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राज्यों के पास ही रहेगा खनिज अधिकारों पर टैक्स लगाने का अधिकार

नई दिल्ली।केंद्र और माइनिंग कंपनी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने साफ कर दिया है कि खनिज अधिकारों पर टैक्स लगाने का अधिकार राज्यों के पास ही रहेगा. सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया कि 25 जुलाई को दिए गए उसके फैसले में राज्यों को खनिज अधिकारों पर टैक्स लगाने के अधिकार को बरकरार रखा गया था, जिसे केवल आगे के प्रभाव से ही लागू किया जाना चाहिए. साथ ही, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस फैसले के आधार पर राज्यों द्वारा टैक्स लगाना 1 अप्रैल, 2005 से पहले की अवधि के लिए लागू नहीं होना चाहिए.

कोर्ट ने यह भी कहा कि बकाया टैक्स का भुगतान 1 अप्रैल, 2026 से 12 साल की अवधि में किया जा सकता है. कोर्ट ने आगे कहा कि 25 जुलाई, 2024 से पहले की अवधि के लिए की गई मांग पर कोई ब्याज या जुर्माना नहीं लगाया जाना चाहिए. नौ जजों की संविधान पीठ ने आठ एक के बहुमत से फैसला दिया है. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस अभय एस ओक, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस उज्जल भुइयां, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने ये निर्णय दिया. जस्टिस नागरत्ना ने बहुमत से उलट निर्णय दिया है.

कोर्ट के इस फैसले से किसे फायदा
इस फैसले से खनिज व खदान संपन्न राज्य ओडिशा, झारखंड, बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, राजस्थान और उत्तर- पूर्वी राज्यों को फायदा होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र, खनन कपंनियों द्वारा खनिज संपन्न राज्यों को बकाये का भुगतान अगले 12 वर्ष में क्रमबद्ध तरीके से किया जा सकता है. कोर्ट ने खनिज संपन्न राज्यों को रॉयल्टी के बकाये के भुगतान पर किसी तरह का जुर्माना न लगाने का निर्देश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को एक अप्रैल 2005 के बाद से केंद्र सरकार, खनन कंपनियों से खनिज संपन्न भूमि पर रॉयल्टी का पिछला बकाया वसूलने की अनुमति दी.

 

 

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