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शेख हसीना ने अपनी बहन शेख रिहाना से भी कहा कि वे देश छोड़ना नहीं चाहतीं. उनके बेटे सजीब वजीद, जो अमेरिका में रहते हैं, को भी बुलाया गया और उनसे बातचीत कर भारत जाने के लिए मनाने की कोशिश की गई. लेकिन हसीना का जवाब था कि मैं अपने देश को छोड़ने से बेहतर मरना पसंद करूंगी.
किताब में इस निर्णायक मोड़ को इस तरह बताया गया है कि एक मिनट में हसीना को भारत के एक “शीर्ष अधिकारी” का कॉल आया, जिसे वह अच्छी तरह जानती थीं. अधिकारी ने साफ कहा कि अब बहुत देर हो चुकी है. अगर आप तुरंत गोनाभबन नहीं छोड़तीं, तो आपकी हत्या हो जाएगी. आपको जीवित रहकर अगली लड़ाई लड़नी चाहिए. यह छोटा सा, लेकिन निर्णायक संदेश हसीना के लिए जीवन और मौत का अंतर साबित हुआ. आधे घंटे तक सोचने के बाद उन्होंने देश छोड़ने का फैसला कर लिया.
हसीना ने जाने से पहले भाषण रिकॉर्ड करने की अनुमति मांगी, लेकिन सेवा प्रमुखों ने मना कर दिया. उनकी बहन शेख रिहाना ने उन्हें SUV में बैठाकर हेलिपैड तक पहुंचाया. उनके साथ केवल दो सूटकेस में कपड़े थे. 2.23 बजे हेलीकॉप्टर गोनाभबन से उड़ान भरता है और 2.35 बजे तेजगांव एयर बेस पर उतरता है.
C-170J विमान 2.42 बजे तेजगांव से उड़ान भरकर लगभग 20 मिनट में पश्चिम बंगाल के मालदा के ऊपर से भारतीय हवाई क्षेत्र में प्रवेश करता है. उसी दिन, सुबह 4 बजे से ही दिन की शुरुआत कर रही हसीना को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल ने हिंदन एयरबेस पर स्वागत किया और उन्हें दिल्ली के एक सुरक्षित अज्ञात स्थान पर ले जाया गया.