
पंचांग के अनुसार, दशहरा के लिए आवश्यक आश्विन शुक्ल दशमी तिथि का शुभारंभ 1 अक्टूबर को शाम को 7 बजकर 1 मिनट से होने वाला है. दशमी तिथि का समापन 2 अक्टूबर को शाम 7 बजकर 10 मिनट पर होगा. उदयातिथि के आधार पर दशहरा 2 अक्टूबर को है.इस साल दशहरा के दिन रवि योग बन रहा है. रवि योग पूरे दिन बना रहेगा. रवि योग में सूर्य का प्रभाव अधिक होता है. सूर्य के प्रभाव से सभी प्रकार के दोष मिट जाते हैं.रवि योग के अलावा दशहरा पर सुकर्मा योग और धृति योग बनेंगे. उस दिन सुकर्मा योग प्रात:काल से शुरू होकर रात 11 बजकर 29 मिनट तक रहेगा. उसके बाद से धृति योग होगा. सुकर्मा और रवि योग दोनों ही शुभ फलदायी है. इसमें आप कोई भी मांगलिक कार्य कर सकते हैं.दशहरा पर उत्तराषाढा नक्षत्र प्रात:काल से लेकर सुबह 9 बजकर 13 मिनट तक है. उसके बाद से श्रवण नक्षत्र है, जो पूर्ण रात्रि तक है.दशहरा के दिन शस्त्र पूजा का समय दोपहर में 2:09 बजे से लेकर 2:56 बजे तक है. इस समय शस्त्र पूजा कर लेनी चाहिए.दशहरा के दिन रावण दहन प्रदोष काल में करने का विधान है. प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद शुरू होता है. दशहरा को सूर्यास्त शाम 06 बजकर 06 मिनट पर होगा. इसके बाद से प्रदोष काल का प्रारंभ होगा. इस समय के बाद आप रावण दहन कर सकते हैं
तंत्र प्रयोग के लिए होली दीपावली और ग्रहण का विशेष महत्व है वैसे ही दशहरा के दिन भी तंत्र सिद्धियां और तांत्रिक प्रयोग किए जाते हैं दशहरे के भी दिन अगर किसी पर तंत्र क्रिया की गई हो तो उससे छुटकारा भी पा सकते हैं हमारे वेद और उपनिषदों में बेहद तार्किक और आध्यात्मिक बातें बताई गई हैं। यहां साधनाओं, ऊर्जाओं और आध्यात्मिक तौर पर जागरुक होने के बारे में उल्लेख मिलता है। सनातन धर्म के कई ऐसे त्योहार हैं जैसे – महाशिवरात्रि, शारदीय और चैत्र नवरात्रि, दशहरा और दिवाली जब ऊर्जाएं अपने चरम पर होती हैं लेकिन एक आम मनुष्य के लिए ये दिन सिर्फ त्योहार होते हैं क्योंकि वह इतने गहरे स्तर पर जाकर कभी सोचता ही नहीं कि इस दिन की ऊर्जाओं का क्या महत्व है और कैसे वो इसे इस्तेमाल कर सकता है।ऐसे ही दशहरा की ऊर्जाओं के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। उन्हें पता ही नहीं होता कि प्रभु श्रीराम ने जिस दिन को रावण की मृत्यु के लिए चुना वह मात्र नियति नहीं हो सकती। वह ऊर्जाओं के उस स्तर को दिखाती है जहां आप अपनी इच्छाशक्ति से कुछ भी हासिल करने की योग्यता रखते हैं लेकिन ये हर किसी के लिए नहीं है। यह सिर्फ उन लोगों के लिए है जो शक्तियों, ऊर्जाओं, चेतना और योग को समझते हैं क्योंकि बिना इस समझ के ऊर्जाओं का प्रयोग संभव नहींरावण एक महान ज्ञानी पंडित था। उसने भगवान शिव की जो साधनाएं की हैं वो एक आम इंसान करने की कभी सोच भी नहीं सकता। रावण ने ही शिव तांडव स्तोत्र की रचना की है जिसके उच्चारण मात्र से मनुष्य की एनर्जी का लेवल बढ़ जाता है। यही मंत्रों की ताकत होती है। इनके हर एक शब्द की ध्वनि में कंपन होता है जो हमारे शरीर की ऊर्जाओं को संतुलित करता है और उन्हें ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं के साथ मिलाता है।