अध्यात्मखबरमध्य प्रदेश

शंका से होता है प्राणी का विनाश: पं०सुशील महाराज

शिव की बात पर शंका करने से हुआ सती के शरीर का विनाश 

भोपाल , श्री शिव मंदिर रुसली में श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिवस आज पंडित सुशील महाराज ने श्रोताओं को सती चरित्र एवं हिरणाक्ष व हिरणाकश्यप की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि शंका की बीमारी का कोई इलाज नहीं होता है । शंका विनाश का कारण होती है । मनुष्य ही नहीं देव-दानव भी शंका के कारण विनाश को प्राप्त कर चुके हैं । शिवाऔर सती के गुप्त रहस्य को उजागर करते हुए पंडित सुशील महाराज ने बताया कि एक बार शिव और सती प्रयागराज कुंभ से वापस लौट रहे थे। तभी भोले शिव ने राम को सीता को ढूंढते हुए देखा । तब शिव ने श्रीराम को मन ही मन प्रणाम किया ।तब सती ने प्रश्न किया कि आपने इन वनवासी लड़कों को प्रणाम क्यों किया है। भोले शिव ने सती से कहा कि यह साक्षात ब्रह्म है ।और मेरे इष्ट हैं । इसलिए मैंने इन्हें प्रणाम किया है । इस बात को लेकर सती के मन में शंका बैठ गई । वह राम को ईश्वर मानने के लिए तैयार ही नहीं हुई। तब भोले शिव ने कहा कि तुम अपनी शंका समाधान के लिए राम की परीक्षा लेकर आ जाओ । जब सती ने सीता का भेष बनाकर के राम की परीक्षा ली । और उन्हें ज्ञात हो गया कि राम साक्षात्कार ब्रह्म परमेश्वर हैं ।लेकिन सती से यहां एक भारी चूक हो गई । श्री राम भोले शिव के इष्ट हैं ।और सती ने इष्ट की पत्नी सीता का रूप बनाकर बहुत बड़ी गलती कर ली थी । इसलिए भोले शिव ने उन्हें पत्नी पद से त्याग दिया था । और सामने बैठने के लिए स्थान दिया था । तब सती ने अपने पिता दक्ष की यज्ञ में जाकर यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। इस प्रसंग से यह शिक्षा मिलती है । कि शंका से प्राणी का विनाश होता है।मनुष्य हो देव हो या दानव हो शंका जिसके भीतर घुस जाती है । उसका विनाश करके ही छोड़ति है। रावण ने अपने भाई विभीषण पर राम का मीत होने की शंका कर ली थी । और शंका के कारण विभीषण को लंका से लात मार कर निष्कासित कर दिया था ।परिणाम सभी को मालूम है। कि रावण की इस शंका के कारण ही रावण का गुप्त भेद बताने पर राम ने रावण का वध कर दिया था।
शंका विनाश की जननी होती है ।
शिव और सती चरित्र के बाद पंडित सुशील महाराज ने श्रृद्धालुओं को लोभ के प्रतिक हिरक्षाक्ष और मोह के प्रतिक हिरणाश्रोताओं को बताया कि लोभ और मोह मनुष्य के शरीर में ऐसे असुर महाअसुर होते हैं । कि हर युग में असुरों को मारनेके लिए भगवान को एक अवतार लेना पड़ा था । लेकिन हिरक्षाक्ष एवं हिरनाकश्यप को मारनेके लिए श्री विष्णु भगवान को एक ही कल्प में दो अवतार लेना पड़े थे। सूकर का अवतार लेकर विष्णु भगवान ने पृथ्वी को हिरणाक्ष से छीन कर जनकल्याण के लिए स्थापित किया था । और हिरण्यकश्यप को मारनेके लिए तथा भक्तप्रहलाद को बचाने के लिए नृसिंह का अवतार लेना पड़ा था । मनुष्य के शरीर में लोभ और मोह यह दोनों महा विनाश के मूल कारण होते हैं । आज कथा शुभारंभ के अवसर पर भोजपुरी जागृति मंच के अध्यक्ष श्री देवेन्द्र पाठक व डा० श्याम सुंदर सिंह ,व श्याम पाराशर ,श्री रमेश साहू, कंचन पांण्डेय एवं प्रशांत कश्यप, मुख्य चारों यजमानो द्वारा भागवत ग्रंथ एवं पंडित सुशील महाराज की पुष्प हार से पूजा अर्चना की गई । तथा श्री विजय सिंह कथा संरक्षक द्वारा साधु संत के बैठने के लिए कुर्सियां तथा श्रोताओं को बैठने के लिए चटाई बिछौना का प्रबंध भैरोसिंह रजक एवं आदित्य पाठक द्वारा उपलब्ध करवाया गया । कथा समापन पर श्री घनश्याम दास गुप्ता, अनूप पांण्डेय शुभम पांण्डेय, मायाराम अटल, तथा पं०राहुल तिवारी द्वारा भागवत ग्रंथ की आरती उतारी गई।

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