मध्य प्रदेश

गुनायतन प्रणेता मुनि श्री प्रमाणसागर जी महाराज और डॉक्टर एस पी भरिल्ल जी के बीच अद्भुत शंका समाधान

एस पी भारिल्ल जी ने कहा की मेँ गुनायतन मेँ ज़ब गया तो मेरे रोम रोम खडे हो गए, अद्भुत परिकल्पना जिन धर्म की साकार होने जा रही हैँ मुझे गर्व है.. शंका — मनुष्य सब दीखते समान हैँ परन्तु एक बच्चा गरीबी और संघर्ष मेँ जीता हैँ चांदी के चम्मच मेँ दूसरा खाता है, ये सब पूर्व भवों के कर्मो का फल हैँ, मेरी जिज्ञासा शांत करें…।. मुनि श्री — मेँ कौन हूँ, मेरा क्या हैँ, मेरा कौन हैँ और मेँ क्या करने जा रहा हूँ, भीतर से भेद विज्ञानं जाग्रत होता हैँ तब अनुभूति होती हैँ. हम धर्मतो कर रहे हैँ परन्तु मर्म को समझना जरुरी हैँ हमारे कर्म से बाहर की व्यवस्था और भीतर की व्यस्तता प्रकट हो ये जागरूकता होनी चाहिए.. मायाचारी भटकाती हैँ जन्मो जन्मो तक, अच्छे बुरे कर्मों का फल मिलता हैँ, जैसा करेंगे बैसा भरेंगे, पिछले जन्म के कर्मों का बिशेष फल ही इस जन्म मेँ बैसा ही मिलता हैँ, कर्म की सत्ता से बड़ी धर्म की सत्ता होती हैँ. शंका — कर्म बंधते कैसे हैँ, और इन्हे बाँधने से रोका कैसे जा सकता है, कर्म भावों से बंधता है?? हम कर्म बाँधते हैँ, बो बंधते जाते हैँ, तो भावो के बिभिन्न परिणाम कैसे बंधते हैँ.. मुनि श्री — गुरुदेव कहते थे माल से मालदार नहीं भाव से मालदार हुआ जाता हैँ, अपने आप को शिखर पर ले जाना हैँ तो भावों की शुद्धि पर ध्यान दें, विशुद्ध आचरण पर फोकस होना चाहिए तभी भावों की विशुद्धि होती हैँ,, आयोजन का प्रयोजन हो तभी आयोजन सार्थक होता हैँ, मन मेँ प्रण करके जाएँ अपने जीवन की दशा क्या करना हैँ, संस्कारों को जीतने पर ही भाव सुधरते हैँ……।. शंका — मनुष्य भव को कैसे सार्थक किया जाए, मनुष्य भव गेम चेंजर है ऊठे तो मोक्ष गिरे तो नरक मुनि श्री — अपना मूल्यांकन करें जीवन का मूल्यांकन करें, कर्मों का लेखा जोखा रखें, सांसों की कीमत समझें हमारी सांस कब आखरी सांस बन जाए, अवसर की दुर्लभब्ता को समझें उसे जीवन की अपूर्व उपलब्धि बनाये जो योग मिला है उसेप्रयोग बनायें.. शंका — अवसर और एहसास को समझें उसी से गति बनती हैँ, मुनि श्री — विना अवसर को जाने हम प्रयास करते हैँ सफल नहीं होते, एहसास होगा की जीवन दुर्लभ हैँ इस एहसास को ही अवसर बनायें, हर बात को अंतिम मानो, हर सांस को अंतिम मानो.. शंका — इस जन्म को भरपूर जी लें, अनंत काल पड़ा हैँ उसकी तैयारी कर लो, इन भावों को बिगड़ने से कैसे रोकें, सबको इस बात का एहसास कैसे हो, इन भावों का फल क्या होग सबको जल्दी क्यों रहती हैँ, स्पीड को नियंत्रित कैसे करें???? मुनि श्री — भावना योग से सब समाधान निकल सकता हैँ, जो करना हैँ सिर्फ उसकी बात करें जो नहीं करना हैँ उसे साइड मेँ डाल दें,, शांत रहने की प्रेक्टिस शुरू करें, भावना स्वयं ही शांति की अनुभूति करेंगी, भावना योग हैँ मेँ जो हूँ उसे ध्यान रखें, सकारात्मक दृष्टिकोण रखें, बड़ी बात करने से काम नहीं होता, काम करने से काम होता हैँ,, गुरुदेव कहते थे चिंतन, मंथन और प्रवचन बहुत हुआ अब करना प्रारम्भ करें, करने से ही जीवन की गति बिना अवरोध के आगे बढ़ेगी, स्वाध्याय जीवन मेँ बहुत जरुरी हैँ, स्वाध्याय शंका समाधान के माध्यम से हो सकता हैँ…..

डॉक्टर पंकज प्रधान भोपाल

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