मध्य प्रदेश

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर ‘कविता का स्त्री काल’ में महिला रचनाकारों ने किया कविता–पाठ

कविता का स्त्री- काल’ काव्य–पाठ का आयोजन वरिष्ठ कवि- उपन्यासकार सुश्री नीलेश रघुवंशी की अध्यक्षता तथा इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए की कार्यकारी संपादक डॉ. विनीता चौबे के मुख्य आतिथ्य में आयोजित किया गया।
यह आयोजन राष्ट्रीय वनमाली सृजन पीठ, आईसेक्ट पब्लिकेशन, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, स्कोप ग्लोबल स्किल्स विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में वनमाली भवन के मुक्ताकाश मंच पर गुनगुनी वासंती संध्या को अमराई की घनी छाँव तले सुरम्य वातावरण में आयोजित किया गया।सर्व प्रथम अतिथियों और रचनाकारों ने दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। अतिथियों और रचनाकारों का स्वागत तथा कार्यक्रम का संयोजन सुश्री ज्योति रघुवंशी, राष्ट्रीय संयोजक, वनमाली सृजन पीठ द्वारा किया गया।कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि एवं उपन्यासकार नीलेश रघुवंशी ने कहा कि ‘स्त्री पुरुष अलग नहीं है। हमें पुरुषों से अलगाव भी नहीं हैं। हम समानता के पक्षधर हैं। वर्तमान में तकनीकी विकास ने महिलाओं को बहुत सहुलियत बरती है। तकनीकी शिक्षा ने महिलाओं के श्रम और ऊर्जा को लाभ पहुँचाया है। आज हर क्षेत्र में महिलाएँ आगे आ रही है। सभी क्षेत्रों में स्त्री रचनात्मकता ने अपने दम पर यह साबित कर दिया है कि वे किसी की मोहताज नहीं है।आपने अपनी कविता ‘सुंदरियों’ में स्त्रियों को संबोधित करते हुए कहा कि–
सुंदरियों
मत आया करो तुम सम्मान समारोहों में
तस्तरी, शॉल और श्रीफल लेकर
दीप प्रज्वलन के समय
मत खड़ी रहा करो
दीया बाती और माचिस के संग
मंच पर खड़े होकर
मत बाचा करो अभिनंदन पत्र!
उपस्थिति को अपनी
सिर्फ मोहक और दर्शनीय
मत बनने दिया करो
सुंदरियों तुम ऐसा करके तो देखो
बदल जाएगी दुनिया सारी।
इस अवसर पर आपने ‘बेखटके’, ‘आड़ी फसल’, ‘आधी जगह’ आदि विचारोत्तेजक कविताओं के उम्दा पाठ से कार्यक्रम को नई ऊँचाइयाँ प्रदान की।कार्यक्रम की मुख्य अतिथि डॉ. विनीता चौबे जी ने वरिष्ठ कवि महेन्द्र गगन को स्मरण करते हुए बहुत ही मार्मिक कविता का पाठ किया। इसके पश्चात आपने अमुमन हर घर में पत्नी और पति के मध्य होने वाले संवाद को बहुत ही रोचकता से अपनी कविता ‘बोरियत’ के बहुत ही सुंदर पाठ से वातावरण को खुशनुमा बना दिया। ‘हृदय की किताब’ कविता में आपने कहा कि–
जी जनाब हृदय के पटल पर भी
लिखी जाती है एक किताब
जिसके पन्नों की संख्या भी
आपके द्वारा नहीं की जाती तय
क्योंकि उसे आपके द्वारा नहीं लिखा जाता
वह तो स्वतः ही शॉर्ट हेण्ड में
लिखती चली जाती हैं
जीवन के अत्यन्त सुखद क्षण
रोमांचक यादें
या कि दुखभरी यादों का लेखा-जोखा।

उल्लेखनीय है कि वरिष्ठ कवि–कथाकार, निदेशक विश्व रंग एवं रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आयोजित इस काव्य गोष्ठी का यादगार संचालन करते हुए समतामूलक समाज की स्थापना में महिलाओं और पुरुषों की बराबरी की रचनात्मक भागीदारी को रेखांकित किया। श्री संतोष चौबे जी ने इस अवसर पर ‘बालकनी में प्रीति’, ‘सुईं’, ‘गोष्ठी में पत्नी’, ‘आना जब मेरे अच्छे दिन हो’ कविताओं का अविस्मरणीय पाठ किया।सुप्रसिद्ध कवि और वरिष्ठ पुलिस अधिक्षक सुश्री पल्लवी त्रिवेदी ने अपनी कविता ‘पेड़ की स्मृति’ के माध्यम से प्रकृति प्रेम को नया स्वर देते हुए कहा कि–
किसी पेड़ ने मुझसे
एक बार कहा था कि एक आलिंगन
कुल्हाड़ी से लगे सौ घावों पर मरहम बनता है
तो पेड़ की स्मृति में
तुम अपना एक आलिंगन दर्ज करना
उसकी यादों में तुम अपना
चुमना ऐसे लिखना
कि पेड़ फर्क न कर सके
कि उसे हवा ने चूमा
सूरज की किरणों ने चुमा
या तुमने चुमाजिस दिन से
मैंने अपने हृदय में
पेड़ों को स्थान दिया
उस दिन से मैं
हर पेड़ की स्मृति में
प्रेम बनकर रह रहीं हूँ।
आपने इस अवसर पर कृतज्ञता, राग अरण्य, प्यार का फूल, तुम्हारी देह को प्यार करते हुए
कविताओं के माध्यम से कविता के विभिन्न रंगों से श्रोताओं को सराबोर कर दिया।अपनी बेबाक रचनाशीलता के जरिए रचना संसार में एक विशिष्ट पहचान कायम करने वाली चर्चित कवयित्री सुश्री श्रुति कुशवाह ने अपनी रचना में पुरुषों के लिये कहा कि–
मैंने देखे हैं नदी से तरल और आकाश की तरह ऊँचे पुरुष
ऐसे पुरुष जो परिभाषा में नहीं, सही अर्थ में मनुष्य हैंमेरे हिस्से आए कई पुरुष जिनके सामने मैं खुलकर रो सकती हूँ
ऐसे पुरुष जो ख़ुद रो पड़े किसी स्त्री की पीड़ा देख
प्रेमी से छले जाने पर मैं एक दोस्त के गले लग बेहिसाब रोयी

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