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कला, संस्कृति और संवेदनाओं का समावेशन है विश्वरंग : डॉ. मोहन यादव

संस्कृति, सिनेमा, कौशल, कला और क्रिकेट पर सत्रों के नाम रहा विश्वरंग का दूसरा दिन

भोपाल। विश्वरंग टैगोर अंतरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव के दूसरे दिन का भव्य उद्घाटन मप्र के माननीय मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जी द्वारा किया गया। इस दौरान उनके साथ मंच पर विश्वरंग के महानिदेशक और रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधापति संतोष चौबे, विश्वरंग के निदेशक डॉ. अदिति चतुर्वेदी वत्स, सीवीआरयू खंडवा के कुलपति डॉ. अरूण रमेश जोशी उपस्थित रहे। इस दौरान अपने वक्तव्य में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि भाषा और संस्कृति एक-दूसरे की सहज पूरक हैं। संस्कृति, भाषा को वह कथा-बीज देती है, जिनसे लोक-साहित्य से लेकर वैश्विक साहित्य जन्म लेता है और भाषा, संस्कृति को वह अभिव्यक्ति देती है, जिससे परंपराएं पीढ़ियों तक सुरक्षित यात्रा कर पाती हैं। भाषा और संस्कृति दोनों एक-दूसरे की संरक्षक भी हैं। साहित्य का एक ही रंग होता है, राग और आनंद का। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि हिन्दी भाषा सच्चे अर्थों में लोक भाषा है। हिन्दी हमारे माथे की बिन्दी है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आज हमारी हिन्दी वैश्विक मंच पर भारत की पहचान बन रही है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति ने अधिसत्ता नहीं, सदैव प्रभुसत्ता और लोक बन्धुत्व की भावना रखी। हमारी संस्कृति जियो और जीने दो की पवित्र भावना से ओत-प्रोत है। यही कारण है कि आज भारतीय संस्कृति दुनियाभर में अपनी अलग पहचान रखती है।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव शुक्रवार को रवीन्द्र भवन में साहित्य और कला के सबसे बड़े उत्सव ‘विश्वरंग–2025 टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव’ में देश-विदेश से आए साहित्यकारों, कलाकारों और युवाओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने सभी का मध्यप्रदेश की धरती पर स्वागत-अभिनंदन किया। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश की सृजनात्मक और कलात्मक धरती हिन्दी भाषा और भारतीय संस्कृति को जोड़ने वाली सेतु बन गई है। हमारा भोपाल अब भारतीय संस्कृति, भारतीय भाषा चेतना और वैश्विक साहित्यिक संवाद का केन्द्र बन गया है। महोत्सव में विभिन्न देशों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। कार्यक्रम में कई सत्र, कविता पाठ, पैनल चर्चा, कला प्रदर्शनियां और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां आयोजित की जा रही हैं। इस अवसर पर मुख्यमंत्री डॉ. यादव को विश्वरंग का कैटलॉग, हिन्दी भाषा की मार्गदर्शिका एवं पुस्तकें भेंट की गईं।

डॉ. सिद्धार्थ चतुर्वेदी ने अपने वक्तव्य में डॉ. मोहन यादव के नेतृत्य में औद्योगिक प्रगति के लिए किए जा रहे प्रयासों के लिए उन्हें धन्यवाद दिया और बताया कि विश्वरंग की पहल के जरिए हम युवाओ को हमारी संस्कृति, साहित्य और सभ्यता से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
इस दौरान संतोष चौबे ने अपने वक्तव्य में कहा कि कला, साहित्य, संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए मप्र सरकार एवं मुख्यमंत्री के लगातार प्रयासों को रेखांकित किया और बताया कि रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के अंतर्गत विश्वरंग भी इसी दिशा में लगातार कार्य कर रहा है। इस दौरान विश्वरंग की फिल्म दिखाई गई और विश्वरंग से संबंधित साहित्य प्रदान किया गया।

मंगलाचरण-आवाहन एवं वंदना
विश्व रंग के द्वितीय दिवस का शुभारंभ अत्यंत भव्यता और आध्यात्मिक सौम्यता के साथ हुआ। कार्यक्रम का आरंभ द्रुपद संस्थान के कलाकारों द्वारा तानपुरे की सुरीली करतल-ध्वनियों, और मनोहर सरगम के साथ अत्यंत भव्य रूप से हुआ। कलाकारों ने सर्वप्रथम राग भोपाली जो कि एक पेंटाटोनिक राग है जैसी मधुर रचना प्रस्तुत की। इसके बाद कलिंद राग की जिसने की सभागार में सुर-माधुरी हो उठा। उन्होंने राग यमन और राग केदार का गायन किया जिससे सभागार की पवित्रता और बढ़ गई।कार्यक्रम की उल्लेखनीय सफलता और गरिमामय संचालन की सराहना के लिए श्री उमा कांत गुमदेचा जी को विशेष रूप से आमंत्रित कर उनका सम्मान किया गया।

