मध्य प्रदेश

होली साधना शिविर – पहला दिन, पहला सत्र

मार्च 6, 2025: सुबह की भावपूर्ण साधना के मुख्य आकर्षण🎼
🌷✨जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की जय!✨🌷
जगद्गुरु आदेश:
मन का स्मरण ही प्रमुख है –
भजन, भक्ति, उपासना, आदि शब्दों का अर्थ बहुत कम लोग समझते हैं। हमारे देश में घर-घर में मूर्तियाँ हैं, अलग-अलग धर्मावलम्बियों में बड़े-बड़े आयोजन किये जाते हैं, बहुत भजन होता है, लेकिन सब गलत हो रहा है। ये इसलिए है क्योंकिं वो इन दो प्रश्नों के उत्तर नहीं समझते –
प्रश्न 1) भजन या उपासना करने वाला कौन है ?
प्रश्न 2) उपासना करने से क्या मिलेगा ? ये नहीं समझते।
ये दो बात समझ कर भजन करने से देश में न कोई मिलिट्री की ज़रूरत है न पुलिस की। कोई गलत काम या घोटाला होगा ही नहीं। तो –

1) चाहे वेदों का हो, कुरान का हो, चाहे बाइबिल का हो, हमारे देश में ‘इन्द्रियों’ से बहुत पाठ होता है। लेकिन भजन करने वाला है ‘मन’। भजन, भक्ति जो कुछ शब्द है, मन के लिए है। गीता में भगवान् कहते हैं – ‘अनन्यचेताः सततं यो मां ‘स्मरति’ नित्यशः। तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः॥’ यानी निरन्तर मेरा ‘स्मरण’ करो तो मैं बड़े आसानी से मिल जाता हूँ, अर्जुन!

2) अनादिकाल से – i) श्रीकृष्ण से मन बहिर्मुख है, इसलिए ii) वो मायाबद्ध है, इसलिए iii) वो अपने को देह मानता है, इसलिए iv ) वो संसारी रिश्‍तों-नातों में आसक्त रहता है और v) शुभाशुभ कर्म करता आ रहा है, और इसलिए vi) मन बहुत गन्दा हो गया है और vii) भगवान् को भूला हुआ है। तो हमें मन को शुद्ध करना है। भगवान् को जानना, पाना, देखना सब असंभव है क्योंकि हमारे पास जो इन्द्रिय मन बुद्धि हैं वो सब मायिक हैं और भगवान् दिव्य हैं। भगवान् को जानने के लिए उनकी कृपा चाहिए। लेकिन कृपा किस पर हो? कृपा का पात्र मन है, और उसके निर्मल होने पर ही भगवान् कृपा कर सकते हैं। तो भक्ति का लक्ष्य अन्तःकरण की शुद्धि है।

तो भक्ति मन को करनी है। क्यों? अंतःकरण की शुद्धि के लिए करनी है। ये दो बात हम ढंग से नहीं समझते हैं, इसलिए मन का अटैचमेंट संसार में है और हम इन्द्रियों से भजन करते हैं। मन का अटैचमेंट जहाँ हैं, मरने के बाद उसी की प्राप्ति होगी, चाहे अनंत बार हम राम-राम, श्याम-श्याम बोलते रहें। बंधन और मोक्ष का कारण मन ही है। इसलिए मन से संसार, स्वर्ग, मोक्ष पर्यन्त की कामना को निकालो, संसार में सुख मानना बंद करो। मन में राधाकृष्ण को लाओ क्योंकि वे शुद्ध हैं। उनको अन्तःकरण में लाएँगे और उनके मिलन की व्याकुलता में आँसू बहाएँगे, तब मन शुद्ध होगा। ये हम को ही करना होगा, न गुरु करके दे सकते हैं न भगवान्।

तो इस कीर्तन में श्री महाराज जी कह रहे हैं ‘सुमिरन कर ले मना’ – ऐ ‘मन’, राधारमण का स्मरण कर। और वैकुण्ठवासी नारायण, या द्वारिका या मथुरा वाले श्रीकृष्ण का स्मरण न कर। वृन्दावन वाले राधारमण श्री कृष्ण का स्मरण कर।
कीर्तन:
– राधा गोविन्द गीत (भाग 1, अध्याय – महापुरुष, #BhaktiChallenge 1)
– अहो हरि! ओहू दिन कब ऐहैं (प्रेम रस मदिरा, दैन्य माधुरी, पद सं. 7)
– हरे राम संकीर्तन

श्री गुरु चरणों में गोविंद राधे।
शरणागति हो तो हरि ते मिला दे॥
गुरु जो भी सेवा ले ले गोविंद राधे।
गर्व जनि करु आभार जना दे॥
सारा विश्व दान करो गोविंद राधे।
तो भी गुरु ऋण ते न उऋण करा दे॥
गुरु ने जो दिया ज्ञान गोविंद राधे।
कोटि प्राण दान भी न उऋण करा दे॥

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