अध्यात्ममध्य प्रदेश

हम आनंद स्वरुप हैं, जिसे निर्वाणषट्कम् से समझ सकते हैं : स्वामी समानन्द गिरि

आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, संस्कृति विभाग मप्र शासन द्वारा जनजातीय संग्रहालय, भोपाल में स्वामी समानंद गिरि महाराज के सान्निध्य में आचार्य शंकर विरचित निर्वाणषट्कम् स्तोत्र पर कार्यशाला आयोजित की गई है, जिसमें भोपाल के 50 से अधिक युवाओं (शंकरदूतों) ने भाग लिया। स्वामी समानंद गिरि ने ‘मैं कौन हूँ’ ,हमारा स्वरुप क्या है जैसे विभिन्न प्रश्नों के माध्यम से अद्वैत वेदांत के अनुरूप निर्वाणषट्कम् की व्याख्या की।स्वामी जी ने कहा कि निर्वाणषट्कम् सत्य का अन्वेषण करता है। भारतीय संस्कृति ने चेतना के विकास के लिए अनेक सूत्र दिए हैं। आनंद हमारे अंदर है। हमारी आत्मा आनंद का अथाह, अनंत, अमर और अनादि स्रोत है।हमारी संस्कृति तपोमय है। हम तप और त्याग को महत्व देते हैं, उसे धारण और प्रणाम करते हैं। तप हमारे चित्त को, हमारी वृत्ति को और हमारी बुद्धि को शुद्ध करता है। जैसे सोने को शुद्ध करने के लिए तपाया जाता है, वैसे ही आत्मा की शुद्धि के लिए तप करना चाहिए।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button