
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर फिल्म समीक्षा
हिंसा के भेद: ‘मिसेज’ और ‘दो पत्ती’ फिल्म के संदेश
-बबली चतुर्वेदी
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक ऐसा अवसर है, जब हम महिलाओं की स्थिति और उनके अधिकारों पर विचार करते हैं। यह दिन न केवल महिला सशक्तिकरण की बात करता है, बल्कि उनके संघर्षों और योगदानों को भी पहचानता है। 2025 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का विषय होगा “सभी महिलाओं और बालिकाओं के लिए : अधिकार, समानता, सशक्तिकरण।” पिछले कुछ वर्षों में, बॉलीवुड फिल्मों ने महिलाओं के मुद्दों पर खास ध्यान दिया है और उन पर आधारित कहानियां भी प्रस्तुत की हैं। ऐसी ही दो फिल्में हैं – “मिसेज” और “दो पत्ती”, जो घरेलू हिंसा और महिला उत्पीड़न के मुद्दे को एक नए दृष्टिकोण से पेश करती हैं।
“मिसेज” – मानसिक उत्पीड़न भी हिंसा है
“मिसेज” एक संवेदनशील और प्रभावी कहानी है, जो मानसिक उत्पीड़न के मुद्दे को बहुत प्रभावी ढंग से सामने लाती है। इस फिल्म की नायिका ऋचा (सान्या मल्होत्रा) एक ऐसे पारिवारिक माहौल में फंसी हुई हैं, जहां उसकी इच्छाओं और स्वतंत्रता को पूरी तरह से नकारा जाता है। उसकी सास, ससुर और पति की मानसिकता उसे घर की चारदीवारी में बंद रखने के लिए मजबूर करती है। यह फिल्म दर्शाती है कि घरेलू हिंसा का रूप केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक उत्पीड़न के रूप में भी हो सकता है।
ऋचा की कहानी इस बात को उजागर करती है कि कैसे महिलाएं घर की चारदीवारी में रहते हुए भी मानसिक उत्पीड़न का शिकार हो सकती हैं। ऋचा (सान्या मल्होत्रा) की दुनिया में कोई शराबी या पत्नी को पीटने वाले नहीं हैं, बस कुछ ‘सभ्य’ पुरुष हैं – पति दिवाकर कुमार, और उसके ससुर, अश्विन कुमार, जो ताज़े फुल्के (“रोटी नहीं”) चाहते हैं, सिलबट्टे पर बनी चटनी, हाथ से धुले कपड़े और ये सब करने के लिए घर पर रहने वाली महिलाएँ। स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर भी ऋचा का पति डॉ. दिवाकर अपनी पत्नी की आशाओं से बेखबर हैं।
“दो पत्ती” – शारीरिक हिंसा की सच्चाई
वहीं, “दो पत्ती” एक ऐसी फिल्म है जो शारीरिक हिंसा पर आधारित है और इसके प्रभाव को सशक्त रूप में दिखाती है। ध्रुव (शाहिर शेख) जैसे हिंसक और नियंत्रणकारी पति के साथ सौम्या का विवाह, शारीरिक हिंसा का एक घिनौना उदाहरण प्रस्तुत करता है। फिल्म में यह दर्शाया गया है कि कैसे एक पुरुष का क्रोध और शारीरिक ताकत एक महिला के जीवन को तहस-नहस कर देती है। पति-पत्नी के रिश्ते में जब प्यार की जगह हिंसा ले ले, तो चोट पूरे परिवार और खासकर बच्चों को लगती है। “दो पत्ती” में पति-पत्नी के रिश्ते में हिंसा का प्रवेश उस पारंपरिक सोच को भी उजागर करता है, जो परिवार के भीतर इस प्रकार के उत्पीड़न को नजरअंदाज कर देती है। विडंबना देखिए, हिंसा के इतने खतरनाक रूप को ‘घरेलू’ कहा जाता है, जिस कारण समाज के ज्यादातर लोग पति-पत्नी के इस आपसी मामले में दखल तक नहीं देते।
दोनों फिल्में घरेलू हिंसा के विभिन्न रूपों को सामने लाती हैं, लेकिन इनका उद्देश्य एक ही है – महिलाओं के अधिकार और उनकी गरिमा की रक्षा करना। “मिसेज” जहां मानसिक उत्पीड़न की सूक्ष्म और नर्मी से दिखाई जाने वाली कहानी है, वहीं “दो पत्ती” शारीरिक हिंसा की सच्चाई को खुलकर पेश करती है। “मिसेज” हमें यह समझने में मदद करती है कि हिंसा केवल शरीर तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह मानसिक रूप से भी एक महिला को तोड़ देती है। दूसरी ओर, “दो पत्ती” शारीरिक हिंसा के माध्यम से महिलाओं के आत्मनिर्भरता को छीनने और उन्हें कमजोर बनाने की प्रक्रिया को बखूबी दर्शाती है।
दोनों ही फिल्में इस बात पर जोर देती हैं कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा मानसिक हो या शारीरिक, समाज के लिए एक गंभीर समस्या है और इस मुद्दे को आवाज़ देनी चाहिए। और यही आवाज़ इन फिल्मो की नायिका उठाती है “मिसेज” की ऋचा मानसिक उत्पीड़न का मुकाबला आत्मविश्वास और साहस से कर अपने सपने पुरे करती है वही “दो पत्ती” की सौम्या शारीरिक हिंसा से अंततः बाहर निकल कर आत्म-सम्मान को पहचानती है।
इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर, हम यह न केवल देख सकते हैं कि महिलाएं अपनी स्थिति को बदलने के लिए संघर्ष कर रही हैं, बल्कि यह भी समझ सकते हैं कि किसी भी प्रकार की हिंसा, चाहे वह मानसिक हो या शारीरिक, महिलाओं के लिए एक अभिशाप है। उन्हें इससे उबरने के लिए समाज से समर्थन, जागरूकता और समझ की आवश्यकता है। यही सशक्तिकरण की दिशा है, जहां महिलाएं अपने अधिकारों के लिए खड़ी होती हैं और समाज में बदलाव की अलख जगाती हैं।
लेखक हिंदी अनुवादक एवं फिल्म समीक्षक है