शरीर में मौजूद है सारा ब्रह्माण्ड मष्तिष्क में ब्रह्मा,हृदय में बिष्णु ,कटिबंन्ध के पास शिव स्थान है-:पं०सुशील महाराज

श्री शिव शक्ति धाम आश्रम के पीठ आचार्य पंडित सुशील महाराज ने धर्म ग्रंथ के गूढ रहस्यों को उजागर करते हुए बताया है।आदि शिव के मन में श्रृष्टि पैदा करने का बिचार पैदा होने पर आदि शिव से शिवा की उत्पत्ति हुई थी।फिर शिव से बिष्णु और बिष्णु की कमल नाभि से ब्रह्मां और ब्रह्मां के शीष से रुद्र शंकर भगवान की उत्पत्ति हुई थी।फिर ब्रह्मां जी और बिष्णु के बीच अहंकार होने एवं युद्ध होने पर शिव अर्धनारीश्वर वनकर प्रकट हुये।योनि रूप में शिवा प्रकट हुई थीं।लिंग रूप में शिव प्रकट हुये थे।ब्रह्मां जी को श्रृष्टि निर्माण का कार्य सौपा गया।बिष्णु भगवान को श्रृष्टि पालन एवं रुद्र शिव को श्रृष्टि संहार का कार्य सौपा गया।ब्रह्मा जी द्वारा ही सती,लक्ष्मी,और सरस्वती की उत्पत्ति का बिधान रचा गया।ब्रह्मा जी शरीर रूपी गाडी के निर्माता हैं।शरीर रूपी गाडी का इंजन श्री बिष्णु भगवान हैं । शरीर रूपी गाडी का ब्रेक भोले शिव भगवान है।भोले शिव द्वारा दिया गया श्रृष्टि संचालन का फार्मूला(लिंग-योनि) आज भी प्रत्येक शरीर में साक्षात प्रमाण स्वरूप मौजूद है । ईश्वर आदि शिव और शिवा एक हैं।उनके अंश आवश्यकता नुसार समय-समय पर अनेकों रूपों को धारंण करके श्रृष्टि का संतुलन वनाने का कार्य करते है।लक्ष्मी का अस्तित्व उसी शरीर में होता है जिस शरीर में बिष्णु रूपी इंजन चालू हालत में होता है।बिष्णु रूपी इंजन खराव होने पर शरीर मृत हो जाता है।फिर उस शरीर के सामने लक्ष्मी का कोई महत्व नहीं होता है।और लक्ष्मी के विना शरीर द्वारा आनंन्द मय जीवन नहीं हो सकता है।लक्ष्मी और बिष्णु एक दूसरे के पूरक होते हैं ।