जीवात्मा और परमात्मा का मिलन है योग : विपिन कोरी
प्राचीन भारत योग की जन्मभूमि है। प्राचीन काल में सप्तऋषियों महर्षियों द्वारा योग साधना मन की शांति, तनाव मुक्त, शरीर की थकान, निरोगी काया, वजन पर काबू एवं आध्यात्मिकता को सौम्य मुद्राओ से प्राणी को सशक्त और संबल बनाने का सबसे सरल और अचूक माध्यम है। योग दर्शन के प्रणेता महर्षि पतंजलि ने योग सूत्र की रचना की, इसलिए उन्हें योग का जनक भी कहा जाता है। योग की परंपरा भारतीय समाज में हजारों साल से चली आ रही है। योग को भारत में करीब 26000 साल पहले की देन माना जाता है लेकिन ऐसा बताया जाता है कि भारत में योग की शुरुआत 5000 साल पहले हुई थी, नियमित योग से सुख, शांति मिलती है। योग हमें ध्यान लगाने आराम करने के साथ-साथ शरीर पर नियंत्रण रखने में भी काफी मददगार होता है। योग धर्म नहीं विज्ञान है, यौवन का विज्ञान है, शरीर, मन और आत्मा को जोड़ने का विज्ञान है। योग का आदर्श वाक्य शांति समृद्धि और सद्भाव यानी वसुदेव कुटुंबकम है। दोनों हाथों को ऊपर की ओर मोड़ना योग का प्रतीक है, जो प्रकृति के साथ सामंजस्य, मानवता और शांति को दर्शाता है, कैलेंडर के अनुसार, 21 जून की तिथि उत्तरी गोलार्ध में वर्ष का सबसे लंबा दिन और दक्षिणी गोलार्ध में सबसे छोटा दिन होता है, योग के दृष्टिकोण से यह ग्रीष्म संक्रांति दक्षिणायन में संक्रमण का प्रतीक है, दक्षिणायन सूर्य के लिए आकाशीय क्षेत्र में ग्रीष्म और शीतकालीन संक्रांति के बीच दक्षिण की ओर यात्रा करने का 6 महीने का कार्यकाल होता है। आज के समय में दुनिया में योग सबसे अधिक लोकप्रिय है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव पेश कर भारत सरकार को 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाए जाने की मंजूरी मिली और जब यह योग दिवस पहली बार मनाया गया तब दुनिया भर के कई हाई प्रोफाइल राजनेताओं, अभिनेताओं और जनमानस ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
योग को छह हिस्सों में बांटा गया है, हठयोग, राजयोग, कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग और तंत्र योग और इसी आधार पर कुंडलिनी, विन्यास, हठ, अष्टांग, यिन, आयंगर, विक्रम, पावर, शिवानंद, रिस्टोरेटिव, प्रसवपूर्व, एरियल और एक्रो योग के प्रकार बताए गए हैं। योग एकमात्र ऐसी प्रक्रिया है जिससे बिना किसी उपकरण के व्यायाम कर बिना किसी दवा के अपनी बीमारियों को दूर भगा सकते हैं, शरीर मे लचीलापन ला सकते हैं, दर्द से राहत पा सकते हैं। सबसे बड़ी बात है कि योग करने वाला व्यक्ति हमेशा खुश रहता है।
स्वामी विवेकानंद के विचार और साधना में योग विद्या का बहुआयामी समन्वय है। उन्होंने राजयोग, कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग सहित अन्य योग पद्धतियों के द्वारा जनसामान्य एवं खासतौर पर युवाओं में आध्यात्मिक एवं योग के प्रति समर्पण की भावना को विश्व के समक्ष व्यवहारिक ढंग से प्रस्तुत किया। विवेकानंद की मान्यता है कि अह ब्रह्मस्ती की मौलिक धारणा संपूर्ण मानव जाति को अखंडता का आधार प्रदान करती है और इसी ऋषिसूत्र में समस्त समस्याओं का समाधान निहित होता है।
हमारा भारत देश हजारों साल से योगमय है। विदेशी आक्रमणकारियों के प्रभाव तथा आधुनिक, भौतिकी ज्ञान, विज्ञान की चकाचौंध के कारण हम भारतवासी योग ध्यान से कुछ दूर हो गए थे, लेकिन हमारे भारत के योगियों , ध्यानियों के अथक प्रयासों से भारत देश विश्व स्तर पर योग का प्रमुख केंद्र बिंदु सिद्ध होने लगा है। योग गुरु बाबा रामदेव ने योग के क्षेत्र में भारत ही नहीं विश्व के कई देशों में कीर्तिमान स्थापित कराया है। योग ध्यान के द्वारा अपार बौद्धिक क्षमता विकसित होने के अनेकों प्रमाण आज हमारे सामने हैं , आज योग की शिक्षा देकर युवाओं के भविष्य को संवारने का काम देश की अनेकों योग संस्थानो, पाठ्यक्रमों के माध्यम किया जा रहा है।
योग एक ऐसा अमृतरूपी तत्व है जो दवा और दुआ दोनों का काम करता है। वर्तमान परिवेश में बच्चों, युवाओं और वृद्धो को योग करने की बेहद आवश्यकता है, ताकि उनका शारीरिक ताना-बाना संतुलित बना रहे और वे विकास पथ पर अग्रसर रह सकें।
विपिन कोरी
स्वतंत्र लेखक
मोबाइल नंबर 8878450620