अध्यात्ममध्य प्रदेश

समाज को सुसंस्कारित करने में ब्रम्हचर्य धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका- पण्डित पंकज शास्त्री

श्री 1008 भगवान वासुपूज्य स्वामी जी का मोक्ष कल्याणक सानन्द सम्पन्न।

अनंत चतुर्दशी पर श्री जी का हुआ कलशाभिषेक।

“जैन धर्म एक वैज्ञानिक धर्म है।”

भोपाल।पर्वाधिराज पर्युषण पर्व की समापन बेला अनंत चतुर्दशी के अवसर पर श्री 1008 भगवान् महावीर दिगम्बर जैन मंदिर साकेत नगर में श्री 1008 भगवान् वासुपूज्य स्वामी जी के मोक्ष कल्याणक पर विशेष पूजन-अर्चन के साथ ही निर्वाण लाडू चढ़ाये गए तथा श्री जी का धूमधाम से कलशाभिषेक किया गया। साकेत नगर जैन मंदिर कमेटी तथा समाज जनों ने भक्ति और उल्लासपूर्वक डॉ महेन्द्र जैन द्वारा प्रस्तुत संगीत की स्वर लहरियों के मध्य धार्मिक क्रियााओं को सम्पन्न किया। मंदिर जी में एक साथ दशलक्षण धर्म पर्व, रत्नत्रय धर्म पर्व, भगवान् वासुपूज्य मोक्ष कल्याणक पर्व तथा चतुर्दशी पर्व का उत्साह अपने चरम पर था। समाजजनों द्वारा इन पर्वों के पूजन में शामिल होकर पुण्य संचय के अपूर्व धर्म वृद्धि अवसर का लाभ लेते हुए, फ्रफुल्लित होकर, भक्ति भाव में मगन होकर श्री जी का पूजन, अभिषेक कर लाड़ू समर्पित किये गए। हेमलता जैन ‘रचना’ ने बताया कि साकेत नगर महिला मंडल द्वारा इस अवसर पर बहुत ही खूबसूरत लाड़ू सजाये गए थे। साँस्कृतिक कार्यक्रमों में पाठशाला के बच्चों द्वारा नाटक प्रस्तुत किया गया वहीं धार्मिक अंताक्षरी का आयोजन भी किया गया। सभी कार्यक्रमों में मंच सञ्चालन डॉ पारुल जैन ने किया । उत्तम ब्रम्हचर्य धर्म पर अपने प्रवचनों में पण्डित पंकज जैन शास्त्री जी ने कहा कि “देह के काम-वासना जनित क्षणिक सुख से परे, आत्मा के असीम आनंद की अवस्था का नाम ब्रम्हचर्य है। ‘ब्रम्ह’ शब्द परमात्मा का ही सूचक है। परमात्मा के ध्यान में डूबना ही ब्रम्हचर्य है। राग-द्वेष एवं काम-वासना पर विजय प्राप्त करके ही ‘ब्रम्ह’ की अनुभूति संभव है। जिसे एक बार ब्रम्ह की अनुभूति हो जाती है उसे देह्जनित सुख में किंचित मात्र भी रूचि नहीं रहती। मनुष्य की काम-वासना उसे अंधा बना देती है। कामी और व्यभिचारी के पतन की कोई सीमा नहीं है। आत्मा को पतन से बचाने के लिए और समाज को सुसंस्कारित करने में ब्रम्हचर्य धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका है। सच्चे ब्रम्हचारी की दृष्टि अत्यंत पवित्र होती है। उसकी दृष्टि में सभी नारियाँ माता और बहिन के समान होती हैं। उत्तम ब्रम्हचर्य के पालन के लिए इन्द्रिय संयम और दृष्टि का निर्विकार होना अनिवार्य है। उत्तम ब्रम्हचर्य को प्राप्त आत्मा जगत पूज्य बन जाता है।” पूरे पर्युषण पर्व के दौरान बड़ी संख्या में समाज जनों ने उत्साह के साथ भक्ति भाव पूर्वक नित्य नियम, पूजन, विधान, तत्वार्थ सूत्र श्रवण, व्रत उपवास, दान आदि के साथ ही सभी धार्मिक प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। ज्ञातव्य हो कि जैन छात्र-छात्राओं, समाज-जनों, बाहर से आए और एम्स में स्वास्थ्य सेवाएं ले रहे समाज-जनों के लिए साकेत नगर जैन समाज की ओर से शुद्ध भोजन की व्यवस्था की गई जिसमें रोजाना 600 से ज्यादा लोगों ने भोजन ग्रहण किया। दशलक्षण पर्व पर समाज की अनेक महिलाओं एवं पुरुषों द्वारा पांच से लेकर दस दिनों तक उपवास रखे गए, साकेत नगर जैन समाज द्वारा उनके पारणा तथा सम्मान हेतु आयोजन किया जायेगा।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button