विश्वरंग 2025: एआई युग में मनुष्य की चेतना पर संकट और भाषा के क्षरण पर सवाल
विश्व रंग के दूसरे दिन के उद्घाटन सत्र ने साहित्य, कला, समाज और 21वीं सदी की जटिलताओं को समझने का एक अर्थपूर्ण अवसर दिया। मंच पर प्रसिद्ध चिंतक नंदकिशोर आचार्य और विश्वरंग के महानिदेशक संतोष चौबे मौजूद थे। दोनों के बीच लगभग आधे घंटे चली इस परिचर्चा में एआई के खतरे, भाषा, तकनीक, मनुष्य की चेतना, हिंसा और भविष्य के सांस्कृतिक संकट जैसे मुद्दे प्रमुख रूप से उभरे। संतोष चौबे ने एआई के दौर पर गहरी चिंता जताते हुए भाषा और मानवीय चेतना के क्षरण पर बात की। उन्होंने कहा, ‘अगर भाषा हमारे हाथ से निकल गई, तो यह हमारे समय का सबसे बड़ा मुश्किल दौर होगा।’ उन्होंने जेनरेटिव एआई को इस संकट का सबसे खतरनाक पक्ष बताया। इसका उदाहरण देते हुए चौबे ने एक किस्सा साझा करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी पोती को कहा कि भक्ति आंदोलन पर लिखो तो उसने एआई से ‘भक्ति आंदोलन’ पर लेख लिखने को कहा और एआई ने तुरंत एक सुगठित और सुंदर लेख तैयार कर दिया। यह सहजता जहां तकनीकी उन्नति का संकेत है, वहीं मनुष्य के विचार-शक्ति पर खतरे की आहट भी समेटे हुए है। चौबे ने चेताया, ‘समय का सबसे बड़ा संकट यह है कि एआई हमारे दिमाग को पकड़ रहा है। अगर उसने हमारी सोच को शांत कर दिया, तो हमारे लिए हालात बहुत कठिन हो जाएंगे।’
नंदकिशोर आचार्य ने अपनी दृष्टि रखते हुए कहा कि एआई कितना भी प्रभावी हो, अंतिम जिम्मेदारी मनुष्य की चेतना की है। ‘समाधान उन्हीं के पास है जो निर्णय लेते हैं, लेकिन असली शक्ति मनुष्य की सजगता में है। यदि मनुष्य स्वयं सोच रहा है, अपने दिमाग का कार्य खुद कर रहा है, तो कोई तकनीक उसे विस्थापित नहीं कर सकती।’ आचार्य ने एआई को एक ‘दूसरे प्रकार के अस्तित्व के रूप में देखा, जिसका उपयोग आवश्यकता और उसकी सीमाओं के भीतर ही होना चाहिए। समाज में बढ़ती हिंसा पर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हिंसा का स्वीकार्य होना एक वास्तविकता बनता जा रहा है, किंतु यह उचित नहीं है। उन्होंने कहा, ‘बात इसी पर होनी चाहिए कि हम इसे कैसे रोकें। मैं हमेशा कहता हूं] जो सही है, वही संभव है।’ साहित्य, संस्कृति और मनुष्य के विवेक को केंद्र में रखकर हुआ यह संवाद विश्व रंग के सबसे विचारोत्तेजक सत्रों में से एक रहा, जिसने तकनीक और मानवीय चेतना के बीच नए संतुलन की खोज को और जरूरी बना दिया।
निर्णय खुद के लिए लें, दूसरों को खुश करने के लिए नहीं – अंकुर वारिकू
विश्व रंग के नए दौर के नए कौशल सत्र में रविवार को स्टार्टअप गुरु, मोटिवेशनल स्पीकर, कंटेंट क्रिएटर और छह पुस्तकों के लेखक अंकुर वारिकू मंच पर पहुंचे। सिद्धार्थ चतुर्वेदी के साथ हुए इस 40–45 मिनट के संवाद ने हंसध्वनि सभागार को ऊर्जा से भर दिया। वारिकू को नए कौशल पर बोलने के लिए बुलाया गया था, लेकिन मंच संभालते ही उन्होंने अपनी शैली में भोपाल और मध्यप्रदेश की गर्मजोशी की तारीफ के साथ शुरुआत की। उन्होंने मुस्कराते हुए कहा- ‘पोहा-जलेबी खाकर ही मंच पर आया हूं, और भोपाल हर बार मुझे घर जैसा लगता है।’ उन्होंने बताया कि पिछले साल वे 15 दिन परिवार के साथ मध्यप्रदेश घूमते रहे- इंदौर, सतपुड़ा, ओरछा, पचमढ़ी, भोपाल और ये प्रदेश वाकई देश के दिल जैसा है। यहां के लोग आपको बाहरी होने का अहसास नहीं होने देते हैं।
उन्होंने सीधे सभागार में बैठे युवाओं से पूछा- यहां 20 साल वाले कितने हैं? 30? 40? 50? यह सवाल महज़ उम्र पता करने के लिए नहीं था, बल्कि इस बात के लिए था कि हर उम्र अपने साथ उसकी चुनौतियां, उम्मीदें और नई सीखें लेकर आती है। फिर उन्होंने अपनी जिंदगी की कहानी सुनाना शुरू किया- एक कहानी जो कश्मीर से दिल्ली, दिल्ली से अमेरिका और फिर एक साहसी मोड़ लेकर वापस भारत लौटने तक जाती है। उन्होंने बताया कि वे कश्मीर से हैं, लेकिन बचपन में परिवार दिल्ली आ गया था। ‘अब मैं पूरी तरह डेल्ही बॉय हूं।’ मिडिल क्लास परिवार, पिता की छोटी-सी नौकरी, एक पुराना स्कूटर और पैसों की तंगी इन हालात ने उन्हें संवेदनशील बनाया। उन्होंने कहा- ‘पैसे से नफरत हो गई थी, क्योंकि उससे जुड़ी मुश्किलें रोज़ हमारे घर में दिखती थीं।
दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रवेश लेने के बाद उन्होंने तीन बड़े सपने बुने- पीएचडी करना, स्पेस साइंटिस्ट बनकर नासा पहुंचना और सबसे पहले चांद पर कदम रखने वाला व्यक्ति बनना। अपने पिता को जब ये बात कही तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ, लेकिन इसी सपने ने उन्हें अमेरिका पहुंचा दिया। लेकिन वहां, मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी में वे कुछ दिन में खुद को ‘जिंदा लाश’ की तरह महसूस करने लगे। बोले- ‘मैं पढ़ रहा था, टॉप कर रहा था, लेकिन खुश नहीं था। और अगर खुशी नहीं है, तो उसकी कीमत क्या है?’ यहीं से उनका पहला बड़ा मोड़ आया- उन्होंने पीएचडी छोड़ने का निर्णय ले लिया।
भारत लौटकर उन्होंने एमबीए करने का फैसला किया, पापा के विरोध के बावजूद। ISB में एडमिशन लिया, 15 लाख का लोन लिया। पढ़ाई के साथ उन्होंने अपने दोस्त के साथ मिलकर उसके स्टार्टअप आइडिया secondshaadi.com पर काम शुरू किया- पहले पार्ट टाइम, फिर फुल टाइम। वारिकू ने कहा- कई बार बिना टारगेट के उठाया गया कदम भी आपको वहां पहुंचा देता है, जहां आप टारगेट सेट करके भी नहीं पहुंच सकते।’
अपने लाइव सेशन में उन्होंने बार-बार कहा कि दुनिया को जानने का सबसे खराब तरीका सिर्फ किताबें हैं- ‘दुनिया को समझना है तो उसे जीना पड़ेगा, अनुभव करना पड़ेगा।’ बातचीत के अंत में उन्होंने कहा कि उनकी सफ़लता के पीछे एक ही सिद्धांत है- ‘मैंने कभी मम्मी-पापा की नहीं सुनी। हमेशा खुद को सुना। गलतियां कीं, कन्फ्यूज़ हुआ, पर रुका नहीं। और इसलिए आज मैं यहां हूं।’
हिंदी ने घर घर तक पहुंचाया : आकाश चोपड़ा
दिन का तीसरा प्रमुख सत्र क्रिकेटर एवं प्रसिद्ध कॉमेंटेटर आकाश चोपड़ा का रहा। इस दौरान उनके साथ चर्चा के लिए स्कोप ग्लोबल स्किल्स यूनिवर्सिटी के चांसलर डॉ. सिद्धार्थ चतुर्वेदी मौजूद रहे। इस दौरान आकाश चोपड़ा ने हिंदी कॉमेंट्री के महत्व पर बात करते हुए कहा कि हिंदी ने उनको घर घर तक पहुंचाया है। वे कहते हें – हिंदी में बात है क्योंकि हिंदी में जज्बात है। आगे वे कहते हैं कि बतौर कमेंटेटर यह महत्वपूर्ण है कि वह उस समय के इमोशन को इस तरह बता पाएं कि वह लोगों तक ठीक से पहुंच सके। कार्यक्रम में उनकी किताब पर भी चर्चा की गई। वे कहते हैं कि क्रिकेट पर किताब लिखना इस लिए जरूरी है, क्योंकि लेखन जरिए जब हम पिछले इतिहास को समझते है उसी की वजह से आज को महत्व दे पाते हैं।

