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लोककंठ गतिविधि में हुई प्रदेश के आंचलिक गीतों और भजनों की प्रस्तुति

भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में लोक गायन पर केंद्रित गतिविधि “लोककंठ” का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें आज 6 अक्टूबर को  कल्याणी मिश्रा द्वारा बघेली,  स्वाति उखले द्वारा मालवी,  कविता शर्मा और ऋषि विश्वकर्मा द्वारा बुंदेली एवं  राखी बांके और श्री विकास शुक्ला द्वारा निमाड़ी लोक गीतों और भजनों की प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्जवलन एवं कलाकारों के स्वागत से की गई। कलाकारों का स्वागत निदेशक, जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी डॉ. धर्मेंद्र पारे द्वारा किया गया। समारोह में ऋषि विश्वकर्मा, सागर द्वारा देवी गीत आ गयी आ गयी रे…वीरा ओयी वन रे… देवी भगत (स्वांग) एवं सुश्री कल्याणी मिश्रा, रीवा द्वारा टिप्पा -ऊँची मिढ़लिया बर्रे दियना, भगत – सात बहानियाँ है देवी शारदा…बिरहा – मईहर में देवी शारदा विराजे… राखी बांके, भोपाल द्वारा गणपती भजन- पाइली सभा म पधारो… गरबा – को गरबो घूमतो रमतो…गरबा – रंग लाग्यो रंग लाग्यो…गीत की प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम में सुश्री स्वाति उखले, चित्रांशी उखले, उज्जैन द्वारा मालवी लोक गीत थारी पूजा मे आस तो लगायी मारी माय…पावगाड़ वाली महाकाली जगदम्बा… ऊँची नीची पेढ़ी थारा मंदरिया भजनों की प्रस्तुति दी गई। वहीं कविता शर्मा, छतरपुर द्वारा बुंदेली लोक गीत की प्रस्तुति दी है। इन्होंने मोरी मईया विराजो मोरे कंठ पर…जागो रे माई जवाला भवानी… एवं कलाकार श्री विकास शुक्ला, हरदा द्वारा निमाड़ी लोक गीत माई थारा आंगरिया मे मोर… माई थारा मंदिर मे डंको बाजो…थारा हाथा मा चूड़ी लो हो बड़ो… गीतों एवं भजनों की प्रस्तुति दी गई।

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