खबरसंपादकीय

चांद के पार चलो…………..- डॉ. पी.के पुरोहित

राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस पर विशेष

चांद के पार चलो…………..- डॉ. पी.के पुरोहित

यहाँ यह लाइन किसी फिल्म के गीत के लिए नहीं बल्कि चांद के रहस्य व रोमांच को जानने की एक यात्रा का प्रथम कदम है। हम सभी जानते हैं की चांद हमारे सौर मंडल का एक ऐसा भाग है जो फ़िल्मी दुनिया के गीतकारों, विभिन्न धार्मिक परंपरओं, एवं उस से भी आगे दुनिया के वैज्ञानिकों के अनुसन्धान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है, जिसने पिछले कुछ समय में दुनिया भर के वैज्ञानिकों का ध्यान अपनी और आकर्षित किया है। चांद के पार चलने का मतलब है चांद की सतह पर अनुसन्धान करना एवं उसके रहस्यों को जानने की दिशा में कदम बढ़ाना। इस बात में कोई अतिशियोक्ति नहीं है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रयान मिशन के माध्यम से चांद को जीतकर सूरज की ओर भी सफलता का कदम बड़ा दिया है। 23 अगस्त 2024 को देश अपना पहला राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस मनाएगा जिसका विषय होगा “चंद्रमा को छूते हुए जीवन को छूना: भारत की अंतरिक्ष गाथा।” एक वर्ष पूर्व 23 अगस्त 2023 शाम लगभग 6 बजे पूरी दुनिया का वैज्ञानिक समुदाय भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की इस अद्भुत सफलता का साक्षी बना था जब भारत का चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर सफलतापूर्वक उतरा था। भारत उस दिन चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचने वाला पहला देश बना था और रूस, अमेरिका और चीन के बाद चंद्रमा पर लैंडिंग करने वाला चौथा देश बना। निसंदेह अंतरिक्ष दिवस भारत में साइंस एवं टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अध्यनन कर रहे स्टूडेंट्स, वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को अंतरिक्ष के क्षेत्र में कार्य करने के लिए प्रेरित करेगा, और यही इस दिवस की सार्थकता भी होगी।

आइये इसरो की चंद्रयान मिशन की उपलब्धियों को जानने का प्रयास करते हैं।

चंद्रयान-3 का प्रमुख उद्देश्य चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करना, चांद की सतह का अन्वेषण करना और वैज्ञानिक जानकारी एकत्र करना करना था जिसमे वह सफलता के झंडे लहरा चुका है। इस मिशन की सफलता न केवल भारत की चंद्रमा कार्यक्रम के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह भारत की क्षमताओं और वैज्ञानिक उन्नति को भी दर्शाता है। यह मिशन चंद्रयान-2 की चुनौतियों से निपटते हुए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करना था। पिछला मिशन चंद्रयान-2 सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करने के बाद अंतिम समय में सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी के कारण उतरने की नियंत्रित प्रकिया में विफल हो गया था। चंद्रयान-3, चंद्रयान-2 का अनुवर्ती मिशन है, इसमें चंद्रयान-2 के समान एक लैंडर और एक रोवर है, लेकिन इसमें ऑर्बिटर नहीं है। चंद्रयान-3 एलवीएम3 द्वारा का प्रक्षेपण सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से 14 जुलाई, 2023 को उड़ान भरी थी। अंतरिक्ष यान ने 05 अगस्त 2023 को चंद्र कक्षा में निर्बाध रूप से प्रवेश किया। 29 अगस्त, 2023 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सल्फर, एल्यूमीनियम, कैल्शियम, लोहा, क्रोमियम, टाइटेनियम, मैंगनीज, सिलिकॉन और ऑक्सीजन होने के प्रमाण इस मिशन द्वारा प्राप्त हुए।

चंद्रयान-2 चंद्रमा के लिए भारत का दूसरा अत्यधिक जटिल एवं चुनौतीपूर्ण मिशन था, जो इसरो के पिछले मिशन की तुलना में अलग एवं महत्वकांशी प्रोजेक्ट था। चंद्रयान-2 को 22 जुलाई 2019 को जीएसएलवी मार्क 3 प्रक्षेपण यान द्वारा श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था।

इस अभियान में भारत में निर्मित एक चंद्र ऑरबिटर, एक प्रज्ञान रोवर एवं एक विक्रम लैंडर शामिल हैं। 20 अगस्त 2019 को चंद्रयान-2 को सफलतापूर्वक चंद्र कक्षा में स्थापित किया गया। 100 किमी चंद्र ध्रुवीय कक्षा में चंद्रमा की परिक्रमा करते हुए 02 सितंबर 2019 को विक्रम लैंडर को लैंडिंग की तैयारी में ऑर्बिटर से अलग कर दिया गया था। बाद में, विक्रम लैंडर का उतरना योजना के अनुसार था और 2.1 किमी की दूरी पर अपने इच्छित पथ से भटक गया और अंतरिक्ष यान के साथ ग्राउन्ड कंट्रोल ने संचार खो दिया। इसके बाद लैंडर से ग्राउंड स्टेशनों तक संचार टूट गया। चंद्रयान-1 से चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर लेटेस्ट और कई वैज्ञानिक उपकरणों से लैस था। इस वैज्ञानिक मिशन को 11 वर्ष में बनाया गया था। यह मिशन पूर्ण सफल नहीं हो सका। हमारे वैज्ञानिकों ने हार नहीं मानी। चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर सफल रहा और चाँद की कक्षा में अपना काम कर रहा है, इस ऑर्बिटर में कई साइंटिफिक उपकरण हैं जो अच्छे से काम कर रहे हैं।

इसरो की सफलता ने देश को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रक्षेपण के केंद्र के रूप में पहचान के साथ साथ भारत की तकनीकी और वैज्ञानिक क्षमता को भी वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाता है। चंद्रयान की सफलताएं भारत के लिए राष्ट्रीय गौरव का स्रोत हैं।

चंद्रयान-1, चंद्रमा के लिए भारत का पहला मिशन, इस मिशन के अन्तर्गत एक मानवरहित यान को 22 अक्टूबर 2008 स्थापित किया जो 30 अगस्त, 2009 तक सक्रिय रहा। यह यान ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पोलर सेटलाईट लांच वेहिकल- पी.एस.एल.वी) के एक संशोधित संस्करण वाले रॉकेट की सहायता से सतीश धवन श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केन्द्र से प्रक्षेपित किया गया। इसे चन्द्रमा तक पहुँचने में 5 दिन लगे पर चन्द्रमा की कक्षा में स्थापित करने में 15 दिनों का समय लग गया। चंद्रयान ऑर्बिटर का मून इम्पैक्ट प्रोब (MIP) 14 नवंबर 2008 को चंद्र सतह पर उतरा, जिससे भारत चंद्रमा पर अपना झंडा लगाने वाला चौथा देश बन गया। अंतरिक्ष यान चंद्रमा के रासायनिक, खनिज और फोटो-भू गर्भिक मानचित्रण के लिए चंद्रमा की सतह से 100 किमी की ऊंचाई पर चंद्रमा के चारों ओर परिक्रमा कर रहा था। अंतरिक्ष यान में भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया में निर्मित 11 वैज्ञानिक उपकरण थे। चंद्रयान-1 के ऑर्बिटर ने चंद्रमा पर पानी के संकेतों की खोज की। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी, नासा के उपकरण ने भी चांद पर पानी होने की पुष्टि की है। चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता भारत के अपने एमआईपी ने लगाया है। सभी प्रमुख मिशन उद्देश्यों के सफल समापन के बाद, मई 2009 के दौरान कक्षा को 200 किमी तक बढ़ा दिया गया है। उपग्रह ने चंद्रमा के चारों ओर 3400 से अधिक परिक्रमाएं की और मिशन तब समाप्त हुआ जब 29 अगस्त 2009 को अंतरिक्ष यान के साथ संचार खो गया था, रविवार 30 अगस्त 2009 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रयान प्रथम औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया।

भारत का चंद्रयान-3 मिशन सफलता के साथ इतिहास में दर्ज होकर अपना कार्य कर रहा है। इसरो की अंतरिक्ष की यह अनवरत यात्रा जारी है। चंद्रयान-4 की दिशा में भी भारत नई योजना बना रहा है। भारत इस मिशन में अपने साथ जापानी स्पेस एजेंसी के साथ संयुक्त रूप से कार्य करने की दिशा में भी योजना बना रहा है। इसरो कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स पर कार्य कर रहा है जिसमे 2040 तक भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर भेजने एवं 2035 तक ‘भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन’ को स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है। आज यदि हम भारत की अंतरिक्ष यात्रा को देखें तो यह सफर कई चुनौतियां और उपलब्धियां से भरा रहा हे। हमारे सामने

सीमित संसाधनों के साथ विश्वस्तरीय प्रौद्योगिकी विकसित करना, अंतरिक्ष में मानव जीवन की सुरक्षा और स्वास्थ्य का ध्यान रखना ,अंतरिक्ष में संचार और नेविगेशन की समस्याएं, अंतरिक्ष में जीवन की खोज और अध्ययन एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा और सहयोग जैसी कई चुनौतियां थी। लेकिन हमने अपने अथक प्रयासों से इन पर विजय दर्ज की।

आज हमारे पास अंतरिक्ष अनुसंधान में स्वदेशी प्रौद्योगिकी का विकास, चंद्रयान और मंगलयान जैसे सफल मिशनों का प्रक्षेपण,अंतरिक्ष में मानव जीवन की संभावनाओं का अन्वेषण,अंतरिक्ष से संबंधित विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अनुसंधान और विकास,अंतरिक्ष के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समन्वय जैसी कई उपलब्धियां हे जिन पर हमे गर्व होना स्वाभाविक हे।

समस्त देशवासियों की और से इसरो की भावी योजनाओं के लिए अनंत शुभकामनाये….

(लेखक एनआईटीटीटीआर भोपाल में प्रोफेसर एवं डीन साइंस हैं एवं भारतीय अंटार्कटिक अभियान में वैज्ञानिक के रूप में कार्य कर चुके है।)

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