अध्यात्ममध्य प्रदेश

प्रत्येक शरीर में मौजूद होता है धुंन्धकारी:पं०सुशील महाराज

शरीर में मौजूद इन्द्रियां होती हैं बैश्याओं के समान

मां शीतला माता मंन्दिर जनता नगर बैरसिया रोड भोपाल में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के पहले दिवस कथाबाचक पं०सुशील महाराज ने तत्वार्थ पूर्ण बडी ही मार्मिक धुंन्धकारी एवं गोकर्ण की कथा श्रोताओं को सुनाई।महाराज श्री ने धुंन्धकारी को भागवत कथा का मात्र पात्र बताया है।उन्होंने श्रोताओं को अध्यामिकता की ओर ले जाते हुये तत्वार्थ ज्ञान गूढ रहस्य को श्रोताओं के सामने उजागर करते हुये कहा है।कि प्रत्येक मनुष्य के शरीर में धुंन्धकारी “मन” के रूप में मौजूद होता है। और गोकर्ण “विवेक” के रूप में मौजूद रहता है।और भागवत कथा की पात्र “धुंधली” धुंन्धकारी की मां मनुष्य के शरीर में “बुद्धि” के रूप में मौजूद रहती है।और धुंन्धकारी की मौसी जो कि मनुष्य के शरीर में “कुबुद्धि” के रूप में मौजूद रहती है ।और श्रीमद्भागवत कथा का पात्र “आत्मदेव देव ब्राह्मण ” मनुष्य के शरीर में “आत्मा” के रूप में मौजूद रहता है ।और पुत्र पैदा करने के लिये आत्मदेव ब्राह्मण को “संन्यासी” द्वारा धुंधली को खिलाने के लिए फल दिया गया था।जिसे कुबुद्धीरूपी धुंधली की बहिन ने गाय को खिलवा दिया था।जिससे बिबेक रूपी “गौकर्ण” की उत्पत्ति हुई थी। भागवत कथा की पात्र “गाय” मनुष्य के शरीर में कर्म के रूप में बिद्धमान रहती है।मनुष्य जैसा कर्म करता है।उसे बैसे ही फल की प्राप्ति होती है।
श्रीमद्भागवत कथा में बताया गया है। कि धुंन्धकारी की सारी धन-दौलत लूटकर “बैश्याओं” ने उसे जलाकर मार दिया था।मनुष्य के शरीर में बैश्यायें “इंन्द्रियों “के रूप में मौजूद रहतीं हैं।इनकी संख्या 10 होती है। जिसमें 5 ज्ञानेंन्द्रियां होती है। और 5 कर्मेन्द्रियां होती हैं।यही बैश्या रूपी इंन्द्रिया धुंन्धकारी की ज्ञान,बुद्धि, बिबेक,रूपी धन-दौलत को लूटकर क्रोधाग्नि की अग्नि में मन रूपी धुंन्धकारी को जलाकर मार देती है। जिस प्रकार मनुष्य अकाल मौत मरने के बाद भूत-प्रेत वनकर लोगों को परेशान करता है । ठीक उसी प्रकार से इन्द्रियों द्वारा क्रोधाग्नि में मन के मर जाने पर मनुष्य अपने ही लोगों को परेशान करने लगता है ।भागवत कथा के पात्र धुंन्धकारी को उद्धार करवाने के लिये गौकर्ण “ग्या तीर्थ स्थान पर गया।और धुंन्धकारी की मुक्ति हेतु पिण्डदान किये।लेकिन उसे मुक्ति नहीं मिली।फिर गौकर्ण ने जब प्रेतरूपी धुंन्धकारी को श्रीमद् भागवत की सात दिवस की कथा सुनवाई।तव धुंन्धकारी को प्रेतयोनि से मुक्ति मिल गई । ठीक उसी प्रकार से मनुष्य के शरीर में मौजूद मन रूपी धुन्धकारी को जब तक श्रीमद् भागवत की कथा नहीं सुनाओगे तब तक मरे हुए मन
रूपी धुंधकारी को मुक्ति नहीं मिल पाती है। श्रीमद् भागवत ग्रंथ की एक विशेषता है। जो भी श्रीमद् भागवत की कथा को सुनता है। उसे “सत्,चित् और आनंद की प्राप्ति निश्चित तौर पर होती है ।पहले दिवस के कथा बिश्राम पर श्रृद्धालु श्री मायाराम अटल, श्री कृष्णा राठौर, श्री संन्तोष जैन,श्री रामेश्वर त्रिपाठी, श्री देवी राम शर्मा व अन्य कई श्रृद्धालुओं ने भागवत ग्रंथ की आरती उतारी । कार्यक्रम के संरक्षक
श्री विजय सिंह मार्गदर्शक श्रीश्याम सुंदर शर्मा व व्यवस्थापक श्रीभैरों सिंह रजक कार्यक्रम में बिशेष रूप से मौजूद थे।
श्री विजय सिंह ने भागवत कथा के पात्र श्रीराधे कृष्णा एवं वलराम व हनुमान को पुष्पमाला पहनाकर सम्मानित किया।जगह- जगह कलश शोभा यात्रा में पुष्पों कि बर्षा
की गई।

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