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सूर्य को अर्घ्य दिए बिना अधूरा है छठ पूजा, जानें सूर्य को संध्या और उषा अर्घ्य देने का महत्व

छठ पूजा सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है. यह पर्व भगवान सूर्यदेव और उनकी बहन छठी मईया को समर्पित है. सूर्य देव को अर्घ्य देना इस पर्व का मुख्य हिस्सा है. इस पर्व के दौरान सूर्य देव को दो बार अर्घ्य दिया जाता है, पहला, पर्व के तीसरे दिन संध्या अर्घ्य, और दूसरा, चौथे तथा अंतिम दिन उषा अर्घ्य दिया जाता है. आइए जानते हैं इसका महत्व

छठ पूजा का पावन पर्व कल यानी 25 अक्टूबर से शुरू हो रहा है. यह त्योहार खास तौर पर बिहार, झारखंड, यूपी और बंगाल में मनाया जाता है. यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है. पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है. इसके अगले दिन खरना, तीसरे दिन संध्या अर्घ्य, और अंतिम दिन उषा अर्घ्य दिया जाता है. छठ पूजा में सूर्य देव को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है. श्रद्धालु गंगा घाट, तालाब, पोखर या अन्य पवित्र जलाशयों में जाकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं.

छठ पूजा के समय भगवान सूर्य को संध्या अर्घ्य देने का महत्व क्या है?

हिंदू पर्व छठ पूजा में संध्या अर्घ्य, यानी डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, संध्या के समय भगवान सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं, इस कारण इसे प्रत्यूषा अर्घ्य भी कहा जाता है. सूर्य का उदय और अस्त जीवन के उतार-चढ़ाव का प्रतीक माना जाता है. डूबता सूर्य जीवन की कठिनाइयों को स्वीकार कर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है. इसके अलावा, यह भी माना जाता है कि डूबते सूर्य को अर्घ्य देने से बीमारियों से राहत मिलती है, सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है और संतान की आयु लंबी होती है.

सूर्य देव को उषा अर्घ्य देने का महत्व क्या है?

धार्मिक मान्यता के अनुसार, सुबह के समय जब सूर्य की पहली किरण निकलती है, तब पानी में उतरकर अर्घ्य देने से स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. सूर्य की पहली किरणों में रोगों को कम करने की क्षमता होती है. ऐसा भी माना जाता है कि इस समय भगवान सूर्य अपनी पत्नी उषा के साथ रहते हैं. सुबह के समय अर्घ्य देने के बाद ही छठ पूजा पूर्ण मानी जाती है.

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