अध्यात्ममध्य प्रदेश

राम जन्म के हेतु अनेका परम् बिचित्र एक ते ऐका:पं०सुशील महाराज

त्रेतायुग में सोलह स्त्रियों की इच्छा पूर्ति नहीं होने के कारंण राम को द्वापर में कन्हैया बनकर जन्म लेना पडा था)
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर करोंद में चल रही श्रीराम कथा एवं श्रीराम महायज्ञ में आज श्री देवेन्द्र नाथ पाठक अध्यक्ष,एवं सचिब श्री अरविंद पाण्डेय तथा संस्थापक डा०श्याम सुन्दर सिंह ने व अशोक पाण्डेय द्वारा कथाबाचक पं०सुशील महाराज का पुष्पहार से स्वागत किया तथा धर्मग्रंन्थ रामायंण की पूजा की गई । श्रीअपने दिनेश सिंहअवधेश यादव तथा रामतथा रामसमुझ यादव एवं डॉक्टर मायाराम अटल द्वारा पंडित सुशील महाराज को चला एवं श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया गया। इसके उपरांत प्रवचन में कथावाचक पं०सुशील महाराज ने गूढ जानकारी देते हुए बताया है कि वैसे तो श्री रामजन्म के अनेकों कारंण मौजूद थे।लेकिन उनमें प्रमुख कारणों पर पं०सुशील महाराज ने प्रकाश डालते हुये श्रोताओं को गूढ जानकारी उपलब्ध करवाई।सर्व प्रथम पं०सुशील महाराज ने श्री गोस्वामी तुलसीदास दास द्वारा रामचरित मानस में चार कल्पों का विभाग करके बताये गये प्रमुख चार हेतु (ऋषिशाप से जय और विजय के राबंण और कुंम्भकर्ण होने पर,जालंधर के राबंण होने पर,नारद जी के शाप से हरगणों के राबंण और कुंम्भकरंण बनने पर,स्वयंभुव मनु की तपस्या और भानु प्रताप के अभिशप्त होकर रावंण के रूप में जन्म लेने पर)इन कल्पों में राबंण और कुंम्भकरण इन कारणों से महा असुर वने थे।त्रेतायुग में राबंण द्वारा ऋषि-मुनियों की चुन-चुन कर करवाई गई हत्याओं के रहस्य पर से पर्दा हटाते हुये पं०सुशील महाराज ने गूढ रहस्य को श्रोताओं के सामने उजागर किया ।उन्होंने बताया कि राबंण और कुंम्भकरण पूर्व जन्म में जय और विजय नाम के दो पुरूष श्री बिष्णु भगवान के स्वामि भक्त धर्मवान द्वारपाल थे।एक दिन श्री बिष्णु भगवान शयन बिश्राम कर रहे थे।उस समय ऋषिराज ने द्वार पालों को आदेश दिया कि उन्हें अभी श्री बिष्णु से मिलना है।तव द्वार पालों ने श्री विष्णु भगवान से पूंछकर अन्दर जाने का कहा।इस बात पर गुस्सा होकर ऋषिराज ने जय और विजय दोनों द्वारपालों को भयंकर निशाचर होने का श्राप दे दिया । दो धर्मवान स्वामिभक्तों को निरपराध होने के बावजूद ऋषिराज द्वारा श्राप दिया जाना उनकी सिद्धयों का दुरुपयोग किया गया था।ऋषिराज ने अहंकार के कारंण दो धर्मवान ब्यक्तियों को महानिशाचर होने का श्राप अन्याय पूर्ण तरीके से दिया था।इसलिए संन्त पुरुष जय विजय ने महाअसुर राबंण और कुंम्भकरण बनकर ऋषिराज के सम्पूर्ण अनुयायियों को मौत के घाट उतार कर अपना बदला पूरा करके सिद्धपुरूषों को यह शिक्षा दिया था।कि सिद्धयों के दम पर अगर सिद्धपुरुष अन्याय और अधर्म का मार्ग अपनायेंगे।तो ईश्वर महाअसुरों को सिद्धियां प्रदान करके अहंकारी सिद्धपुरूषों को इस प्रकार से दंण्ड दिलवायेंगे।ईश्वर के तराजू में न्याय सदैव निष्पक्ष होता है। इसलिए निर्दौष ऋषियों की रक्षा एवं अपने परम् भक्तों जय और विजय को महाअसुर राबंण और कुंम्भकरण बने दोनों द्वारपालों को असुर प्रजाति से मुक्ति दिलवाने के लिये प्रभु श्रीराम ने अवतार लिया था,इसी प्रकार त्रेता युग में एक बार राम अयोध्या में एकांत में विश्राम कर रहे थे उसी समय 16 स्त्रियां उनके पास आई । और श्री राम से उनकी कामवासना को मिटाने का आग्रह करने लगी। तब श्री राम ने उनसे कहा कि मैं त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रकट हुआ हूं। इसलिए तुम्हारी इच्छा पूर्ण नहीं कर सकता हूं लेकिन द्वापर में कन्हैया बनकर मैं तुम्हें अपनी पत्नी के रूप में अवश्य ही स्वीकार करूंगा। इसीलिएश्री राम ने द्वापर में कन्हैया बनकर के जन्म लिया था।
(पं०सुशील महाराज)

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