हिट एंड रन सियासी नेताओं का ‘फन’

● रवि उपाध्याय
हिट एंड रन यह शब्द सामान्य रूप से सड़क दुर्घटनाओं में प्रयुक्त किया जाता है। इसके अलावा यह शब्द पत्थर बाजी में संलग्न लोगों के लिए भी प्रयोग किया जाने लगा है। इसका मतलब जान बूझ कर किसी को नुकसान पहुंचा कर भाग जाना भी है। सड़क दुर्घटनाओं में इस शब्द का प्रयोग जानबूझकर किए गए कृत्य के लिए तो किया ही जाता है।साथ ही इस शब्द का मतलब मादक पदार्थों का उपयोग करने के बाद किसी को नुकसान पहुंचाकर भाग जाना या छुप जाना भी है। इसे नशे की हालत में होने वाली सड़क दुर्घटना के से संदर्भ में समझा जा सकता है। इसी तरह पत्थरबाजी कर के भाग जाना भी इसी हिट एंड रन की श्रेणी में आता है। इस तरह के गैर जिम्मेदाराना बयान देना नेताओं के लिए आनंद बनता जा रहा है। इस पर रोक लगाना समय की मांग है । वरना यह आदत लोकतंत्र के लिए कैंसर बन जाएगी। उपरोक्त घटनाओं के अलावा पिछले एक लंबे समय देश की राजनीति में नेताओं की जुबान से निकलने वाले बिना किसी सबूत के लगाए जाने वाले गैर जिम्मेदाराना बयान इसी हिट एंड रन की श्रेणी में रखे जा सकते हैं। अब समय आ गया है कि नेताओं द्वारा दिए जाने वालों की कानूनी जवाबदेही तय की जाए। बयान देने वाले नेताओं को अपने समर्थन में दस्तावेजी देना अनिवार्य किया जाना चाहिए ताकि जिस पर आरोप लगाए गए हैं उस पर आपराधिक कार्रवाई की जा सके। यदि बयान पर लगाए गए आरोप गलत प्रमाणित होते हैं तो ऐसा व्यक्ति और नेताओं पर मुकदमा चलाया जा सके।
देश में आरोप लगा कर छुप जाना या मौन हो जाना जैसी खतरनाक पृवृति बढ़ती जा रही है। यह पृवृति लोकतंत्र के लिए अत्यंत ही खतरनाक है। इस पृवृति में कोई एक दल का नेता जवाबदार नहीं है। यह खतरनाक आदत सभी राजनीतिक पार्टियों और उनके पंचायत स्तर के छुटभैये नेताओं से ले कर शीर्ष स्थानों पर विराजमान नेताओं में भी मौजूद है। इस तरह के बिना सबूत दिए जाने वाले बयान ऊपर से लेकर नीचे के नेताओं तक जा पहुंचते हैं। इन बयानों को चुनावी या सियासी बयान कह कर नहीं टाला जा सकता। इस तरह के बयानों से पूरे देश के मतदाताओं में मौजूदा लोकतंत्र मौजूदा संसदीय प्रणाली, राजनैतिक पार्टियों तथा उनके नेताओं के प्रति अविश्वास, देशवासियों में अवसाद (डिप्रेशन) और वितृष्णा बढ़ती जा रही है। इस संबंध में सत्तारूढ़ दलों पर विपक्ष के नेताओं पर लगाए जाने भ्रष्टाचार के आरोपों को देखा जा सकता। उन पर अराजक और देशद्रोही के होने के आरोप यदि किसी नेता द्वारा लगाया जाता है तो यह आरोप लगाने वाले की जिम्मेवारी है कि वह अपने आरोपों की पुष्टि में सबूत भी प्रस्तुत करें। कानून व्यवस्था के प्रति विश्वास जरूरी है कि वह इस तरह के बयानों पर संज्ञान ले कर एफआईआर दर्ज की जाए और उस पर कानूनी कार्यवाही की जाए। इससे देश और समाज में विश्वसनीयता बढ़ेगी और सियासी लाभ के लिए दिए जाने वाले इस तरह के बयानों पर रोक लगाने में मदद मिलेगी। यदि इन बयानों पर पुलिस कार्यवाही नहीं करती है तो न्यायालयों द्वारा इस तरह के मामलों में स्वयं स्व प्रेरणा से संज्ञान लेना चाहिए।
