खबरमध्य प्रदेश

विभिन्न जानवरों के मुखौटे पहनकर किए नृत्य 

मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में प्रतिरूप समारोह शुरू

7 राज्यों के साथ 8 देशों के मुखौटे एवं नृत्यों का हो रहा प्रदर्शन

भोपाल। जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आज 27 से 29  सितंबर तक दोपहर 02 बजे से कलाओं में मुखौटे के उपयोग आधारित प्रतिरूप समारोह का आयोजन किया गया है, जिसमें प्रदेश के साथ-साथ अन्य 10 राज्यों के ऐसे नृत्यों की प्रस्तुति दी जा रही है, जिनमें मुखौटा का उपयोग किया जाता है। समारोह के उद्घाटन सत्र में पद्मश्री दुर्गा बाई व्याम, पद्मश्री श्री अर्जुन सिंह धुर्वे, संचालक, संस्कृति संचालनालय श्री एन.पी. नामदेव, निदेशक, जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी डॉ. धर्मेंद्र पारे उपस्थित रहे। समारोह की शुरूआत दीप प्रज्जवलन एवं कलाकारों के स्वागत से की गई।

समारोह की खास बात यह है कि संग्रहालय में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय मुखौटा आधारित प्रदर्शनी का संयोजन किया गया है। समारोह में हिमालय विश्व संग्रहालय, सिक्किम के सहयोग से भारत के 7 राज्यों सहित 8 देशों के कलाओं में मुखौटे प्रतिरूप प्रदर्शनी का संयोजन किया गया है। प्रदर्शनी में ऐसे लगभग 100 मुखैटे हैं, जो भारत सहित सहित नेपाल, भूटान, तिब्बत, बांग्लादेश, फिजी, मलेशिया, श्रीलंका और इंडोनेशिया एवं अन्य देशों के मुखौटे प्रदर्शित किए गए हैं। इसके साथ ही समारोह में सुस्वादु व्यंजन भी उपलब्ध रहेंगे। गतिविधि अवलोकन के लिए आप सादर आमंत्रित हैं। प्रवेस निःशुल्क है।

सांस्कृतिक प्रस्तुति
तीन दिवसीय समारोह में आज 27 अक्टूबर, 2024 को छबिलदास विष्णु गवली एवं साथी, महाराष्ट्र द्वारा सौंगी मुखौटा की प्रस्तुति दी गई। यह नृत्य चैत्र पूर्णिमा के अवसर पर देवी पूजन के साथ किया जाता है। सौंगी मुखौटा दो नर्तक पात्रों द्वारा नरसिंह का मुखौटा धारण किये जाने के आधार पर माना जाता है। काल भैरव एवं वेताल का अभिनय करने वाले नर्तक भी मुखौटे पहनते हैं तथा अन्य नर्तक हाथों में डंडियाँ लेकर नृत्य करते हैं। इस नृत्य के प्रमुख वाद्यों में ढोल, पंवारी और सम्बल है। पंवारी वादक हरे रंग का वस्त्र धारण करता है, तथा पगड़ी मयूर पंख से सुशोभित होती है।

निशानथ के एम एवं साथी, केरल द्वारा थैय्यम नृत्य प्रस्तुत किया। थैय्यम केरल का पारंपरिक लोक नृत्य और उत्तरी केरल का भक्ति नृत्य है, जिसमें वर्ष में एक बार 25 से अधिक नृत्यों का प्रदर्शन किया जाता है। प्रति वर्ष अक्टूबर माह में में उत्तरी केरल की ओर से फसल कटाई के बाद घरों में थैय्यम नृत्य किया जाता है और भगवान को नृत्य के माध्यम से धन्यवाद ज्ञापित किया जाता है।

अगले क्रम में पवनभाई रामूभाई बागुल एवं साथी, गुजरात द्वारा भवाड़ा नृत्य की प्रस्तुति दी। डांगी जनजातीय द्वारा किये जाने वाले भवाड़ा नृत्य का अर्थ है मुखौटा पहनकर किया जाने वाला नृत्य। यह एक प्रकार की धार्मिक मान्यता है, जो किसी के सामने आई बाधा दुःख को दूर करने के लिए की जाती है। अखातीज से पहले अप्रैल में माह में विभिन्न देवताओं और असुरों के मुखौटे पहनकर भवाड़ा नृत्य किया जाता है। ग्रामीण किसान माताजी की मान्यता मांगते हैं और ग्राम में तीन या पांच साल तक भवाड़ा रखने की मान्यता मांगते हैं। अच्छी फसल की कामना के लिए, संतान प्राप्ती के लिये ग्रामीण भवाड़ा नृत्य आयोजित कराता है। ऐसी मान्यता न केवल डांगी जनजातियों में है, बल्कि पूरे गुजरात में प्रचलित रही है। नृत्य में देवी-देवताओं और असुरों मुखौटे का उपयोग किया जाता है।

गौरांग नायक एवं साथी, उड़ीसा द्वारा साही जाता की प्रस्तुति दी। लोक नृत्य में जात्रा भारत के पूर्वी क्षेत्र का लोक कलामंच का एक लोकप्रिय रूप है। यह कई व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाला एक नाट्य अभिनय है जिसमें संगीत, अभिनय,गायन और नाटकीय वाद-विवाद होता है। विशेष रूप से यह लोकनाटक बंगाल और उड़ीसा में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। धार्मिक रैली एवं अनुष्ठानों में साही जाता नृत्य का प्रदर्शन होता है, जिसमें कलाकार भगवान श्रीगणेण, नरसिंह एवं देवी के मुखौटों का उपयोग कर नृत्य में सहभागिता करता है।

