भाषाओं के बीच आपसी संबंध स्थापित कर सकते हैं ‘अनुवाद’
हिंदी भवन में मराठी से अनुदित पुस्तकों का लोकार्पण संपन्न

भोपाल। अनुवाद एक ऐसी विधा है जिसकी सहायता से हम एक भाषा का साहित्य अन्य भाषा-भाषियों के बीच पहुंचा सकते हैं। भाषाओं के बीच आपसी समन्वय पैदा करने की दृष्टि से भी यह महत्वपूर्ण है। सरल-सहज और रोचक अनुवाद के जरिये कोई कृति आये तो पाठक उससे सहज ही जुड़ जाता है। युवाओं को इस विधा में आगे आना चाहिए। यह कहना है सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल नरेशचंद्र मारवाह का। वे बुधवार शाम हिंदी भवन में साहित्यकार डॉ. प्रतिभा गुर्जर द्वारा मराठी से हिंदी मेंअनुदित की गई दो पुस्तकों के लोकार्पण समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। मप्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता समिति के मंत्री संचालक कैलाशचंद्र पंत ने की। जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे तथा अक्षरा के प्रधान संपादक मनोज श्रीवास्तव उपस्थित रहे। प्रतिभा गुर्जर ने प्राणवीर महाराणा प्रताप’ एवं ‘हिन्दू संस्कृति का वैश्विक इतिहास’ शीर्षक पुस्तकों का अनुवाद किया है। अध्यक्षीय उद्बोधन में कैलाशचंद्र पंत ने कहा कि प्रतिभा गुर्जर का इन पुस्तकों का अनुवाद के लिए चयन करना उनके देश के प्रति राष्ट्रीय भावना को दर्शाता है। उनके लेखन की तरह ही उनका अनुवाद भी समृद्ध है। विशिष्ट अतिथि के रूप में साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कहा ऐतिहासिक महत्व के लेखन की जो परम्परा मराठी में मिलती है वह हिंदी में कम है। प्रतिभा जी के इस प्रयास के बाद हम उम्मीद कर सकते हैं कि हिंदी लेखक भी इस परंपरा को अपनायेंगे। दूसरे विशिष्ट अतिथि मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि प्रतिभा जी के अनुवाद की टोन अद्भुत है। उन्होंने अनुवाद करते समय व्याकरण,भाषा का ध्यान तो रखा ही साथ ही उसके भाव को भी बरकरार रखा है। इसके पूर्व कार्यक्रम की हेतु डॉ. प्रतिभा गुर्जर ने कहा कि एक बार हिंदी भवन में ही एक कार्यक्रम में आये मराठी कवि की कविता के अनुवाद प्रस्तुत करने का जिम्मा दादा पंतजी ने दिया था। यहीं से इन कृतियों के अनुवाद का बीज पड़ा था। आंरभ में रायपुर से आये प्रतिभा गुर्जर के बड़े भाई देवरस कलमाड़ी ने स्वागत् वक्तव्य दिया। समिति के सहमंत्री डॉ. संजय सक्सेना ने कैलाशचंद्र पंत एवं सच्चिदानंद जोशी के आलेख का पाठ पढ़ा। सरस्वती वंदना अक्षरा की सहसंपादक जया केतकी ने प्रस्तुत की। संचालन मैथिली साठे ने किया तथा आभार मंगला देवरस ने व्यक्त किया। इस अवसर पर सप्रे संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर, डॉ. मंगला अनुजा,डॉ. एनडी गार्गव, चंद्रप्रकाश जायसवाल, उषा जायसवाल सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार एवं अन्य प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।