
मुंबई, 29 सितंबर, 2025: नेत्र रोग विशेषज्ञों ने इस बात पर चिंता जताई है कि, अब युवाओं में डायबिटीज का पता चलने के केवल तीन से पाँच साल के भीतर ही डायबिटिक रेटिनोपैथी के मामले सामने आ रहे हैं और यह संख्या तेजी से बढ़ रही है। पहले कभी इसे सिर्फ़ बुज़ुर्गों को होने वाला रोग माना जाता था, लेकिन अब 40 साल से कम उम्र के लोगों को भी यह बड़ी तेजी से अपनी चपेट में ले रहा है। दरअसल इसकी वजह ख़राब लाइफस्टाइल, ब्लड-शुगर का नियंत्रित नहीं होना तथा हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा एवं किडनी रोग जैसी साथ में होने वाली बीमारियाँ हैं। डॉक्टरों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि आँखों की रोशनी हमेशा के लिए खोने से बचाव के लिए बहुत जरूरी है कि, आँखों की नियमित जाँच के जरिए इसकी समय पर पहचान की जाए।
वर्ल्ड रेटिना डे से पहले, डॉ. अग्रवाल्स आई हॉस्पिटल के नेत्र विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि डायबिटीज, सेहत के लिए नुकसानदेह लाइफस्टाइल और कई अन्य गंभीर बीमारियों की वजह से रेटिना संबंधी बीमारियाँ तेज़ी से बढ़ रही हैं। डायबिटीज से पीड़ित लगभग 12 से 15 प्रतिशत लोगों को रेटिनोपैथी होती है, और उनमें से 4 से 5 प्रतिशत की आँखों की रोशनी जाने का गंभीर खतरा होता है, इसके बावजूद ज़्यादातर लोग काफी नुकसान होने के बाद ही डॉक्टर से मदद लेते हैं। युवा मरीज़ों और हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा या किडनी रोग से पीड़ित लोगों में यह जोखिम ज़्यादा होता है, खासकर जब इसमें बैठे रहने वाली आदतें, खराब खान-पान, तनाव या धूम्रपान भी शामिल हों।
जब शरीर में ब्लड शुगर का स्तर ज़्यादा हो जाता है और रेटिना के ब्लड वेसल्स को नुकसान पहुँचाता है, तब डायबिटिक रेटिनोपैथी होती है। शुरुआत में दिखने वाले लक्षणों में आँखों के सामने तैरते धब्बे, धुंधला दिखना, काले या खाली धब्बे, रात में कम दिखना और रंगों में अंतर करने में कठिनाई शामिल हैं। हालाँकि ब्लड शुगर को नियंत्रित करके हल्के मामलों को संभाला जा सकता है, पर ज़्यादा गंभीर मामलों में लेज़र ट्रीटमेंट या सर्जरी की ज़रूरत पड़ सकती है।
डॉ. हितेंद्र मेहता, प्रमुख– क्लिनिकल सर्विसेज़, ताड़देव, ने कहा, “हालाँकि हमारे अस्पतालों में डायबिटिक रेटिनोपैथी के इलाज की तमाम सुविधाएँ उपलब्ध हैं, फिर भी जागरूकता की कमी के कारण मरीज अक्सर बीमारी के अंतिम चरण में आते हैं, जहाँ आँखों की रोशनी को बचा पाना मुश्किल होता है। बीमारी के बढ़ने का इंतज़ार न करें और तुरंत डॉक्टर की मदद लें, खासकर अगर आप डायबिटीज या हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित हैं। नियमित रूप से आँखों की जाँच कराना आपकी आँखों की रोशनी बचाने में बहुत फर्क ला सकता है।”
