सीएम राइज स्कूल के आसपास के 5 किलोमीटर के स्कूलों को बंद करने के खिलाफ एकजुट हों
राज्य सरकार द्वारा हाल ही में जारी किए गए आदेश जिसमे सी एम राइज स्कूल के 5 किलोमीटर दायरे के सरकारी स्कूलों की सूची मांग कर उन्हें सी एम राइज स्कूल में ही मर्ज कर बंद करने की तैयारी है। इस पर कड़ा विरोध जताते हुए छात्र संगठन एआईडीएसओ के राज्य अध्यक्ष अजीत सिंह पंवार ने कहा कि ‘सरकारी स्कूलों को बंद करने की सरकार की मंशा नयी नहीं है। वह लगातार प्रदेश के सरकारी स्कूलों को बंद कर शिक्षा देने की अपनी मूलभूत जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रही है। पहली बार इस खबर के सामने आने से ही छात्र संगठन ए आई डी एस ओ छात्रों- शिक्षको-अभिवावकों और शिक्षा प्रेमी जनता को साथ लेकर सरकारी स्कूल बंद करने के खिलाफ आंदोलनरत है।
इससे पहले एक शाला एक परिसर, क्लोजर मर्जर के नाम से प्रदेश सरकार 34 हजार शासकीय स्कूलों को 19 हजार स्कूलों में मर्ज कर चुकी है । प्रदेश के 20 जिलों के 89 आदिवासी ब्लॉक में संचालित हो रहे 10506 स्कूलों को 4746 स्कूलों में मर्ज किया गया है यानि कि 5768 स्कूलों को बंद कर दिया गया है। लगातार हर साल स्कूलों को बंद किया जा रहा है। (एक समय प्रदेश में स्कूलों की संख्या 1 लाख 21 हजार थी जो घटकर 90 हजार स्कूलों तक पहुंच गयी है) यह बेहद चिंतनीय विषय है। एक तरफ नई शिक्षा नीति 2020 के तहत स्कूली शिक्षा की कायाकल्प की बात की जा रही है लेकिन इसी नीति में स्कूल काम्पलेक्स की अवधारणा के तहत मध्यप्रदेश में CM राइज स्कूल की नीति के नाम से लाया गया है जो कि PPP मॉडल पर संचालित होंगे ।इस दायरे के प्राइमरी- मिडिल – हाइस्कूल को मर्ज यानि बंद कर दिया जाएगा, मतलब यह नीति स्कूलों को बंद करने की नीति है, जिसके पीछे सोची समझी साजिश लगती है। अभी हाल में प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा कि जिस जगह सरकारी स्कूल नही है उस जगह निजी स्कूलों को बढ़ावा दिया जाएगा। यह बयान सीधे तौर पर शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा देगा। हाल ही में प्रदेश के विभिन्न गांव-शहरों से आई खबरों के मुताबिक बड़ी संख्या में स्कूल मूलभूत सुविधाओं से विहीन हैं। कहीं सड़क नहीं है, कहीं बिजली नहीं है, कहीं शिक्षक नहीं है। यहां तक की स्कूलों की गिरती दीवारों के नीचे दबने से छात्र-छात्राओं की जान तक चली गई हैं। आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश के 25 फीसदी विद्यालयों में बिजली, पानी, बिल्डिंग जैसी मूलभूत सुविधाएं नही हैं, 1286 विद्यालयों में एक भी शिक्षक नहीं है। छात्रों के भविष्य को संकट में डालने वाले इन स्कूलों में कैसे कोई परिजन अपने बच्चों को प्रवेश दिलाएंगे? सरकार इन सवालों का जवाब देने की बजाय संस्थानों को ही बंद कर जनता जो निजी शिक्षण संस्थानों की लूट को बढ़ाने छोड़ दे रही है। जबकि हालात ये हैं कि अभी भी 49 फीसदी छात्र 10 वी के बाद पढ़ाई छोड़ दे रहे हैं। सरकार के गैर जिम्मेदार रवैये के कारण 482 स्कूलों में एक भी छात्र ने प्रवेश नहीं लिया। संवेदनहीन राज्य सरकार ने इन कमियों को दुरुस्त करने की बजाय स्कूल बंद करने को ही समाधान मान लिया है। यदि सरकार की मंशा वास्तव में सी एम राइज स्कूल खोलकर छात्रों को उत्कृष्ट शिक्षा देने की होती तो वह नए स्कूलों का निर्माण करती और उनमें सुविधाएं उपलब्ध कराती। लेकिन सिर्फ घोषणाओं में ‘राइज’ होने वाले ये स्कूल खुद ही आज जी का जंजाल बन चुके हैं। जितनी बातें इस योजना को लाते वक्त कही गई थी उनमें से किसी का भी क्रियान्वयन सही तरीके से नही हुआ है।
ऐसे किसी स्कूल में नए भवन व अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने की जगह सरकार ने पहले से ही संचालित स्कूल का सिर्फ नाम बदलकर खानापूर्ति कर ली है। इसके बाद भी सैकड़ों सीएम राइज स्कूलों के पास खुद का भवन ही नहीं है। पर्याप्त संख्या में शिक्षक नहीं है, मूलभूत सुविधाओं की ही कमी है तब बस, स्वीमिंग पूल, रोबोटिक्स लैब की बात तो भूल ही जाइये। जबकि इससे पहले शिक्षा के अधिकार कानून में ही बात की गई थी कि यदि छात्र स्कूल तक नहीं आ पायेगा तो स्कूल छात्रों तक जाएगा। आज भी कितने ही ऐसे दृश्य हमारे सामने होते हैं जब छात्र घुटनों तक कीचड़ में चलकर या रस्सी के सहारे नदी-नाले पारकर, जान जोखिम में डालकर स्कूल जा रहे हैं, तब तो और अधिक संख्या में स्कूल खोलने की जरूरत है। आज प्रदेश के इन सरकारी स्कूलों में वे छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं जिनके माता-पिता निजी स्कूलों की मोटी फीस भरने में सक्षम नहीं हैं। और इनकी संख्या आज भी मुल्क में सबसे ज्यादा है। जरूरत है कि इन स्कूलों में शिक्षा के स्तर को उन्नत किया जाए। आपके और हमारे गांव शहरों में संचालित इन स्कूलों से पिछले कई दशकों से कई पीढ़ियों को पढ़ाया – लिखाया है और हज़ारों ऐसे लोग जो ऊंचे ओहदों पर हैं इन्ही स्कूलों से निकले हैं। सरकारों की साजिशों के शिकार ये स्कूल आज बंद किए जा रहे हैं। हम सभी शिक्षकों-छात्रों-अभिभावकों व आम जन से अपील करते हैं कि जनता के टैक्स से बने इन स्कूलों को बचाने आगे आएं और 29 अगस्त को इस नीति के खिलाफ भोपाल में हो रहे विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए।