खबरमध्य प्रदेश

प्रेम, प्रकृति और प्रार्थना के गीतों में गूँज उठा गुरुदेव का रवीन्द्र संगीत

टैगोर कला केन्द्र के ‘प्रणति पर्व’ में रेनीवृन्द की अनूठी प्रस्तुति

भोपाल। आनंद लोके मंगल लोके… मोर वीणा ओठे कोन शूरे बाजि… जोदी तोर डाक शुने केउ ना आशे तोबे एकला चालो रे…। बांग्ला की सोंधी खुश्बुओं और मीठी धुनों में लरजते ये तराने जब एक साथ कई आवाज़ों में गूँजे तो वैशाख की तपिश मानो सुकून में बदल गयी। रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के मुक्तधारा सभागार में प्रणति पर्व का यह सुरीला समागम गुरुदेव की जयंती पर भावभीनी श्रद्धा का प्रतीक बना।

टैगोर विश्व कला एवम् संस्कृति केन्द्र के संयोजन में रची इस सभा को रेनी वृन्द के कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से यादगार बना दिया। प्रेम, प्रकृति और प्रार्थना का संदेश देता रवीन्द्र संगीत अनायास ही श्रोताओं के ओठों पर भी थिरक उठा। वृन्दगान के लिए समर्पित रंगकर्मी रीना सिन्हा के निर्देशन तथा संगीतकार मॉरिस लाजरस तकनीकी के समन्वय में यह प्रस्तुति साहित्य और संगीत का अनूठा प्रयोग बनीं। बतौर अतिथि उपस्थित आकाशवाणी के कार्यक्रम प्रभारी राजेश भट्ट ने कहा कि भारत को राष्ट्रगान की महान संपदा सौंपने वाले गुरुदेव का बहुआयामी रचना संसार आज सारी दुनिया के लिए मनुष्यता का संदेश है। टैगोर प्रतिभा के महासागर थे। आरएनटीयू की प्रो. चांसलर डॉ. अदिति चतुर्वेदी वत्स ने टैगोर के कृतित्व पर केन्द्रित महत्वपूर्ण दस्तावेज़ी परियोजनाओं के बारे में विस्तार से अवगत कराया। उन्होंने रवीन्द्र संगीत पर केन्द्रित एक राष्ट्रीय कार्यशाला की घोषणा भी की। कुलपति डॉ. आरपी दुबे ने नई शिक्षा नीति और टैगोर के प्रयोगों के परस्पर समान दृष्टिकोण को अपने वक्तव्य में रेखांकित किया। टैगोर कला केन्द्र के निदेशक तथा वरिष्ठ कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने टैगोर की सांस्कृतिक विरासत और रवीन्द्र संगीत के कलात्मक आयामों पर विस्तार से प्रकाश डाला।

सांस्कृतिक सभा का आरंभ गुरुदेव की प्रतिभा पर सामूहिक पुष्पांजलि से हुआ। इस अवसर पर गुरुदेव के गीतों पर एकाग्र नृत्य नाटिका की बहुरंगी सचित्र पुस्तिका ‘गीतांजलि’ का लोकार्पण भी किया गया। आईसेक्ट प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तिका की परिकल्पना और आलेख रचना विनय उपाध्याय ने की है। आवरण आकल्पन मुदित श्रीवास्तव ने किया है जबकि तकनीकी संयोजन अमीन उद्दीन शेख का है। इस अवसर पर कुलसचिव डॉ. संगीता जौहरी भी विशेष रूप से उपस्थित थीं। प्रणति पर्व का समापन टैगोर रचित राष्ट्रगान से हुआ।

 

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