संगीत ऐसी शक्ति जो हमें रोजमर्रा की चिंताओं से दूर ले जाती है – स्वानंद किरकिरे
“शब्दों की दुनिया, ज़िंदगी का संगीत” शीर्षक वाला यह सत्र प्रसिद्ध गीतकार, लेखक, गायक और कवि स्वानंद किरकिरे द्वारा प्रस्तुत किया गया। अपनी गहरी और संवेदनशील लेखन शैली के लिए जाने जाने वाले किरकिरे जी ने इस सत्र में शब्दों, संगीत और जीवन के बीच के संबंध को सरल और प्रेरणादायक तरीके से समझाया। यह सत्र अत्यंत रोचक, ज्ञानवर्धक और रचनात्मक अनुभवों से भरपूर था। स्वानंद किरकिरे ने अपने प्रसिद्ध गीत “बावरा मन” के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि यह गीत मानव मन की बेचैनी, जिज्ञासा और सपनों के सफर को दर्शाता है। उन्होंने साझा किया कि यह गीत उनके निजी अनुभवों और भावनाओं से प्रेरित है, जो जीवन को जानने और समझने की इच्छा को दर्शाता है। किरकिरे जी ने कहा कि संगीत में ऐसी शक्ति होती है जो हमें हमारी रोज़मर्रा की चिंताओं से दूर ले जाकर एक अलग दुनिया में पहुँचा देती है। जब शब्द और सुर एक साथ मिलते हैं, तब वे एक ऐसी अनुभूति पैदा करते हैं जो मन को शांत, प्रेरित और ऊर्जावान बनाती है। उन्होंने अपने प्रिय गीत “बहती हवा सा था वो” के बारे में भी बताया कि यह गीत एक ऐसे व्यक्ति की कहानी कहता है जो सरल, निश्चिंत और जीवन को खुलकर जीने वाला होता है। यह गीत हमें उन लोगों की याद दिलाता है जो अपनी सकारात्मक सोच और स्वतंत्र स्वभाव से दूसरों को प्रेरित करते हैं। गीत का संदेश है कि जीवन को बहती हवा की तरह हल्का, सहज और आनंदमय बनाकर जीना चाहिए।