रावण ने जिन साधनाओं के बल पर तपस्या की और भगवान को प्रसन्न किया वह उसके ज्ञान और ऊर्जाओं का नतीजा था। जो भी व्यक्ति जीवन के सत्य को जानने की तलाश में रहता है उसके लिए दशहरा का दिन बेहद खास हो जाता है। वह रावण दहन से ज्यादा अपने अंदर छिपी शक्ति की खोज में लग जाता है। दशहरा के दिन आप ध्यान लगाइए और फिर देखिए कि कैसे इस दिन की एनर्जी आपको ब्रह्मांड में छिपे कई सत्यों से रूबरू करवाती है। रावण ने जिन साधनाओं के बल पर तपस्या की और भगवान को प्रसन्न किया वह उसके ज्ञान और ऊर्जाओं का नतीजा था। जो भी व्यक्ति जीवन के सत्य को जानने की तलाश में रहता है उसके लिए दशहरा का दिन बेहद खास हो जाता है। वह रावण दहन से ज्यादा अपने अंदर छिपी शक्ति की खोज में लग जाता है। दशहरा के दिन आप ध्यान लगाइए और फिर देखिए कि कैसे इस दिन की एनर्जी आपको ब्रह्मांड में छिपे कई सत्यों से रूबरू करवाती है।
दशहरा के दिन पर नीलकंठ पक्षी के दर्शन को बेहद शुभ माना जाता है। कहा जाता है विजयदशमी के दिन अगर इस पक्षी के दर्शन हो जाते हैं तो उस व्यक्ति धन-धान्य की प्राप्ति होती है। इसे शुभ मानने का कारण ये है कि भगवान राम ने नीलकंठ के दर्शन के बाद रावण पर विजय प्राप्त की थी।रावण के वध और लंका विजय के प्रमाण स्वरूप श्रीराम सेना लंका की राख अपने साथ ले आई थी, इसी के चलते रावण के पुतले की अस्थियों को घर ले जाने का चलन शुरू हुआ। कहा जाता है कि रावण की अस्थियां घर में रखने से समृद्धि आती है और बुरी बलाएं दूर रहतीं हैं।दशहरे के दिन शमी के पेड़ के नीचे दीपक जलाने से सभी तरह के कोर्ट केस में विजय मिलती है। शमी को अग्नि देव का रूप भी माना जाता है, इसलिए हवन में भी शमी की लकड़ियों का उपयोग किया जाता है। शमी के पेड़ के नीचे दीपक जलाने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
इसके अलावा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लंका पर विजयी पाने के बाद श्रीराम ने शमी पूजन किया था। नवरात्र में भी मां दुर्गा का पूजन शमी वृक्ष के पत्तों से करने का विधान है। गणेश जी और शनिदेव, दोनों को ही शमी बहुत प्रिय है। भारत के तमाम राजपरिवार आज भी इस दिन शमी के पेड़ का पूजन करते हैं।
एस्ट्रोलॉजर पंडित पूजा दुबे ‘ मोहिनी ‘टैरो कार्ड रीडर न्यूमैरोलॉजिस्ट
रेकी ग्रैंडमास्टर
कवित्री
फाउंडर एंड ओनर ऑफ़
द एस्ट्रो विजडम 108
हॉनर एंड द फाउंडर ऑफ़ नमो हरि सोशल क्लब.
भोपाल मध्य प्रदेश.