केजरीवाल के निशाने पर सरहदी राज्य ही क्यों ?
● रवि उपाध्याय
लोकतंत्र में देश के संविधान के अनुसार किसी भी पात्र व्यक्ति और राजनैतिक दल को, देश की किसी भी राज्य और किसी भी चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ने का अधिकार है और ऐसा होता भी है। किसी भी पात्र व्यक्ति के कहीं से भी चुनाव लड़ने पर कोई रोक नहीं है। लेकिन इसके लिए सामान्यतः यह जरूरी माना जाता है कि उस व्यक्ति या पार्टी का उक्त क्षेत्र या राज्य में कोई जनाधार हो। अब बात आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी की बात तो, 2013 में नव गठित आम आदमी पार्टी ने देश में अपना सबसे पहला चुनाव देश की राजधानी और केंद्र शासित राज्य दिल्ली विधान सभा का लड़ा। अन्ना हजारे के आंदोलन के गर्भ से पैदा हुई आम आदमी पार्टी ने फ्री बिजली, फ्री पानी भ्रष्टाचार मुक्त शासन और लोकपाल का नारा दे कर दिल्ली में 40 प्रतिशत वोट प्राप्त कर विधानसभा की 60 सीटों में से 28 सीटें जीतीं। सत्तारूढ़ कांग्रेस को यहां 8 और भाजपा को 32 सीटों पर जीत मिली 2 सीट अन्य के खाते में गईं।
त्रिशंकु विधानसभा में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। लेकिन जिस आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगा कर राजनीति में प्रवेश कर चुनाव जीता उसी के साथ मिलकर दिल्ली में सरकार बनाई और अरविंद केजरीवाल पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने 28 दिसम्बर 2013 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और एक रणनीति के तहत उन्होंने 49 दिनों बाद 14 फरवरी 2014 को पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्होंने मई 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से लोकसभा का चुनाव लड़ा।
दिल्ली के बाद अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने सीमावर्ती राज्य गोवा, गुजरात,पंजाब और हाल ही में एक और सरहदी राज्य जम्मू एवं कश्मीर में चुनाव लड़ा। कहने को तो ‘आप’ ( आम आदमी पार्टी) ने उत्तर प्रदेश, कर्नाटक महाराष्ट्र समेत अन्य कुछेक राज्यों में चुनाव लड़ने की औपचारिकता ही निभाई परंतु उनका ज्यादा जोर उन राज्यों में रहा जो सीमावर्ती राज्य हैं। इस समय उनकी पार्टी ऐसे ही सीमावर्ती राज्य पंजाब है।जहां पार्टी सत्ता में हैं उनमें रणनीतिक दृष्टि से जो महत्वपूर्ण सीमावर्ती राज्य है वह पंजाब है। इसकी सीमा सीधी पड़ोसी देश पाकिस्तान से मिलतीं हैं। यह अत्यंत संवेदनशील राज्य है। यहां पड़ोसी देश से ड्रोन के जरिए ड्रग्स समेत अन्य आपत्तिजनक सामग्री आती रहती है। इसी राज्य नशीली सामग्री का बड़ा कारोबार होता है। इसी विषय पर ‘नशे में उड़ता पंजाब’ शीर्षक से एक बहुचर्चित फ़िल्म भी बन चुकी है। यहां अलगाववादी संगठन खालिस्तानी आंदोलन और गुरपतवंत सिंह पन्नू के SFJ सिख फ़ॉर जस्टिस का खासा प्रभाव है। राजनीति पर नजर रखने वालों का कहना है कि पंजाब से वहां के मुख्यमंत्री भगवंत मान को हटाने के प्लान पर केजरीवाल ने काम शुरू कर दिया है। इसे के तहत स्वाति मालीवाल पर हमला करने के आरोपी एवं अरविंद केजरीवाल के करीबी बिभव कुमार सहित 7 अन्य लोगों को पंजाब भेजा जा चुका है। पंजाब का प्लान फरवरी 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद इस प्लान को लागू किया जाएगा। केजरीवाल को आशंका है कि 2025 में आम आदमी पार्टी की सरकार बनाना आसान नहीं होगा।
कहा तो यह भी जाता है कि 2017 एवं 2022 के विधानसभा चुनाव में आप को सिख फ़ॉर जस्टिस का गुप्त रूप से आर्थिक सहित हर तरह का समर्थन था।जिसके चलते ही उसे सरकार बनाने में सफलता मिली। केजरीवाल के निकट सहयोगी कुमार विश्वास भी आप और खालिस्तानियों के बीच मीटिंग की बात कह चुके हैं। उनका तो यह भी कहना है कि केजरीवाल, पंजाब का मुख्यमंत्री या अलग खालिस्तान का प्रधानमंत्री बनने का भी इरादा रखते हैं।
इसी वर्ष सोशल मीडिया पर गुरपतवंत सिंह पन्नू का एक पोस्ट खूब वायरल हो चुका है। जिसमें लाखों डॉलर आम आदमी पार्टी को देने की बात कही गई थी। इस पर आम आदमी पार्टी का खंडन सामने नहीं आया है।
अब बात जम्मूकश्मीर की तो इसी माह अक्टूबर में हुए राज्य विधानसभा में आम आदमी पार्टी ने यहां करीब 7 उम्मीदवार मैदान में उतारे उनमे से एक व्यक्ति मेहराज मलिक को विजय मिली। उन्होंने अपने निकटवर्ती भाजपा के उम्मीदवार को 4500 मतों से हराया। बता दें कि आप को इंडी गठबंधन में शामिल नहीं किया था। परंतु चुनाव नतीजों के बाद केजरीवाल हरियाणा चुनाव में अपने 88 में से 87 उम्मीदवार की जमानत जब्त होने के बाद उमर अब्दुल्ला से मिलने श्रीनगर जा पहुंचे और अपने एक विधायक के समर्थन की घोषणा कर आए। उन्होंने तीन बार के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को विशेषज्ञ के रूप में सलाह देने की घोषणा कर डाली। केजरीवाल का मानना है कि केंद्र शासित राज्य के मुख्यमंत्री में केंद्र से दो-दो हाथ करने वे माहरत और एक्सपर्टीज है। वे चाहते हैं कि उन्हीं की तरह उमर अब्दुल्ला भी रोज केंद्र औऱ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गालियां देने में उनकी तरह काम करते रहें।
( लेखक राजनीतिक समीक्षक एवं व्यंग्य कार हैं।)