समानांतर सत्रों की जानकारी
अशोक भौमिक ने गोया–पिकासो के चित्रों से समझाया युद्ध का सच
विश्वरंग में बुधवार को “युद्ध और युद्ध-विरोधी चित्रकला” विषय पर एक प्रभावशाली और दुर्लभ शैक्षणिक सत्र आयोजित किया गया। इस अवसर पर देश के वरिष्ठ चित्रकार, कला आलोचक और साहित्यकार अशोक भौमिक ने मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित होकर युद्ध की त्रासदी और कला के मानवीय स्वरूप पर गहन विचार व्यक्त किए। सत्र के टिप्पणीकारों—सुमन कुमार सिंह, जानी एम.एल., और जय प्रकाश त्रिपाठी—ने युद्ध-विरोधी कला की समकालीन आवश्यकता पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि स्पेन के पार्दो म्यूज़ियम में सुरक्षित 400 ईसा पूर्व अलेक्जेंडर के युद्ध दृश्य आज भी सत्ता की बर्बरता और राजनीतिक महत्वाकांक्षा को उजागर करते हैं। उन्होंने कहा कि डिजिटल युग में भी कला की भूमिका कमजोर नहीं हुई है, बल्कि आज कलाकारों के पास अभिव्यक्ति के और अधिक प्रभावी माध्यम मौजूद हैं, जिनके द्वारा वे हिंसा, दमन और युद्ध की राजनीति के विरुद्ध सशक्त स्वर उठाते हैं।
सत्र “कविता में सदी के सरोकार (भाग–2)”
विश्वरंग 2025 के प्रथम दिन आयोजित इस महत्वपूर्ण काव्य-सत्र “कविता में सदी के सरोकार (भाग–2)” का शारदा सभागार में गरिमामय आयोजन किया गया। इस दौरान श्री कुमार अनुपम जी की प्रस्तुति अत्यंत सारगर्भित और साहित्यिक गहराई से भरपूर रही। उन्होंने श्रीधर पाठक, माखनलाल चतुर्वेदी जैसे सदी के महत्वपूर्ण साहित्यकारों की रचनाओं और उनके सामाजिक सरोकारों पर प्रकाश डाला। डॉ. वीणा सिंह ने कहा कि कविता लिखना एक मानसिक, संवेदनात्मक और आत्मिक प्रक्रिया है। श्री लीलाधर मंडलोई का वक्तव्य मंडलोई जी ने विश्व प्रसिद्ध कवि फेदेरिको गार्सिया लोर्का के कथन को उद्धृत करते हुए कहा कि कविता का विस्तार बिल्कुल आकाश की तरह अनंत होता है। अध्यक्षीय उद्बोधन श्री अरुण कमल का रहा।

