वेदांत दर्शन के प्रमुख ग्रंथों के अध्ययन से पूर्व प्रकरण ग्रंथों का अध्ययन आवश्यक : स्वामी हरिबह्मेद्रनन्द तीर्थ

आचार्य शंकर न्यास द्वारा जनजातीय संग्रहालय में दो दिवसीय ‘प्रेरणा संवाद’ संपन्न
भोपाल।आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, संस्कृति विभाग द्वारा अद्वैत वेदांत की शास्त्र परंपरा विषय पर आयोजित दो दिवसीय प्रेरणा संवाद के दूसरे दिन आचार्य शंकर ब्रह्म विद्यापीठ उत्तरकाशी के आचार्य एवं न्यासी आचार्य शंकर न्यास स्वामी हरिबह्मेद्रनन्द तीर्थ ने युवाओं को सम्बोधित किया।उन्होंने कहा कि दर्शन शास्त्र का अध्ययन करने से पहले रुपरेखा जानना आवश्यक है, किसी भी दर्शन को लोकोपयोगी होना चाहिए। हमारे ऋषियों-मुनियों ने अपने अनुभव और श्रवण-मनन से इसे सिद्ध किया, जो अकाट्य है, इसलिए इसे ब्रह्म ज्ञान कहा गया है। यह ज्ञान आज भी गुरु-परंपरा के रूप में हमारे सामने है।अद्वैत वेदांत की शास्त्र परंपरा अत्यंत समृद्ध एवं विशाल है, आचार्य शंकर ने वेदांत के अनेक ग्रंथों की रचना की। वेदांत दर्शन के प्रमुख ग्रंथों के अध्ययन से पूर्व प्रकरण ग्रंथों का पूर्वाभ्यास करना चाहिए, वेदांत में प्रवेश के लिए सबसे पहले तत्वबोध ग्रन्थ का अध्ययन जरूरी है।
आचार्य शंकर ने जनसामान्य के लिए अनेकों स्तोत्रों की रचना की
आचार्य शंकर ने 38 प्रकरण ग्रंथों के साथ विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित 94 स्तोत्रों की रचना स्तुति भाव रूप में की। इन स्तोत्रों में भी वेदांत के तत्त्व निहित है। यह भी स्पष्ट है कि आचार्य शंकर ने जनसामान्य के लिए इनकी रचना की। उन्होंने कहा कि मूल रूप से वेदांत का व्यवस्थित एवं सम्पूर्ण अध्ययन के लिए प्रस्थानत्रयी (भगवतगीता, उपनिषद एवं ब्रह्मसूत्र) का अध्ययन जरूरी है।अद्वैत वेदांत का सबसे पुरातन स्थान ऋषिकेश में कैलाश आश्रम में है जहाँ आज भी परंपरागत रूप से शिक्षा दी जाती है, जहाँ स्वामी विवेकानंद, स्वामी चिन्मयानन्द, स्वामी शिवानन्द, स्वामी दयानन्द सहित अनेक महापुरुषों ने शिक्षा ग्रहण की।जनजातीय संग्रहालय में आयोजित ‘प्रेरणा संवाद’ में युवाओं ने सहभागिता की और जीवन में वेद, वेदांत तथा अद्वैत की महत्त्वता को जाना। अंत में प्रश्नोत्तर सत्र के साथ समापन हुआ।