मध्य प्रदेश

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से शिक्षकों में चिंता और उहापोह की स्थिति – पुनर्विचार हेतु याचिका दाखिल करने की माँग -ट्रॉयबल वेल्फेयर टीचर्स एसोसिएशन मध्य प्रदेश

ट्रॉयबल वेल्फेयर टीचर्स एसोसिएशन मध्य प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष डी के सिंगौर,महासचिव सुरेश यादव मीडिया प्रभारी हीरानन्द नरवरिया ने बताया कि1 सितम्बर 2025 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा RTE के अंतर्गत कार्यरत देशभर के शिक्षकों के लिए पात्रता परीक्षा को अनिवार्य किए जाने के आदेश से शिक्षकों में गंभीर चिंता और उहापोह की स्थिति उत्पन्न हो गई है। वर्ष 2011 में राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE) द्वारा शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) के लिए नियमावली बनाई गई थी, जिसे राज्यों को भेजा गया। मध्य प्रदेश में वर्ष 2012 से इसी नियमावली के आधार पर परीक्षा आयोजित की जा रही है, और वर्ष 2022 से शिक्षक पात्रता परीक्षा तथा चयन परीक्षा के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति की जा रही है।

यह ध्यान देने योग्य है कि 2011 से पहले भी प्रदेश में शिक्षकों की नियुक्ति परीक्षा द्वारा की जाती रही है, परंतु उस समय शैक्षणिक योग्यताएँ और परीक्षा का पाठ्यक्रम वर्तमान TET से भिन्न था। ऐसे में जो शिक्षक पहले से सेवा में हैं और जिन्होंने अपनी आवश्यक योग्यताएँ पूर्ण कर शासकीय सेवा में प्रवेश किया था, उन्हें पुनः परीक्षा देने के लिए बाध्य करना न्यायसंगत नहीं है।

सर्वोच्च न्यायालय की डबल बेंच का यह निर्णय RTE अधिनियम 2009 की धारा 23(1) की व्याख्या पर आधारित बताया जा रहा है। परंतु मध्य प्रदेश में शिक्षाकर्मियों की नियुक्ति 1998 से सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप की जा रही है। 2001 एवं 2003 में नियुक्त संविदा शाला शिक्षक भी सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर ही कार्यरत हैं।ई.जी.एस.गुरुजी भी परीक्षा के बाद संविदा शाला शिक्षक बने ।अध्यापक संवर्ग में शामिल होने से पहले सभी का वस्तुपरक मूल्यांकन किया गया था और व्यवासायिक योग्यता पूर्ण नहीं करने पर उन्हें अध्यापक सँवर्ग में सम्मिलित नहीं किया गया। नविन शिक्षक संवर्ग में शामिल किए जाने से पहले सभी के सेवा रिकॉर्ड की भी बारीकी से समीक्षा की गई थी।

शिक्षक लोकसेवक हैं और उन्हें भी सेवा में आने के समय सभी आवश्यक योग्यता एवं पात्रता पूरी करनी होती है। किसी एक परीक्षा के आधार पर उनकी सेवा समाप्त करना या पदोन्नति रोकना उचित नहीं है। साथ ही भूतकाल से नियम लागू कर शिक्षकों को नुकसान पहुँचाना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है।

हम यह मानते हैं कि वर्तमान निर्णय पर पुनर्विचार आवश्यक है, क्योंकि—
✔ कई कार्यरत शिक्षक TET के लिए आवश्यक न्यूनतम शैक्षणिक और व्यवसायिक योग्यता पूरी नहीं करते ।
✔ कई राज्यों में NCTE के नोटिफिकेशन से पहले भी पात्रता परीक्षा के माध्यम से शिक्षक नियुक्त किए जा चुके हैं।
✔ वर्षों से कार्यरत कर्मचारियों को नई नियमावली के आधार पर अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
✔ कई राज्यों में नियुक्तियाँ न्यायालय के निर्देशों के तहत हुई हैं।

इसलिए प्रदेश सरकार को उत्तर प्रदेश एवं केरल अन्य राज्यों की तर्ज पर सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल करनी चाहिए। साथ ही तमिलनाडु की तरह सेवारत शिक्षकों के लिए विशेष परीक्षा व्यवस्था भी लागू की जा सकती है।

हम शिक्षकों की सेवा सुरक्षा, नैसर्गिक न्याय, तथा शिक्षा व्यवस्था की स्थिरता के लिए इस निर्णय पर पुनर्विचार की माँग करते हैं। हम आशा करते हैं कि सरकार और न्यायालय शिक्षकों के अधिकारों का संरक्षण करेंगे और उचित समाधान प्रदान करेंगे।

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