-बिछाते रहे हैं, जिसका लाभ उन्हें कुशल जनसम्पर्क अधिकारी के तमगे के रूप में मिला है। वे परिश्रमी हैं तो कार्य-कुशल भी, कर्मठता को उन्होंने जिया है और जी रहे हैं।
यह सही है कि ताहिर भाई आज दक्ष जनसम्पर्क अधिकारी माने जाते हैं और हैं भी। परंतु हमेशा ऐसा नहीं था, तो फिर सवाल उठता है कि फिर वे इतने लोकप्रिय और दक्ष कैसे हो गये। इसका जवाब है उनकी सीखने की, सहयोग लेने की, हमेशा अपने को एक पायदान नीचे रखकर, एक पायदान ऊँचे परिणाम देने की मनोवृत्ति।
अच्छा काम करने, अच्छे परिणाम प्राप्त करने में सबका सहयोग लेने और सहयोग करने वाले का अकेले में नहीं हर उपयुक्त जगह और समय पर आभार जताने में ताहिर भाई ने कभी गुरेज नहीं किया। यही गुण उन्हें बड़ा और बिरला बनाता है। वे सीखकर अपना आज बना पाये हैं, विरासत से नहीं।
पत्रकार भाइयों से आत्मीय संबंध रखने वाले ताहिर भाई यारबाज हैं, पुरलुफ्त हैं और हैं खुशदिल। शायद ही वे कभी उदास होते हों। यारबाजी तो कोई उनसे सीखे। साथ ही हिन्दू-मुस्लिम सभी त्यौहारों का, मांगलिक अवसरों का (घर-परिवार के साथ ही अपने नियर-डीयर) का जैसा लुत्फ वे लेते हैं, लुत्फ दिलाते हैं, बहुत कम लोग कर पाते हैं। अब तो अपने इकलौते पुत्र आसिम को भी उन्होंने अपनी इस रवायत का वारिस बना लिया है।
अब जरा ताहिर भाई की पारिवारिक पृष्ठभूमि की बात कर लें, तो जनाब मशहूर शिक्षाविद् और इतिहासकार मरहूम डॉ. सैयद अशफाक अली के चश्म-ओ-चिराग हैं। वहीं डॉ. अशफाक अली जो सेफिया कॉलेज के उरूज के समय 18 वर्ष कॉलेज के प्रिंसिपल रहे। उन्होंने भोपाल के इतिहास का सबसे पहला दस्तावेजीकरण Bhopal Past and Present लिखकर किया। ताहिर भाई ने जिस तरह विरासत और वर्तमान को साधा है, वह उन्हें नेकनीयत, पुरलुत्फ और यारबाज बनाने में मददगार रहा है और रहेगा। वे दीर्घायु हों, यही कामना है। भोपाल आज नहीं तो कल जरूर उन्हें अपने मरकज़ का हीरा मानेगा, इसी उम्मीद के साथ। अंत में तारीफ यही है कि वे ताहिर भाई हैं।

– सुरेश गुप्ता
पूर्व अपर संचालक, जनसंपर्क

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