श्री 1008 भगवान महावीर स्वामी दिगंबर जैन मंदिर में होगा भगवन तुम क्यों आए!!” नाटक का मंचन।

पर्युषण पर्व के छठवें दिन श्रावकों ने दसलक्षण धर्म के उत्तम संयम धर्म को अंगीकार किया।
भाद्रपद शुक्ल दशमी पर श्रीजी के चरणों में अर्पित की धूप।
धूप की सुगंध से महक उठा जिनालय।
भोपाल।भगवान महावीर दिगंबर जैन मंदिर साकेत नगर में पर्युषण पर्व के अवसर पर रोजाना मंचित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में नाटक “भगवन तुम क्यों आए” हास्य नाटक का मंचन आज रात्रि 8:30 बजे से किया जाएगा। हेमलता जैन रचना ने बताया कि इस हास्य नाटक का निर्देशन भोपाल शहर के जाने माने, विभिन्न टीवी सीरियल्स, व्यावसायिक विज्ञापनों, फिल्मों तथा रंगमंच पर अपनी अदाकारी का लोहा मनवाने वाले राष्ट्रीय स्तर के कलाकार अखिलेश जैन द्वारा समांतर ग्रुप एवं एन्सेम्बल थिएटर इन एजुकेशन के बैनर तले साकेत नगर जैन मंदिर के भव्य विद्यासागर सभागार में किया जायेगा।
दशलक्षण पर्व पर दिगंबर जैन समाज द्वारा सुगंध दशमी का पर्व मनाया गया। इस अवसर पर साकेत नगर जैन मंदिर के अध्यक्ष नरेंद्र जैन तथा मंदिर समिति द्वारा दर्शन हेतु पधारे सभी दर्शनार्थियों के लिए शुद्ध प्रासुक जल एवं उकाली की व्यवस्था की गई। उल्लेखनीय है कि जैन धर्मावलंबियों द्वारा भाद्रपद शुक्ल दशमी पर श्रीजी के चरणों में धूप अर्पित कर इस दिन को धूपदशमी के रूप में मनाया जाता है, जिसमें सभी जैन धर्मावलम्बी शहर के सभी जैन मंदिरों की वंदना कर श्रीजी के चरणों में धूप अर्पित करते हैं ताकि समस्त अशुभ कर्मों का क्षय हो तथा पुण्य की प्राप्ति हो। श्री 1008 भगवान महावीर दिगम्बर जैन मंदिर साकेत नगर में नित्य नियम पूजन, अभिषेक, शांतिधारा एवं दस लक्षण धर्म, सुगंध दशमी व्रत की पूजा हुई। रोजाना बोली के माध्यम से अभिषेक एवं शांतिधारा का सौभाग्य पूर्ण उत्साह से श्रद्धालुजनों ने प्राप्त कर सुगंध दशमी का पर्व उत्साहपूर्वक मनाया तथा सामूहिक धूप खेवन कर अपने-अपने कर्मों की निरजरा की, तत्पश्चात तत्वार्थसूत्र पर पंडित पंकज की शास्त्री के प्रवचन हुए।
आत्म नियन्त्रण ही उत्तम संयम धर्म है : डॉ. पंकज जैन शास्त्री
श्री 1008 भगवान महावीर दिगंबर जैन मंदिर साकेत नगर धर्म के सबसे बड़े पर्व दशलक्षण पर्व के दिन जैन मंदिरों में उत्तम संयम धर्म की आराधना भक्तिभाव से की यी उत्म संयम धर्म की व्याख्या करते हुए डॉ. पंकज जैन शास्त्री ने कहा कि जैन शास्त्रों में उत्तम संयम धर्म के दो रूप प्राप्त होते हैं एक तो सभी प्राणियों की रक्षा करना संयम है। अहिंसा भी एक प्रकार से संयम ही है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं वनस्पति जैसे पर्यावरणीय तत्वों को भी जैनधर्म में जीव कहा है अतः संयम का पालन करने वाले जीव इनकी भी रक्षा करते हैं। संयम का दूसरा रूप है- इन्द्रियों और मन पर विजय प्राप्त करना। पांचों इन्द्रियों और मन पर विजय प्राप्त करना। पांचों इन्द्रियों के विषय भोगों में डूबकर मनुष्य अपनी आत्मा की पवित्रता और निर्मलता को भूल जाता है। इसलिये छोटे-छोटे नियम और संकल्पों के द्वारा और व्रतों को धारण करके, विषय भोगों को छोड़कर, आत्मा के स्वाभाविक आनन्द को प्राप्त करने की साधना भी उत्तम संयम धर्म है।