
अंतरिक्ष फार्मिंग कैसे शुरू हुई? अंतरिक्ष में उगाई गई पहली सब्जी कौन सी थी? NASA और विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी ने इसे 1995 में उगाया था. बाद में ISS पर लेट्यूस खाया जाने लगा. इससे पता चलता है कि स्पेस में ताजा खाना उगाया जा सकता है, यह सुरक्षित है, और मंगल जैसे भविष्य के लंबी दूरी के मिशन के लिए जरूरी होगा.
धरती से बाहर जाकर बसना है, तो खाना भी साथ में ले जाना पड़ेगा या वहीं उगाना पड़ेगा. वैज्ञानिकों और अंतरिक्ष एजेंसियों का यही सपना पिछले कई दशकों से है कि इंसान जब चांद, मंगल या उससे आगे जाए, तो सिर्फ ऑक्सीजन नहीं, अपना खाना भी खुद उगाए. लोगों को लगता है कि अंतरिक्ष में सबसे पहले सलाद या पालक उगी होगी, लेकिन सच्चाई ये है कि वहां पहली बार उगी थी हमारी देसी सब्जी जैसी दिखने वाली चीज आलू. 1990 के दशक में NASA और यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन-मैडिसन ने मिलकर इस पर रिसर्च शुरू की और यहीं से अंतरिक्ष में खेती की असली कहानी शुरू होती है.
: कैसे बना आलू अंतरिक्ष में उगने वाली पहली सब्जी
साल 1995 में यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन-मैडिसन के वैज्ञानिकों ने NASA के साथ मिलकर आलू के पौधे की कटिंग्स को स्पेस शटल के जरिए अंतरिक्ष में भेजा. इस प्रयोग के लिए एक खास सिस्टम बनाया गया जिसका नाम था Astroculture. इसमें सफेद आलू (Solanum tuberosum) को एक बंद और कंट्रोल माहौल में उगाया गया. आलू की जड़ों को एक खास मिट्टी जैसी चीज में रखा गया जिसे arcillite कहा जाता है. पानी एक खास पाइप सिस्टम से दिया गया ताकि पौधे सूखें नहीं और पानी भी ज्यादा न हो जाए. लगभग 16 दिनों बाद छोटे-छोटे आलू के कंद बने जिनका आकार करीब 1.5 सेंटीमीटर था NASA की टेक्निकल रिपोर्ट में बताया गया कि यह साबित हो गया कि बिना धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के भी आलू जैसी सब्जी उग सकती है. वैज्ञानिकों के लिए यह बहुत बड़ी बात थी, क्योंकि आलू में ऊर्जा और कार्बोहाइड्रेट भरपूर होते हैं, जो अंतरिक्ष यात्रियों की बड़ी जरूरत बन सकते हैं. कुछ लोगों ने इस प्रयोग को मजाक में “Quantum Tubers” भी कहा, लेकिन इसके मायने बहुत गहरे थे.
अंतरिक्ष में उगी और खाई गई पहली सब्जी
आलू उगाने के करीब 20 साल बाद NASA ने ISS (International Space Station) पर एक नया सिस्टम लगाया, जिसका नाम था Veggie Plant System. इस सिस्टम के जरिए अंतरिक्ष यात्रियों ने उगाई और खाई रेड रोमेन लेट्यूस (Red Romaine Lettuce). इसका वैज्ञानिक नाम है Lactuca sativa और इसकी किस्म थी ‘Outredgeous’. यह काम Veg-01 मिशन के दौरान हुआ. इस लेट्यूस को छोटे बैग जैसे “Plant Pillows” में उगाया गया. इनमें मिट्टी की जगह क्ले बेस्ड पदार्थ और खाद डाली गई थी. पौधों को रोशनी देने के लिए लाल, नीली और हरी LED लाइट्स लगाई गईं. यही पहली बार था जब अंतरिक्ष यात्री सिर्फ सूखा पैक खाना नहीं खा रहे थे, बल्कि ताजी उगी हुई सब्जी खा रहे थे. इससे उनका मन भी खुश हुआ और सेहत को भी फायदा मिला.
क्या ये सब्जी सच में सुरक्षित थी?
अब सवाल ये था कि अंतरिक्ष में उगी साग-सब्जी खाने लायक भी है या नहीं? इसके लिए वैज्ञानिकों ने पूरी जांच की. लेट्यूस के पत्तों और जड़ों को धरती पर लाकर टेस्ट किया गया कि कहीं उनमें खतरनाक बैक्टीरिया जैसे E coli या Salmonella तो नहीं हैं. जांच में पाया गया कि कोई हानिकारक बैक्टीरिया नहीं था और ये लेट्यूस पूरी तरह सुरक्षित थी. साथ ही पोषण की जांच में सामने आया कि इसमें वही पोषक तत्व थे जो धरती पर उगी लेट्यूस में होते हैं, बल्कि कुछ खनिज तत्व थोड़े ज्यादा भी मिले. इससे NASA के Veggie सिस्टम पर वैज्ञानिकों का भरोसा और मजबूत हुआ.
गुरुत्वाकर्षण ना हो तो खेती कैसे हो?
धरती पर पानी नीचे बह जाता है, लेकिन अंतरिक्ष में पानी तैरता है और दीवारों से चिपक जाता है. इसी कारण खेती एक मुश्किल काम बन गई थी. शुरुआत में Astroculture सिस्टम में पानी देने के लिए arcillite मीडियम और खास पाइप सिस्टम इस्तेमाल किया गया था. बाद में Veggie सिस्टम में एक खास तरीका लाया गया जिसे wicking system कहते हैं, ताकि पानी धीरे-धीरे जड़ों तक पहुंचे और पौधा डूबे भी नहीं. पौधों के लिए भी दिक्कत थी क्योंकि उन्हें समझ नहीं आता था कि नीचे कौन सा है और ऊपर कौन सा. इसलिए वैज्ञानिकों ने उन्हें रोशनी के सहारे बढ़ने की आदत डलवाई. स्टडी में यह भी सामने आया कि अंतरिक्ष में पौधे कभी तेजी से बढ़ते हैं और कभी खुद को बचाने में ज्यादा ऊर्जा लगाते हैं.
अंतरिक्ष खेती का क्या है भविष्य
1995 में आलू का जो प्रयोग हुआ, वो सिर्फ एक प्रयोग नहीं था, बल्कि इंसान के भविष्य की तरफ एक कदम था. इसने दिखाया कि अंतरिक्ष में खाने की खेती संभव है और वहां इंसान पूरी तरह मशीनों पर निर्भर नहीं रहेगा. लेट्यूस की सफलता के बाद अब ISS पर वैज्ञानिक कई और सब्जियों पर काम कर रहे हैं, जैसे कि मूली, मिजुना सरसों और बौने टमाटर. ये सब उन्नत सिस्टम के जरिए उगाए जा रहे हैं जो हवा और पानी को भी दोबारा इस्तेमाल में लाते हैं. वैज्ञानिकों का मकसद सिर्फ खाना उगाना नहीं है, बल्कि ऐसा सिस्टम बनाना है जिससे भविष्य में अगर इंसान मंगल पर जाए, तो वो खुद वहां अपना खाना उगा सके और जिंदा रह सके.