बीमारी का देर से पता लगना सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। रेटिना संबंधी बीमारियाँ अक्सर चुपचाप बढ़ती रहती हैं, और अध्ययनों के नतीजे बताते हैं कि आधे से ज़्यादा मरीज़ों को इस स्थिति का तब तक पता ही नहीं चलता जब तक कि उन्हें आँखों की रोशनी कम होती हुई महसूस ना हो। चेंबूर के कंसल्टेंट ऑप्थेल्मोलॉजिस्ट, डॉ. महेश शिव शरण सिंह ने कहा, “डायबिटिक रेटिनोपैथी जैसी रेटिना की अधिकतर बीमारियों का खतरा यही है कि वे बिना लक्षण के चुपचाप बढ़ती रहती हैं। मरीज़ों को तब तक कोई फर्क नहीं महसूस होता, जब तक कि उनकी आँखों की रोशनी कम न होने लगे। धुंधला दिखना, आँखों के सामने तैरते धब्बे, रोशनी का चमकना, या काले धब्बे जैसे शुरुआती चेतावनी के संकेतों को कभी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। आँखों की रोशनी बचाने या खो देने के मामले में देरी बड़ा अंतर ला सकती है, इसलिए रेटिना विशेषज्ञ से तुरंत सलाह लेना बहुत ज़रूरी है।”
ज्यादातर शहरी इलाकों में मरीजों के लिए रेटिना विशेषज्ञों के आसानी से उपलब्ध होने के साथ-साथ बढ़ती जागरूकता की वजह से बीमारी का जल्दी पता लगाने में मदद मिली है। हालाँकि, ग्रामीण या पिछड़े इलाकों में, जागरूकता की कमी और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ सीमित तौर पर उपलब्ध होने की वजह से, मरीज़ अक्सर आँखों की रोशनी खराब होने के बाद ही डॉक्टर की मदद लेते हैं। अच्छी बात यह है कि, अब टेक्नोलॉजी के कारण हालात बदलने लगे हैं। एआई पर आधारित डायग्नोस्टिक टूल्स और सामुदायिक जाँच शिविर जैसी पहल, सीमित स्वास्थ्य सुविधा वाले क्षेत्रों में भी शुरुआत में इसकी पहचान को और अधिक आसान बना रहे हैं और मरीज़ों तक पहुँच रहे हैं।
रेटिना से जुड़ी समस्याओं का पता लगाने के लिए समय पर और नियमित रूप से आँखों की जाँच कराना बेहद ज़रूरी है, ताकि रेटिना की समस्याओं को बढ़ने और आँखों की रोशनी हमेशा के लिए खोने से पहले ही इसकी पहचान की जा सके। डॉ. प्रीतम के. मोहिते, प्रमुख – क्लिनिकल सर्विसेज, विरार, ने बताया, “सबसे बड़ी चिंता वाली बात यह है कि अब बहुत कम उम्र के लोगों की नज़र भी तेजी से कमजोर हो रही है, क्योंकि डायबिटिक रेटिनोपैथी में कभी-कभी स्पष्ट रूप से कोई लक्षण नहीं दिखते हैं जब तक कि यह बीमारी गंभीर नहीं हो जाए। आधुनिक चिकित्सा के क्षेत्र में हुई तरक्की की मदद से, शुरुआत में ही इलाज कराकर आप अपनी आँखें बचा सकते हैं और भविष्य के लिए अपनी आँखों की रोशनी सुरक्षित रख सकते हैं।”
डॉ. हितेंद्र मेहता ने आगे कहा, “भारत दुनिया की डायबिटीज राजधानी है, इसलिए यह बताने की जरूरत ही नहीं कि लोगों के बीच जागरूकता फैलाना और दृष्टिहीनता को रोकना हम सब की सामूहिक ज़िम्मेदारी है। आँखों की रोशनी के लिए खतरा पैदा करने वाली ज़्यादातर रेटिना की समस्याओं को समय पर पता चलने से उसे रोका जा सकता है या कारगर तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। अध्ययनों के नतीजे बताते हैं कि 60 से 80 प्रतिशत मामलों में ऐसा हो सकता है। आँखों की अच्छी सेहत को बनाए रखने के लिए ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर को नियंत्रण में रखना, सही खान-पान और नियमित व्यायाम करना, और धूम्रपान छोड़ना बहुत ज़रूरी है।”
देश भर में रेटिना से संबंधित बीमारियों के बढ़ते मामलों को देखते हुए, विशेषज्ञों ने आँखों की नियमित जाँच और आँखों की रोशनी बचाने के लिए सेहतमंद लाइफस्टाइल को अपनाने की अहमियत पर ज़ोर दिया है। एडवांस डायग्नोस्टिक टेक्नोलॉजी और आधुनिक इलाज के विकल्प उपलब्ध होने से, अब मरीज़ों को रेटिना की बीमारियों से बेहतर तरीके से निपटने और लंबे समय तक आँखों की सेहत को बनाए रखने में काफी मदद मिल रही है।