जोगिंदर सिंह एवं साथी, हिमाचल प्रदेश द्वारा सिंहटू नृत्य की प्रस्तुति दी। सिरमौरी बोली में शेर के बच्चे को सिंहटू कहा जाता है। सिंह को मां दूर्गा भगवती का वाहन माना जाता है। सिंहटू नृत्य सिरमौर जनपद के गिरीपार हाटी जनजातीय समुदाय के लोगों का देव परम्परा से जुड़ा एक प्राचीन नृत्य है जिसमें कलाकार लकड़ी, लकड़ी के बुरादे व उड़द के आटे के पारम्परिक तरीके से बनाए गए मुखौटे पहनकर नृत्य करते हैं। सिंहदू नृत्य में सी, रीछ, राल, बणमाणुश, पोंछी, आदि कई प्रकार के मुखौटे पहनकर नृत्य किया जाता है। इस नृत्य में ढोल, नगाड़ा, शहनाई, करनाल, बांसुरी खंजरी इत्यादि पारंम्परिक वाद्य यन्त्रों का उपयोग किया जाता है। हिमाचल के सिरमौर जनपद के गिरीपार के हाटी जनजातीय क्षेत्र की यह नृत्य परम्परा लुप्त होती जा रही है। आज भी सिरमौर जनपद में गिरीपार जनजातीय क्षेत्र के मटलोड़ी कुप्फर और लेउ नाना गाँव में देवता के मंदिर के प्रांगण में सिंहटू नृत्य दीपावली ओर एकादशी के दिन हजारों दर्शकों के मध्य किया जाता है। सिरमौर जनपद के हाटी जनजातीय क्षेत्र का आदिकालीन सिंहटू नृत्य जहां हमें पुरातन संस्कृति व हमारी देव परम्पराओं का बोध कराता है वहीं आज के युग में यह नृत्य पर्यावरण और वन्य प्राणी संरक्षण का संदेश भी देता है।

इसके बाद छबी लाल प्रधान एवं साथी, सिक्किम द्वारा लाखे नृत्य की प्रस्तुति दी गई। लाखे नृत्य उत्तर भारत के सबसे लोकप्रिय नृत्यों में से एक है। त्योहारों के दौरान लाखे पोशाक और मुखौटा पहने कलाकार नृत्य करते हैं। मुखौटा कागज़ की लुगदी से बना होता है और बालों के लिए याक की पूंछ का उपयोग किया जाता है।

वहीं चाउ सरथाम नामचूम (Chow saratham namchoom) एवं साथी द्वारा खामटी जनजातीय मयूर नृत्य की प्रस्तुति दी गई। यह अरुणाचल प्रदेश में खामटी जनजाति का एक प्रमुख नृत्य है। ऐसा माना जाता है कि, जो आधे मानव शरीर वाले मोर नामक पौराणिक पक्षियों के अनुग्रहपूर्ण नृत्य को दर्शाता है जो हिमालय, किंगनारा (नर) और किंगनारी (नारी) में उपस्थित थे। साहित्य के अनुसार मयूर की उत्पत्ति प्रागैतिहासिक भारत में हुई थी। वे स्वयं भगवान बुद्ध के कुछ प्रवचनों में दिखाई देते हैं। यह नृत्य भारी बारिश और बाढ़ के कारण 700 रातों के बिछड़ने के बाद मोर के सुखद पुनर्मिलन का वर्णन करता है। यह किंगनारा (नर) और किंगनारी (नारी) के सच्चे प्रेम का एक लोकप्रिय प्रतीक भी है। प्राचीन इतिहास है, जिसे ताई लोगों की नृत्य मंडलियों द्वारा जीवित रखा गया है।

28 से 29 अक्टूबर, 2024 तक इन नृत्यों का होगा प्रदर्शन

सांस्कृतिक प्रस्तुतियों अंतर्गत छबिलदास विष्णु गवली एवं साथी, महाराष्ट्र द्वारा भवाड़ा नृत्य, निशानथ के एम एवं साथी, केरल द्वारा थैय्यम नृत्य, पवनभाई रामूभाई बागुल एवं साथी, गुजरात द्वारा भवाड़ा नृत्य, गौरांग नायक एवं साथी, उड़ीसा द्वारा साही जाता, जोगिंदर सिंह एवं साथी, हिमाचल प्रदेश द्वारा डग्याली नृत्य, छबी लाल प्रधान एवं साथी, सिक्किम द्वारा बज्रयोगिनी नृत्य, चाउ सरथाम नामचूम (Chow saratham namchoom) एवं साथी द्वारा खामटी जनजातीय का नृत्य, पौराणिक ढोल वादन भैरव नृत्य जागरी संस्कृति कला मंच समिति, उत्तराखंड द्वारा रम्माण एवं सृष्टिधर महतो एवं साथी, कोलकाता द्वारा पुरूलिया छऊ, पंडित राम एवं साथी, छत्तीसगढ़ द्वारा पंडो जनजाति सैला नृत्य एवं पद्मश्री अर्जुन सिंह धुर्वे एवं साथी, डिंडोरी द्वारा घोड़ी पैठाई नृत्य की प्रस्तुति दी जायेगी।

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