प्रह्लाद की भक्ति ने हिरण्यकश्यप के अहंकार को नष्ट किया : आचार्य मनीष कृष्ण शास्त्री

पुराने भोपाल के अग्रवाल धर्मशाला में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में सोमवार को हिरण्यकश्यप और भक्त प्रह्लाद की कथा का वर्णन सुनाया गया। वृंदावन से पधारे आचार्य मनीष कृष्ण शास्त्री ने कथा में बताया कि अहंकार एक रोग है। अहंकार मनुष्य की बुद्धि का नाश कर देता है। अहंकार में व्यक्ति स्वयं को ही श्रेष्ठ समझने लगता है। इसका परिणाम उसे भुगतना पढ़ता है। हिरण्यकश्यप की कथा जीवन में बड़ी सीख देती है। हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानता था। उसकी इच्छा थी कि उसकी भी पूजा भगवान की तरह हो। हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था, जिसका नाम प्रहलाद था। प्रहलाद आरंभ से ही धार्मिक प्रवृत्ति का था। उसने हिरण्यकश्यप की पूजा करने से मना कर दिया। प्रहलाद भगवान विष्णु के भक्त थे और उनकी की पूजा किया करते थे। वे उनकी भक्ति में लीन रहते थे। प्रहलाद की भक्ति की खबर जब पिता हिरण्यकश्यप को हुई तो उसने प्रहलाद को तरह तरह की यातनाएं दीं ।प्रहलाद फिर भी नहीं माने। इसके बाद हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से प्रहलाद को जलती आग में बैठने के लिए कहा। होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जल सकती है। हिरण्यकश्यप के कहने पर जैसे ही होलिका, प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठी तो वह जलने लगी। भक्त प्रहलाद भगवान विष्णु की स्तुति करते रहे। इस प्रकार से होलिका जलकर राख हो गई लेकिन भक्त प्रहलाद को आग छू भी न सकी। कथा में परीक्षित राजेश वरुणा रिछारिया हैं। सोमवार की कथा में पंडित राकेश चतुर्वेदी, अवधेश तिवारी, पंकज जायसवाल सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण उपस्थित थे।