प्रवासी जीवन स्वयं में कथेतर साहित्य है
सत्र: ‘प्रवासी साहित्य : जीवन-स्पर्शी कथेतर साहित्य’ में सत्र के प्रथम वक्ता रामा तक्षक जी ने प्रवासी साहित्य को नवजीवन का अनुभव बताते हुए इसे स्मृतियों के पुनर्पाठ के रूप में प्रस्तुत किया। डॉ. पूर्णिमा वर्मन (शारजाह) ने हिंदी के अंतरराष्ट्रीय विस्तार पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि भारतवासी अक्सर प्रवासी भारतीयों की संवेदनाओं, संघर्षों और अनुभवों से परिचित नहीं होते। कुमार सुरेश जी ने कहा कि प्रवासी जीवन स्वयं में कथेतर साहित्य है, क्योंकि इसमें यथार्थ, स्मृति, संघर्ष और संवेदनाएँ समाहित होती हैं। डॉ. सलवतुर ने ‘हिंदी भाषा कोश’, मुहावरों और लोकोक्तियों पर अपने महत्वपूर्ण शोध का उल्लेख किया।

सत्र- 19 “चटखारों की चौपाल”
सत्र- 19 “चटखारों की चौपाल” में प्रमुख वक्ता के रूप में फूड समीक्षक प्रो. पुष्पेश पंत के साथ में विश्वरंग निदेशक डॉ. अदिति चतुर्वेदीत वत्स और आईसेक्ट निदेशक डॉ. विनिता चौबे ने वार्ता की। इस दौरान भोजन संस्कृति के विषय में रोचक प्रश्न पूछे गए जिसका उन्होंने मजेदार अंदाज में जवाब दिया। उन्होंने उत्तर भारतीय एवं दक्षिण भारतीय भोजन के अंतर के विषय में बताया। उन्होंने व्यंजनों से जुड़े इतिहास से रूबरू कराया और अपनी आने वाली नई पुस्तकों के बारे में जानकारी साझा की। इस दौरान उन्होंने विश्वरंग प्रतीक चिह्न देकर सम्मानित किया गया।

दिव्य प्रकाश दुबे की चर्चित कृति ‘यार पापा’ पर हुई चर्चा
‘लेखक से मिलिए’ कार्यक्रम में प्रतिष्ठित लेखक दिव्य प्रकाश दुबे और वार्ताकार मुदित श्रीवास्तव ने सामूहिक संवाद का समृद्ध अनुभव प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का केंद्र रहा दिव्य प्रकाश दुबे की चर्चित कृति ‘यार पापा’, जिसे युवाओं से लेकर अनुभवी पाठकों तक ने विशेष सराहना दी है। इस संवाद सत्र में लेखक ने ‘यार पापा’ के सृजन-प्रक्रिया के बारे में बताते हुए कहा की किताब लिखने के लिए बच्चा बनना पड़ेगा जिससे आपकी जिज्ञासु प्रवृत्ति बनी रहती है। पात्रों की मनोभूमि और आज के सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों पर पुस्तक की प्रासंगिकता पर विस्तार चर्चा करते हुए कहा कि लिखने की मेरी बेचैनी ही थी, जिसने यार पापा लिखने की प्रेरणा दी।

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