
: क्या आप जानते हैं कि छठ पूजा को महापर्व क्यों माना जाता है, और इसमें क्यों पंडित की भी जरूरत नहीं पड़ती? आइए जानते हैं कि कैसे यह पर्व अपने धार्मिक और सामाजिक महत्व के कारण हर दिल में जगह बनाता है.
देश में हर साल त्योहारों का मौसम देखने को मिलता है, लेकिन छठ पूजा की बात ही अलग है. यह पर्व सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और लोक आस्था से भी जुड़ा है. सनातन परंपरा में त्योहारों का बड़ा महत्व है, और छठ पूजा को इसीलिए महापर्व कहा जाता है.
क्यों नहीं होती पुरोहित की जरूरत
अक्सर ज्यादातर त्योहारों में किसी पंडित या पुरोहित की जरूरत पड़ती है, लेकिन छठ में ऐसा नहीं है. इस पूजा में सिर्फ साधारण श्रद्धा और आस्था काफी है. जिसमे स्वयं व्रती ही पुरोहित और यजमान होते हैं और पूजा को सम्प्पन करते हैं. नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और प्रातःकालीन अर्घ्य तक, हर कदम पर सिर्फ लोक आस्था काम करती है. कोई खास मंत्र या खास विधि-विधान नहीं, बस भगवान सूर्य और छठी मईया की पूजा. इसलिए भी छठ पूजा इतनी खास मानी जाती है.
डूबते सूरज की आराधना का महत्व
उगते सूरज की पूजा करने की कहावत पुरानी है, लेकिन छठ पूजा में व्रती डूबते सूरज की भी पूजा करते हैं. वैदिक कथाओं के अनुसार, सूर्य की तेज रोशनी से डरकर लोग उसकी पूजा किया करते थे. वैज्ञानिक रूप से देखें तो सूर्य कभी अस्त नहीं होता, यह सिर्फ हमारी नजर में डूबता हुआ दिखता है. शाम को अस्त होते सूर्य की आराधना करना यह सिखाता है कि काम के बाद आराम जरूरी है और फिर नए दिन की तैयारी करनी चाहिए.
बेटियों के लिए अनोखा पर्व
पुरुष-प्रधान समाज में बेटियों के लिए किसी पर्व का होना खास है. छठ पूजा इस मामले में अनूठा पर्व है. बिहार और उत्तर प्रदेश में लोग छठ के दौरान गीत गाते हैं, “बायना बांटे ला, बेटी मांगी ले, पढ़ल पंडित दामाद”. इसका मतलब है कि व्रती बेटियों की लंबी उम्र और उनके लिए सुख-शांति की कामना करते हैं.
क्यों है छठ पूजा बाकी त्योहारों से अलग
- छठ पूजा खास इसलिए है क्योंकि यह सिर्फ सूर्य देव और छठी मैया की आराधना के लिए मनाया जाता है, इस पर्व की सबसे अनोखी बात यह है कि व्रती डूबते सूरज और उगते सूरज दोनों को अर्घ्य अर्पित करते हैं.
- यह चार दिन का कठोर व्रत और उत्सव होता है, जिसे खासकर बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़े श्रद्धा भाव से मनाया जाता है. यहां शुद्धता, अनुशासन और समर्पण को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है, जो इसे अन्य पर्वों से अलग बनाता है.
लोक आस्था और सामाजिक मूल्य
छठ पूजा सिर्फ भगवान की आराधना नहीं है. यह सामाजिक परंपरा, परिवार और लोक आस्था से भी जुड़ा है. इस पर्व से समाज में नैतिकता, संस्कार और सम्मान की भावना बनी रहती है.


