एलएन मेडिकल कॉलेज में पारा मुक्त कार्यक्रम पर कार्यशाला का आयोजन

भोपाल, 18 जुलाई। लोगों और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए पारे युक्त चिकित्सा उपकरणों — जैसे थर्मामीटर और रक्तचाप मापक यंत्र — के उपयोग को पूरी तरह बंद करने की अपील आज उपभोक्ता संगठनों, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों, सरकारी अधिकारियों, नागरिक समाज संगठनों और पर्यावरणविदों द्वारा की गई। यह अपील कंज़्यूमर वॉयस और नेशनल सेंटर फ़ॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स एंड एनवायरनमेंट (NCHSE) द्वारा आयोजित एक कार्यशाला के दौरान की गई, जिसमें घरेलू स्तर पर खासकर बच्चों और महिलाओं में पारे के दुष्प्रभाव और मिनामाटा कन्वेंशन में भारत की प्रतिबद्धता पर चर्चा हुई। पारे युक्त उपकरण, जब तक टूटे नहीं होते, सुरक्षित माने जाते हैं। लेकिन एक बार टूटने या गलत तरीके से फेंके जाने पर, पारा वाष्पित होकर जहरीली गैस के रूप में वातावरण में फैलता है, जो श्वसन या त्वचा के संपर्क से मानव स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकता है। इससे फेफड़े, गुर्दे और तंत्रिका तंत्र को नुकसान हो सकता है। पारा वातावरण, मिट्टी और जल को प्रदूषित कर खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर सकता है और व्यापक जनसंख्या को प्रभावित कर सकता है। टॉक्सिक्स लिंक की 2011 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति वर्ष लगभग 8 टन पारा चिकित्सा मापन उपकरणों से निकलता है, जिसमें से 69% स्फिग्मोमैनोमीटर के गलत निपटान से आता है। डॉ. प्रदीप नंदी, निदेशक, NCHSE, ने कहा, “भारत, मिनामाटा कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्ता है और उसने चिकित्सा उपकरणों से पारे को चरणबद्ध तरीके से हटाने की प्रतिबद्धता जताई है। यह अंतरराष्ट्रीय समझौता मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को पारे के उत्सर्जन और रिसाव से बचाने के लिए है।” विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने पारे को शीर्ष 10 सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक रसायनों में शामिल किया है। कम मात्रा में भी यह तंत्रिका, पाचन और प्रतिरक्षा तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है, खासकर बच्चों में। पर्यावरण में छोड़ा गया पारा मिथाइल मर्क्युरी में बदल जाता है, जो अत्यधिक जहरीला होता है और खाद्य शृंखला में संचित होकर सबसे अधिक नुकसान गर्भस्थ और नवजात बच्चों को पहुंचाता है। मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल के वैज्ञानिक डॉ. पी. के. श्रीवास्तव ने कहा, “हमें पारे के रिसाव को रोकने के लिए अस्पतालों के साथ-साथ घरों में भी सख्त प्रबंधन प्रोटोकॉल अपनाने चाहिए और पारे रहित डिजिटल विकल्पों की ओर बढ़ना चाहिए। आज की जिम्मेदारी, आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा है।” डॉ. ए. के. चौधरी, चिकित्सा निदेशक, जे. के. हॉस्पिटल, भोपाल ने कहा, “महिलाओं और गर्भस्थ शिशुओं के लिए पारे का संपर्क जानलेवा हो सकता है। पारे युक्त थर्मामीटर और बीपी मशीन को हटाकर डिजिटल उपकरणों को अपनाना न केवल जीवन रक्षक है, बल्कि यह पर्यावरण की भी रक्षा करता है।” अन्य वक्ताओं में डॉ. नलिनी मिश्रा (डीन, एलएन मेडिकल कॉलेज डॉ. अजीत सोनी (रजिस्ट्रार, एलएन सिटी), और डॉ. सरला मेनन (मेडिकल सुपरिटेंडेंट, जे. के. हॉस्पिटल) शामिल थीं। सभी ने डिजिटल विकल्पों की ओर संक्रमण और कचरा प्रबंधन प्रणालियों को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया। कंज़्यूमर वॉयस की प्रोजेक्ट हेड (फूड एंड न्यूट्रिशन), नीलांजना बोस ने कहा, “डिजिटल उपकरण न केवल सटीक हैं, बल्कि सुलभ और किफायती भी हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र ने इसकी शुरुआत कर दी है — अब हर घर को इन उपकरणों को अपनाना चाहिए।” कार्यशाला का समापन इस स्पष्ट संदेश के साथ हुआ: पारे युक्त चिकित्सा उपकरणों को हटाना और उपभोक्ताओं को जागरूक करना, मानव स्वास्थ्य की रक्षा और हमारे साझा पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। जे के हॉस्पिटल एंड मेडिकल रिसर्च सेंटर में आयोजित इस कार्यशाला में 150 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया, जिनमें युवा, महिलाएं, उपभोक्ता और नागरिक समाज के प्रतिनिधि शामिल थे।