इस तरह के गैर जिम्मेदार बयानों में हाल ही में केंद्र शासित राज्य दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा दिए गए उस बयान का ज़िक्र किया जाना जरूरी है जिसमें उन्होंने पड़ोसी राज्य हरियाणा सरकार पर यमुना से दिल्ली आने वाले यमुना जल में जहर मिलाने और दिल्ली के लोगों का नर संहार करने का गंभीर आरोप लगाया है। इस तरह के आरोपों की तेजी से कानूनी जांच की जानी चाहिए ताकि जो भी दोषी हो उसको दंडित किया जा सके।
यहां यह याद दिलाया जाना भी जरूरी है कि केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के नेता 2015 से केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा और केंद्र सरकार पर उनकी पार्टी के विधायकों पर करोड़ों रुपए के ऑफर दे कर खरीदने के आरोप लगाते रहे हैं। उन्होंने यह आरोप लगाते हुए दावा भी किया कि इसके, उन के पास ऑडियो रिकार्डिंग के रूप में पुख्ता सबूत भी हैं लेकिन 2015 से 2025 के दस सालों में उन्होंने इस बारे में किसी भी तरह का कोई सबूत देने की जरूरत नहीं समझी है। इसी तरह के आरोप वे 2022 में पंजाब विधानसभा के चुनावों के बाद से भी लगा चुके हैं। ऐसा नहीं है राजनीति में इस तरह के आरोप केवल मुख्यमंत्री या मंत्री ही लगाते खुद प्रधानमंत्री अतीत में महाराष्ट्र के वर्तमान उप मुख्यमंत्री अजित पंवार पर लगा चुके। नतीजा ?आज वे भाजपा सरकार में संवैधानिक ओहदे पर विराजमान हैं।
पिछले दिनों हुए कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में आज की सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस ने भाजपा की तत्कालीन बोम्मई सरकार पर 40 प्रतिशत कमीशन लेने का आरोप लगाया था। इस बारे तब एक ठेकेदार को सबूत के तौर पर पैश किया गया था । लेकिन सत्तारूढ़ होने के बाद तत्कलीन सरकार के किसी भी व्यक्ति पर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की गई। बाद में ठेकेदार ने भी कमीशन देने के आरोप को झूठा बता दिया। पिछले लोकसभा चुनाव में संविधान बदल देने, आरक्षण खत्म करने की योजना बताने वाले बयान इसी श्रेणी में आते हैं। सांसद असदुद्दीन ओवैसी के बयानों को भी इस तरह समाज में अराजकता फैलाने वाले माना जाने के पर्याप्त कारण नजर आते हैं। इतना ही नहीं राहुल गांधी द्वारा लोकसभा में विपक्ष के नेता जैसे संवैधानिक पद पर होने के बाबजूद विदेशों में जा कर देश में लोकतंत्र खत्म होने की बात करना, विदेशी हस्तक्षेप की मांग करना भी देश और लोकतंत्र और उनके द्वारा धारित पद का अपमान नहीं तो और क्या है। राजनीति और समाज में स्वच्छता और विश्वसनियता के लिए यह जरूरी है कि बिना किसी प्रामाणिक सबूतों के इस तरह के आरोप लगाने वाले नेताओं को कानूनी दायरे में ला कर जवाबदेही तय की जानी चाहिए। तभी उनकी विषाक्त जुबान और झूठ बयानी पर लगाम लग सकेगी।
( लेखक स्वतंत्र राजनैतिक समीक्षक और व्यंग्यकार हैं। )