भोपाल। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में ‘लोकतंत्र’ हर दिन ही कसौटी पर रहता है। आज भी ‘लोक’ प्रलोभन में आ जाता है, इसलिए पहले उसे परिपक्व करना होगा। हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों ने चुनावी निष्पक्षता को साबित किया है। लोकतंत्र की नई ताकत बनकर उभरी है ईवीएम मशीन। इस तरह के विचार शनिवार शाम हिंदी भवन में सुनाई दिये। अवसर था मप्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की नियमित श्रंखला वरिष्ठ विमर्श का। हर महीने के तीसरे शनिवार को होने वाले इस कार्यक्रम में इस बार ‘भारतीय लोकतंत्र एक बार पुन: कसौटी पर’ विषय पर विचार-विमर्श हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व प्रशासनिक अधिकारी केके सेठी ने की।
विषय पर विचार रखते हुए युवा अधिवक्ता क्षितिज खरे ने कहा कि – भारत में लोकतंत्र हर दिन ही कसौटी पर रहता है। हाल ही में हुए चुनावों में जो जनादेश सामने आया है, उसने गठबंधन की सरकार दी है। देश में गठबंधन की सरकार अच्छे से चल सकती है अटलबिहारी वाजपेयी ने इसकी मिसाल पेश की थी। फिर भी गठबंधन सरकार की कुछ मजबूरी तो होती है, वर्तमान सरकार को इनका सामना तो करना ही होगा। वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र शर्मा ने कहा कि इस देश में हर पांच साल में चुनाव होते हैं, इसके दृष्टिगत् लोकतंत्र तो यहां रोज ही कसौटी पर रहता है। इस बार के चुनावों ने ईवीएम की निष्पक्षता साबित की है। यह मशीन लोकतंत्र की नई ताकत बनकर उभरी है। गांधी भवन के दयाराम नामदेव ने कहा कि लोकतंत्र में ‘लोक’ कमजोर हुआ है, वह प्रलोभन में आ जाता है। हमें पहले मतदाता को परिपक्व करना होगा। वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. एनडी गार्गव ने कहा कि लोकतंत्र की आत्मा संविधान है, हमें संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करना चाहिए। चर्चा में वरिष्ठ अधिवक्ता बीके सांघी, साहित्यकार गोकुल सोनी,डॉ. मीनू पांडेय, अक्षय आदि ने भी विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन महेश सक्सेना ने किया तथा आभार प्रदर्शन समिति के सहमंत्री डॉ. संजय सक्सेना ने किया। कार्यक्रम में समिति के मंत्री संचालक कैलाशचंद्र पंत सहित बड़ी संख्या में शहर के प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।
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